राव शेखा वाक्य
उच्चारण: [ raav shekhaa ]
उदाहरण वाक्य
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- राव शेखा दुष्टों व उदंडों के तो काल थे एक स्त्री की मान रक्षा के लिए अपने निकट सम्बन्धी गौड़ वाटी के गौड़ क्षत्रियों से उन्होंने ग्यारह लड़ाइयाँ लड़ी और पांच वर्ष के खुनी संघर्ष के बाद युद्ध भूमि में विजय के साथ ही एक वीर क्षत्रिय की भांति प्राण त्याग दिए |
- १ ५ ४ ५ में हुई जहाँ उनके स्मारक के रूप में एक छतरी बनी हुई है | जो आज भी उस महान वीर की गौरव गाथा स्मरण कराती है | राव शेखा अपने समय के प्रसिद्ध वी र. स ाहसी योद्धा व कुशल राजनिग्य शासक थे, युवा होने के पश्चात उनका सारा जीवन लड़ाइयाँ लड़ने में बीता |
- भारतीय क्षत्रिय महासभा नई दिल्ली सताब्दी समारोह स्मारिका संपादन ४७-पत्र दस्तावेज (महाराज कुमार रघुवीर सिंह जी एवं सोभाग्ये सिंह का पत्र व्यवहार) ४८-पत्र प्रकाश (इतिहासकार सुरजन सिंह एवं सोभाग्य सिंह के पत्र) ४९-ठिकाना खूड एवं दांता का इतिहास आपकी अन्य ग्रंथों की भूमिका लेखन १-राव शेखा-(सुरजन सिंह शेखावत) २-मीरां बाई-(डा.
- जैसलमेर और शेखावाटी की हवेलियां कारोबारी दिग्गजों की बसाई ओपन आर्ट गैलरी सरीखी हैं, राव शेखा की बसाई शेखावाटी के अरबपति मारवाड़ी व्यापारियों की हवेलियों को चाहे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थान न मिला हो, पर 500 से ज्यादा हवेलियां अपने फ्रेस्को चित्रों के कारण कला का अप्रतिम नमूना होने के साथ-साथ वैश्विक धरोहर से भी कतई कम नहीं हैं.
- १. आज तक जिन ग्रामों पर राव शेखाजी का अधिकार हुआ हैं, उन पर राव शेखा जी का अधिकार रहेगा | २. आज से राव शेखा जी आमेर की भूमि पर आक्रमण नही करेंगे | वे आमेर राज्य को किसी प्रकार का कर नही देंगे | ३. शेखा जी अपना स्वतंत्र राज्य कायम रखेंगे | उसमे आमेराधीश कोई हस्तक्षेप नही करेगा |
- १. आज तक जिन ग्रामों पर राव शेखाजी का अधिकार हुआ हैं, उन पर राव शेखा जी का अधिकार रहेगा | २. आज से राव शेखा जी आमेर की भूमि पर आक्रमण नही करेंगे | वे आमेर राज्य को किसी प्रकार का कर नही देंगे | ३. शेखा जी अपना स्वतंत्र राज्य कायम रखेंगे | उसमे आमेराधीश कोई हस्तक्षेप नही करेगा |
- राव शेखा का जन्म आसोज सुदी विजयादशमी सं १ ४ ९ ० वि. में बरवाडा व नाण के स्वामी मोकल सिंहजी कछवाहा की रानी निरबाण जी के गर्भ से हुआ १ २ वर्ष की छोटी आयु में इनके पिता का स्वर्गवास होने के उपरांत राव शेखा वि. सं. १ ५ ० २ में बरवाडा व नाण के २ ४ गावों की जागीर के उतराधिकारी हुए |
- राव शेखा का जन्म आसोज सुदी विजयादशमी सं १ ४ ९ ० वि. में बरवाडा व नाण के स्वामी मोकल सिंहजी कछवाहा की रानी निरबाण जी के गर्भ से हुआ १ २ वर्ष की छोटी आयु में इनके पिता का स्वर्गवास होने के उपरांत राव शेखा वि. सं. १ ५ ० २ में बरवाडा व नाण के २ ४ गावों की जागीर के उतराधिकारी हुए |
- राव शेखा जहाँ वीर, साहसी व पराक्रमी थे वहीं वे धार्मिक सहिष्णुता के पुजारी थे उन्होंने १ २ ०० पन्नी पठानों को आजीविका के लिए जागिरें व अपनी सेना मै भरती करके हिन्दूस्थान में सर्वप्रथम धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया | उनके राज्य में सूअर का शिकार व खाने पर पाबंदी थी तो वहीं पठानों के लिए गाय, मोर आदि मारने व खाने के लिए पाबन्दी थी |
- ४४-मोहणोत नेणसी (सहयोग) ४५-रणरोल काव्य ४७-अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा नई दिल्ली सताब्दी समारोह स्मारिका संपादन ४७-पत्र दस्तावेज (महाराज कुमार रघुवीर सिंह जी एवं सोभाग्ये सिंह का पत्र व्यवहार) ४८-पत्र प्रकाश (इतिहासकार सुरजन सिंह एवं सोभाग्य सिंह के पत्र) ४९-ठिकाना खूड एवं दांता का इतिहास आपकी अन्य ग्रंथों की भूमिका लेखन १-राव शेखा-(सुरजन सिंह शेखावत) २-मीरां बाई-(डा.
