राग देश वाक्य
उच्चारण: [ raaga desh ]
उदाहरण वाक्य
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- राग देश में जो छोटा ख्याल सीखा था उसके बोल थे ' बादल रे, उमड़ घुमड़, बरसन लागे, बिजली चमक जिया डरावे '.
- `लहर ' के सम्पादकसमीक्षकों सेबराबर यह अपील कर रह थेकि वे व्यक्तिगत राग देश से ऊपर उठकर तथा पार्टीऔर ग्रुप के बिल्ले को उतारकरक़ति का ईमानदारी के साथ मूल्याकन करें.
- नहीं समझे! समझेंगे भी नहीं क्यूंकि यह राग देश नहीं राग विदेश है इसमें कोमल, शीतल प्रपात नहीं दहकते अंगारे, धधकती आग है क्या राग है....
- कम से कम शुक्रवार और शनिवार को जिस तरह देश के आम बजट के बजाये सचिन के शतक का राग देश भर में बजता रहा, उससे तो यही साबित होता है.”
- क्योंकि उन्हें भरोसा था कि एक दिन ऐसा जरुर आयेगा जब वह अस्पताल बने जेल से बाहर निकल कर इंदिरा की सत्ता को पराजित करेगें और लोकतंत्र का नया राग देश को देंगे।
- एशो श्यामोलो सुन्दोरो-श्रीराधा बन्धोपाध्याय-राग मेघ व राग देश एशो श्यामोलो सुन्दोरो-सरोद और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में।
- डॉ सुहासिनी घोष मानती हैं कि ' हाल के वर्षों में राग मल्हार को आधार बनाकर कई रागों का जन्म हुआ-गौड़ मल्हार अनूठे रंगों से सजा है तो राग देश, खमाज और बिलावल की बात ही निराली है।
- आइए सुनते हैं राग मेघ और राग देश के ऐसे ही एक मिश्रण पर आधारित एक गीत को प्रसिद्ध रबिंद्रसंगीत गायिका श्रीराधा बन्धोपाध्याय की आवाज़ में तथा उसके बाद सुनिए इसी गीत का इन्स्ट्रुमेंटल वर्ज़न जिसे प्रस्तुत किया गया है सरोद पर।
- आइए सुनते हैं राग मेघ और राग देश के ऐसे ही एक मिश्रण पर आधारित एक गीत को प्रसिद्ध रबिंद्रसंगीत गायिका श्रीराधा बन्धोपाध्याय की आवाज़ में तथा उसके बाद सुनिए इसी गीत का इन्स्ट्रुमेंटल वर्ज़न जिसे प्रस्तुत किया गया है सरोद पर।
- सुनें उस्ताद रहीम फ़हीमुद्दीन ख़ाँ डागर साहब के अद्धभुत स्वरों में राग मारवा में निबद्ध आलाप व धमार की ये बंदिश मोरा संइया बुलावे आधी-राशिद खान-ठुमरी राग देश का संक्षिप्त परिचय-राह देश की उत्त्पत्ति खमाज थाट से मानी गयी है ।
- राग देश के आरोह में वैसे तो ग, ध स्वर वर्जित हैं परन्तु कभी कभी राग की सुंदरता के लिये इस नियम का उल्लंघन कर ग अथवा ध का प्रयोग मींड व द्रुत स्वरों के रूप में किया जाता है जैसे-रेगम ग रे तथा प धनि ध प ।
- राग देश के आरोह में वैसे तो ग, ध स्वर वर्जित हैं परन्तु कभी कभी राग की सुंदरता के लिये इस नियम का उल्लंघन कर ग अथवा ध का प्रयोग मींड व द्रुत स्वरों के रूप में किया जाता है जैसे-रेगम ग रे तथा प धनि ध प ।
- रगों में हलचल सी है आरतियाँ गुजर रही हैं नसों से धमनियों में बज रहे हैं मजीरे साँसों से गुजर रहे हैं ढोल सड़कों पर उफन रही है भीड़ घरों में बस गया है चैत्र मन में रच रहा है उत्सव कोई जन्म ले रही है राग देश की नई गत तुम प्रवासी नहीं हो मन
- क्रम से बढ़ते हुए खमाज राग की ओर गायक बढ़ते हैं-‘ अपने ही रंग में रंगा दे मौला, तू तो साहब मोरा गरीबनवाज …… ' या ‘ कैसे धरूँ जिया धीर, बाली उमर मोरी पिया घर नाहीं ' आदि गीतों के बाद राग देश की ओर होली गायक बढ़ते हैं-‘ चलो री सखी तट जमुना की ओर, अगर चंदन को पलना बनो है, रेशम लागी डोर …. ' ।
- क्रम से बढ़ते हुए खमाज राग की ओर होली गायक बढ़ते हैं-‘अपने ही रंग में रंगा दे मौला, तू तो साहेब मोरा गरीब नवाज…….' या ‘कैसे धरूँ जिया धीर, बाली उमर मोरी पिया घर नाहीं' आदि गीतों के बाद राग देश की ओर होली गायक बढ़ते हैं-‘चलो री सखी तट जमुना की ओर, अगर चंदन को पलना बनो है, रेशम लागी डोर………' उसके बाद राग बागेश्वरी में-‘अचरा पकड़ रस लीन्हो, नन्द को छयलवा अबके होरिन में…….' आदि गीतों में रस विभोर होने के साथ ही मध्यरात्रि के रागों का क्रम चलता है।
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