रामचन्द्रिका वाक्य
उच्चारण: [ raamechenderikaa ]
उदाहरण वाक्य
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- अपनी कृति रामचन्द्रिका के आरंभ में सना जाति के विषय में उन्होंने कई पंक्तियां कही हैं।
- नैषध का हिन्दी में उल्था करने वाले गुमान ने इनकी ' रामचन्द्रिका ' के जोड़तोड़ में ' कृष्णचन्द्रिका ' लिखी।
- “ रामचन्द्रिका ' के आरम्भ में हुए सूर्य की प्रातःकालीन अरुणिमा की शोभा का चित्रण इस प्रकार किया गया है-
- संवादों के ऐसे आयाम केशव की ‘ रामचन्द्रिका ' या रसखान के सवैयों की नाटकीय काव्यात्मक त्वरा की याद दिलाते हैं।
- ' रामचन्द्रिका ' के छन्दों का परिवर्तन इतना शीघ्र और इतने अधिक रूपों में किया गया है कि प्रवाह आ ही नहीं पाता।
- इनके प्रसिद्ध महाकाव्य ' रामचन्द्रिका ' में कथा के क्रमबद्ध रूप और अवसर के अनुकूल विस्तार-संकोच का अपेक्षित ध्यान नहीं रखा गया है।
- पहले में वर्णवृत्तों का और दूसरे में मात्रावृत्तों का विचार किया गया है तथा उदाहरण अधिकतर ' रामचन्द्रिका ' में ही रखे गए हैं।
- इसीलिए ऐसे स्थलों की भाषा में, विशेष रूप से, ' रामचन्द्रिका ' और ' विज्ञानगीता ' में, संस्कृत प्रभाव अधिक है।
- रीतिवादी कवि ने कविप्रिया, रसिकप्रिया में रीति तत्व तथा विज्ञान गीता एवं रामचन्द्रिका में भक्ति तत्व को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप में प्रस्तुत किया है।
- रीतिवादी कवि ने कविप्रिया, रसिकप्रिया में रीति तत्व तथा विज्ञान गीता एवं रामचन्द्रिका में भक्ति तत्व को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप में प्रस्तुत किया है।
- रीतिवादी कवि ने कविप्रिया, रसिकप्रिया में रीति तत्व तथा विज्ञान गीता एवं रामचन्द्रिका में भक्ति तत्व को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप में प्रस्तुत किया है।
- इन्होंने रसिक प्रिया, कवि प्रिया, रामचन्द्रिका, रतन बाबनी, विज्ञान गीता, जहाँगीर जस चन्द्रिका तथा वीरसिंह चरित जैसी रचनाओं का प्रणयन किया है ।
- पिताजी हिंदी कविता के बड़े प्रेमी थे, प्रायः रात को ‘ रामचरित मानस ', ‘ रामचन्द्रिका ' या भारतेंदु जी के नाटक बड़े चित्ताकर्षक ढंग से पढ़ा करते थे....
- इसी अर्थ में शुद्ध गद्य का वाक्य भी कविता में रूपान्तरित हो जाता है और केशवदास की सम्पूर्ण ‘ रामचन्द्रिका ' काव्य के समस्त बाहृा उपादानों से लदी-फँदी भी वह प्रभाव पैदा नहीं करती, जो तुलसी की एक चौपाई कर देती है।
- केशवदास की प्राप्त प्रमाणिक रचनाएँ रचनाक्रम के अनुसार ये हैं-' रसिकप्रिया ' (1591 ई.), ' कविप्रिया ' और ' रामचन्द्रिका ' (1601 ई.), ' विज्ञानगीता ' (1610 ई.) और ' जहाँगीरजसचन्द्रिका ' (1612 ई.) ।
- केशव की अलंकार, छंद, रस के लक्षणों-उदाहरणों को प्रस्तुत करने वाली तीन महत्त्वपूर्ण रचनाओं-कवि प्रिया, रसिक प्रिया तथा रामचन्द्रिका को भक्ति से भिन्न मान कर भी उन्हें इस युग के फुटकर कवियों में शुक्ल जी ने रखा है परन्तु यह उचित नहीं है।
- केशव की अलंकार, छंद, रस के लक्षणों-उदाहरणों को प्रस्तुत करने वाली तीन महत्त्वपूर्ण रचनाओं-कवि प्रिया, रसिक प्रिया तथा रामचन्द्रिका को भक्ति से भिन्न मान कर भी उन्हें इस युग के फुटकर कवियों में शुक्ल जी ने रखा है परन्तु यह उचित नहीं है।
- केशव की अलंकार, छंद, रस के लक्षणों-उदाहरणों को प्रस्तुत करने वाली तीन महत्त्वपूर्ण रचनाओं-कवि प्रिया, रसिक प्रिया तथा रामचन्द्रिका को भक्ति से भिन्न मान कर भी उन्हें इस युग के फुटकर कवियों में शुक्ल जी ने रखा है परन्तु यह उचित नहीं है।
- इनकी समस्त कवियों का आधार संस्कृत के ग्रंथ हैं पर कवि प्रिया रसिक प्रिया, रामचन्द्रिका, वीरसिंहदेव चरित्र, विज्ञान गीता, रतन वादनी और जहाँगीर रसचन्द्रिका में कवि की व्यापक काव्य भाषा प्रयोगशीलता एवं बुन्देल भूमि की संस्कृति रीति रिवाज भाषागत प्रयोगों से केशव बुन्देली के ही प्रमुख कवि हैं।
- उनमें प्रमुख हैं-भाषा विज्ञान, हिंदी साहित्य का इतिहास, ऊषा हिंदी निबंध, केशव कृत रामचन्द्रिका, कनुप्रिया, चंद्रगुप्त, रस प्रक्रिया, भारतीय दर्शन, राजस्थान सामान्य ज्ञान, हमारे पूज्य गुरुदेव, पुष्कर: अध्यात्म और इतिहास, अपना अजमेर, अजमेर: इतिहास व पर्यटन, दशानन चरित, सदगुरू शरणम, मोक्ष का सत्य, गुरू भक्ति की कहानियां।
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