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राधाचरण गोस्वामी वाक्य

उच्चारण: [ raadhaachern gaosevaami ]
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  • 9. पं. राधाचरण गोस्वामी, इनका जन्म वृंदावन में संवत् 1915 में हुआ औरमृत्यु संवत् 1982 (दिसंबर, सन् 1925) में हुई।
  • सदानन्द मिश्र, राधाचरण गोस्वामी से लेकर ब्रजरत्न दास तक के लेखकों में जो बात उभर कर आती ह वह कुछ आर ही बयां करता ह।
  • राधाचरण गोस्वामी की शंका थी कि खड़ी बोली में काव्य-रचना करने पर थोड़े दिनों में सिर्फ उर्दू कविता का प्रचार हो जाएगा, को वक्त ने निराधार साबित कर दिया है।
  • बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनाराण मिश्र और राधाचरण गोस्वामी भी खड़ी बोली में कविता रचने के मुद्दे पर दो कदम आगे बढ़ाकर अपने धार्मिक हठ की वजह से फिर पीछे चले गए थे।
  • इस तरह के स्वप्नों का सिलसिला बंगाल के भूदेव मुखोपाध्याय के ‘ स्वप्नालब्ध भारतेर इतिहास ' से शुरू होकर राधाचरण गोस्वामी, अंबिकादत्त व्यास इत्यादि लेखकों में अधिक से अधिक कल्पनाशील हु आ.
  • हिन्दी की इस ` नई चाल ' को पकड़ने और प्रस्तुत करने का काम भारतेन्दु मण्डल से जुड़े जिन साहित्यकारों ने किया उनमें राधाचरण गोस्वामी (1859-1925) का नाम सबसे प्रमुख है।
  • राधाचरण गोस्वामी को एक आपत्ति यह भी थी कि खड़ी बोली हिन्दी में कविता लिखने पर भाषा यानी जनभाषा के प्रसिद्ध छंद छोड़कर उर्दू के बैत, शेर, गजल आदि का अनुकरण करना पड़ता है।
  • पहली कोटि में भारतेंदु का बॅगला के “भारतमाता ' का अनुवाद ”भारत जननी'; राधाचरण गोस्वामी द्वारा बँगला के “भारतेर यवन' का अनुवाद ”भारतवर्ष में यवन लोग', कांचनाचार्य कृत “धनंजय विजय' का छायाविष्ट रूपक, अयोध्यसिहं उपाध्याय का ”प्रद्युम्नविजय व्या
  • पहली कोटि में भारतेंदु का बॅगला के “भारतमाता ' का अनुवाद ”भारत जननी'; राधाचरण गोस्वामी द्वारा बँगला के “भारतेर यवन' का अनुवाद ”भारतवर्ष में यवन लोग', कांचनाचार्य कृत “धनंजय विजय' का छायाविष्ट रूपक, अयोध्यसिहं उपाध्याय का ”प्रद्युम्नविजय व्यायोग' आदि हैं।
  • उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तथा बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के अधिकांश साहित्यकारों जैसे भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रताप नारायण मिश्र, देवकी नन्दन खत्री, किशोरी लाल गोस्वामी, राधाचरण गोस्वामी और गंगा प्रसाद गुप्त ने इस तरह की संचेतना के निर्माण में मदद की.
  • पं. राधाचरण गोस्वामी भी अपने पत्र में चन्दे का तक़ाजा इसी तरह मनोरंजक ढंग से करते थे-“इस हाथ दे उस हाथ ले”।35 प्राचीन काव्य परम्परा में जिसे समस्यापूर्ति की तरह जाना और समझा जाता रहा, दरअसल वही आधुनिक युग में गीतिनाट्य और संवाद को जन्म देती है।
  • राधाचरण गोस्वामी का `रेलवे स्तोत्र ' 19 वीं शताब्दी का हिन्दी साहित्य आधुनिक साहित्य के निर्माण का युग है साथ ही नये पाठक समुदाय को ध्यान में रखकर नवीन विचारधाराओं,नये जीवन दर्शन,नये निर्माण, नई सोच और नये कथ्य को नयी भाषा मे नये ढ़ंग से कहने का युग भी है ।
  • सज्जनों, जिन वृद्ध ने, आज से दो-तीन वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में नई पीढ़ी की पुराक की थी उनमें बाबू बालमुकुंद गुप्त, स्वर्गीय पं. राधाचरण गोस्वामी, स्वर्गीय श्री राधाकृष्णदास, पूज्यवर पंडित माधवरावजी सप्रे, आचार्य महावीर प्साद जी द्विवेदी और पंडित अंबिका पत्साद जी वाजपेयी आदि हैं।
