राधेश्याम कथावाचक वाक्य
उच्चारण: [ raadhesheyaam kethaavaachek ]
उदाहरण वाक्य
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- पं. राधेश्याम कथावाचक के रामायण लिखे जाने के पूर्व उन्नीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में बरेली की एक ''आल्हखण्ड रामायण‘‘ (सती खण्ड) बहुत प्रसिद्ध थी जिसके रचयिता नारायण प्रसाद मुकुन्दराम थे।
- वह इसलिए उसे एक-दो अंकों के बाद देना चाहते थे क्योंकि गोपीनाथ महांती के उपन्यास मर जा और ' राधेश्याम कथावाचक और पारसी थिएटर' शीर्षक मेरे आलेख वे छाप चुके थे।
- नैनीताल में सालों तक अजगर वजाहत, धर्मवीर भारती, विजय तेन्दुलकर, सतीश आलेकर, हबीब तनवीर, राधेश्याम कथावाचक, शेक्सपियर, सोफोक्लीज आदि के […]
- अंग्रेजों के राजपाट के जमाने में पंडित राधेश्याम कथावाचक के वीर रस से भरे नाटकों में दर्शकों को वीरता से दूर रखने के लिए एक कॉमिक सीन रखा जाता था।
- इ स संदर्भ में भजन, नाटक और एकांकियों के जरिये किसी ज़माने में देशभर में धूम मचा देने वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का जिक्र किए बिना बात अधूरी रह जाएगी।
- उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतेन्दु हरिशचन्द्र, जयशंकर प्रसाद, नारायण प्रसाद बेताब, राधेश्याम कथावाचक और आगा है जैसे नाटककारों ने नाटकों में प्राचीन गरिमा और गौरव को प्रदर्शित किया।
- वैसे यह शहर राधेश्याम कथावाचक का है जिनकी ' 'राधेश्याम रामायण“ के साथ ही ”तर्ज राधेश्याम‘‘ ने एक समय उत्तर भारत की शहरी और देहाती जनता को अपने में गहरे तक बाँध लिया था।
- बरेली (उ.प ् र.) निवासी पं. राधेश्याम कथावाचक ने अपनी यह रामायण हिन्दी क्षेत्रों की अपेक्षाकृत कम पढ़ी-लिखी जनता के लिए लिखी और तद्नुसार इसे पर्याप्त लोकप्रियता भी प्राप्त हुई ।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ‘बेताब‘ या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण ‘पढ़ीस‘ की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए4 प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- बरेली वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का राधेश्यामी रामायण और उनके नाटक, मुंशी सदासुखलाल का सुखसागर, सबलसिंह चौहान का महाभारत और गीता प्रेस, गोरखपुर की पत्रिका कल् याण के नामोल् लेख के बिना बात अधूरी होगी।
- १ ९ १ ८ में उन्होंने रॉयल अल्फ़्रेड कम्पनी की नौकरी कर ली जहां पण्डित राधेश्याम कथावाचक के साथ अगले बारह सालों तक उनकी ज़बरदस्त जुगलबन्दी बैठी और कम्पनी ने एक से एक सफल नाटक कि ए. '
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण 'पढ़ीस' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए[4] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण 'पढ़ीस' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए[4] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- तब के इस थियेटर से जुड़े नाटककार मुंशी नारायण प्रसाद ‘बेताब ', मुंशी मुहम्मदशाह आगा ‘हश्र' और राधेश्याम कथावाचक ने भारतीय संस्कार और नैतिक मूल्यबोध के नाटकों की रचना की और पारसी रंगमंच की एक नई धारा का सूत्रपात किया।
- इस रामलीला को नया स्वरूप मिला 1888-89 में, जब उस समय के प्रतिष्ठित एवं गणमान्य हकीम कन्हैया लाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी, पंडित जंगबहादुर, बेनी माधव, लाला बिहारी लाल, पंडित राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा जी रामलीला का मंचन कराने लगे।
- हिन्दी लेखकों ने ज़्यादा अनुभवी नारायण प्रसाद ' बेताब ' या राधेश्याम कथावाचक या फिर बलभद्र नारायण ' पढ़ीस ' की इल्तिजा पर ग़ौर न करते हुए [4] प्रेमचंद जैसे लेखकों के मुख़्तसर तजुर्बे पर ज़्यादा ध्यान दिया, जो कि हक़ीक़तन कड़वा था।
- इस रामलीला को नया स्वरूप मिला 1888-89 में, जब उस समय के प्रतिष्ठित एवं गणमान्य हकीम कन्हैया लाल, गोपेश्वर बाबू, जगन रस्तोगी, पंडित जंगबहादुर, बेनी माधव, लाला बिहारी लाल, पंडित राधेश्याम कथावाचक एवं मिर्जा जी रामलीला का मंचन कराने लगे।
- हरीश त्रिवेदी ने अपने आलेख-ऑल काईंड ऑव हिन्दी: द इवॉल्विंग लैंग्वेज ऑव हिन्दी सिनेमा-में ध्यान दिलाया है कि पारसी थियेटर के लिए नाटक लिखने वालों में सिर्फ आगा हश्र कश्मीरी का ही नाम नहीं आता, नारायण प्रसाद ‘ बेताब ' और पंडित राधेश्याम कथावाचक का भी आता है।
- १९१८ में उन्होंने रॉयल अल्फ़्रेड कम्पनी की नौकरी कर ली जहां पण्डित राधेश्याम कथावाचक के साथ अगले बारह सालों तक उनकी ज़बरदस्त जुगलबन्दी बैठी और कम्पनी ने एक से एक सफल नाटक किए. 'नरसी मेहता' में लीड किरदार निभाने वाले फ़िदा हुसैन के अभिनय का ऐसा सिक्का चला कि उनके नाम के आगे नरसी उपनाम जुड़ गया.
- दरअसल, “ किर्तनिया शैली में वही लचीलापन है, जो रामलीला और रासलीला लोकनाट्य शैली में है | रामलीला करने वाले लोग एक ओर पूरे रामचरित मानस को मंच पर उतारने की शक्ति रखते हैं, तो दूसरी ओर राधेश्याम कथावाचक की शैली में लिपिबद्ध रामकथा को मंचस्थ करने का सामर्थ्य भी रखते हैं | ” (देखें, मैथिली साहित्यिक इतिहास, प्रो.
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