- अपनी स्वतंत्रता के लिए राव शेखा जी को आमेर नरेश रजा चंद्रसेन जी से जो शेखा जी से अधिक शक्तिशाली थे छः लड़ाईयां लड़नी पड़ी और अंत में विजय शेखाजी की ही हुई, अन्तिम लड़ाई मै समझोता कर आमेर नरेश चंद्रसेन ने राव शेखा को स्वतंत्र शासक मान ही लिया | राव शेखा ने अमरसर नगर बसाया, शिखरगढ़, नाण का किला, अमरगढ़, जगन्नाथ जी का मन्दिर आदि का निर्माण कराया जो आज भी उस वीर पुरूष की याद दिलाते है |
- अपनी स्वतंत्रता के लिए राव शेखा जी को आमेर नरेश रजा चंद्रसेन जी से जो शेखा जी से अधिक शक्तिशाली थे छः लड़ाईयां लड़नी पड़ी और अंत में विजय शेखाजी की ही हुई, अन्तिम लड़ाई मै समझोता कर आमेर नरेश चंद्रसेन ने राव शेखा को स्वतंत्र शासक मान ही लिया | राव शेखा ने अमरसर नगर बसाया, शिखरगढ़, नाण का किला, अमरगढ़, जगन्नाथ जी का मन्दिर आदि का निर्माण कराया जो आज भी उस वीर पुरूष की याद दिलाते है |
- अपनी स्वतंत्रता के लिए राव शेखा जी को आमेर नरेश रजा चंद्रसेन जी से जो शेखा जी से अधिक शक्तिशाली थे छः लड़ाईयां लड़नी पड़ी और अंत में विजय शेखाजी की ही हुई, अन्तिम लड़ाई मै समझोता कर आमेर नरेश चंद्रसेन ने राव शेखा को स्वतंत्र शासक मान ही लिया | राव शेखा ने अमरसर नगर बसाया, शिखरगढ़, नाण का किला, अमरगढ़, जगन्नाथ जी का मन्दिर आदि का निर्माण कराया जो आज भी उस वीर पुरूष की याद दिलाते है |
- रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि. सं.१५२५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
- रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि. सं.१५२५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
- कु. राजुल शेखावत रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि.सं.१५२५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
- कु. राजुल शेखावत रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि.सं.१५२५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
- कु. राजुल शेखावत रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि. सं. १ ५ २ ५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
- कु. राजुल शेखावत रावशेखा के दादा बालाजी आमेर से अलग हुए थे | अतः अधीनता स्वरूप कर के रूप में प्रतिवर्ष आमेर को बछेरे देते थे | शेखा के समय तक यह परम्परा चल रही थी | राव शेखा ने गुलामी की श्रंखला को तोड़ना चाहा | अतः उन्होंने आमेर राजा उद्धरण जी को बछेरे देने बंद कर दिए थे पर चंद्रसेन वि. सं. १ ५ २ ५ मै जब आमेर के शासक हुए तब राव शेखा के पास संदेश भेजा कि वे आमेर को कर के रूप में बछेरे क्यों नही भेजते है?
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