  • भारतेंदु हरिशचंद (वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, “अंधेर नगरी”, “विषयविषमौषधम्”) प्रतापनारायण मिश्र (“कलिकौतुक रूपक”) बालकृष्ण भट्ट (“जैसा काम वैसा दुष्परिणाम”), राधाचरण गोस्वामी (“विवाह विज्ञापन”), जी. पी. श्रीवास्तव (“उलट फेर” “पत्र-पत्रिका-संमेलन”) पांडेय बेचन शर्मा उग्र (“उजबक”, “चार बेचारे”), हरिशंकर शर्मा (बिरादरी विभ्राट पाखंड प्रदर्शन, स्वर्ग की सीधी सड़क), आदि इस युग में सफल प्रहसनकार हैं।
  • पं. प्रतापनारायण मिश्र, पं. अम्बिकादत्त व्यास, पं. राधाचरण गोस्वामी, पं. दामोदर शास्त्री, पं. बदरीनारायण चौधारी, पं. सदानन्द मिश्र, पं. बालकृष्ण भट्ट, बाबू श्रीनिवास दास, बाबू काशीनाथ, बाबू तोताराम, इत्यादि सुजन ' हरिश्चन्द्री हिन्दी ' के प्रचार और पुष्ट करनेवाले हैं।
  • उपाधयाय पं. बदरीनारायण चौधारी, पं. प्रतापनारायण मिश्र, बाबू तोताराम, ठाकुर जगमोहन सिंह, लाला श्रीनिवासदास, पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. केशवराम भट्ट, पं. अंबिकादत्त व्यास, पं. राधाचरण गोस्वामी इत्यादि कई प्रौढ़ और प्रतिभाशाली लेखकों ने हिन्दी साहित्य के इस नूतन विकास में योग दिया था।
  • (आनंदकादंबिनी, 1881), देवकीनंदन त्रिपाठी (प्रयाग समाचार, 1882), राधाचरण गोस्वामी (भारतेंदु, 1882), पंडित गौरीदत्त (देवनागरी प्रचारक, 1882), राज रामपाल सिंह (हिंदुस्तान, 1883), प्रतापनारायण मिश्र (ब्राह्मण, 1883), अंबिकादत्त व्यास, (पीयूषप्रवाह, 1884), बाबू रामकृष्ण वर्मा (भारतजीवन, 1884), पं. रामगुलाम अवस्थी (शुभचिंतक, 1888), योगेशचंद्र वसु (हिंदी बंगवासी, 1890), पं. कुंदनलाल (कवि व चित्रकार, 1891), और बाबू देवकीनंदन खत्री एवं बाबू जगन्नाथदास (साहित्य सुधानिधि, 1894)।
  • राधाचरण गोस्वामी के इस सवाल-खड़ी बोली के पक्षधर किस कविता को लेकर हिन्दी काव्य-रचना करेंगे, का जवाब देते हुए श्रीधर पाठक ने लिखा ' हमलोग ब्रजभाषा और खड़ी बोली भाषा दोनों की कविता से अपनी अराध्य हिन्दी को द्विगुणित, चतरगुणित आभूषण पहनाकर और विधि रीति से उसके ' अटल ` भंडार को बढ़ाकर उसके असीम वैभव के सदा अभिमानी होंगे और दोनों का आधार साधार रखेंगे।
  • भारतेंदु मंडल के कवियों (भारतेंदु हरिश्चन्द्र, बदरीनारायण चौधरी प्रेमघन, प्रताप नारायण मिश्र, अम्बिका दत्त व्यास, बालमुकन्द गुप्त, राधाचरण गोस्वामी, राधाकृष्ण दास) से नए युग का सूत्रपात हुआ लेकिन इनसे पूर्व के कुछ कवि (सेवक सरदार, राज लक्ष्मण सिंह, गोविन्द गिल्लाभाई आदि) ऐसे भी हुए जिन्हें रीतिकाल के बाद के माना गया लेकिन वे भारतेंदु युग से पूर्व के थे इन्हें पूर्व प्रवर्तित काव्य परम्परा के कवि कहा जाता है ।
  • प्रेमचंद के पहिले के उपन्यासकारन के परम्परा में बाल किशन भट्ट, श्रीनिवास दास, राधाचरण गोस्वामी, ठाकुर जग मोहन सिंह, काका गोपाल दास गम्ही, किसोरी लाल,, देवकी नंदन खत्री आदि रचनाकारों ने बिबिध विषयों पर उपन्यासों की रचना की | इनमे से किसी ने तिलिस्मी और ऐयारी लिख कर अपनी-अपनी कल्पना शक्ति का परिचय दिया तो कोई, जासूसी उपन्यासों की रचना में मसगुल था, तो कोई रीतिकाल के प्रभाव में आकर प्रेम और रोमांस की अपनी कथा वस्तु का विषय बनाकर पाठको का सरस मनोरंजन किया
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