रुद्रट वाक्य
उच्चारण: [ rudert ]
"रुद्रट" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- रुद्रट [7] ने ‘सम्यक ज्ञान' को आनन्दवर्धन[8] ने ‘तृष्णाक्षयसुख' को तथा आगे कुछ अन्य विद्वानों ने
- वैज्ञानिक वर्गीकरण की दृष्टि से तो रुद्रट ने ही पहली बार सफलता प्राप्त की है।
- काव्यशास्त्र के इतिहास में आचार्य वामन के बाद प्रसिद्ध आचार्य रुद्रट का नाम आता है।
- ) रुद्रट अभिधानप्रकारविशेष को ही अलंकार कहते हैं (अभिधानप्रकाशविशेषा एव चालंकारा:) ।
- इस संदर्भ में आचार्य रुद्रट के एक टीकाकार ने इन्हीं का एक श्लोक उद्धृत किया हैः-
- रुद्रट-1) सहजा (मुख्य): मनुष्य के साथ उत्पन्न (जन्मजात)
- भामह ने शब्द और अर्थ केसहितभाव को काव्य की संज्ञा दी है; और रुद्रट ने शब्दार्थ को.
- इस संदर्भ में आचार्य रुद्रट के एक टीकाकार ने इन्हीं का एक श्लोक उद्धृत किया हैः-शतानन्दपराख्येन
- प्रतिभा, श्रुतं च बहु निर्मलम् … रुद्रट-1) सहजा (मुख्य): मनुष्य के साथ उत्पन्न (जन्मजात)
- हालाँकि प्राचीन और अर्वाटीन अधिकांश विद्वान आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट को एक ही व्यक्ति मानते हैं।
- 3. आचार्य रुद्रट काव्यत्व अलंकारों में मानते हैं, जबकि आचार्य रुद्रभट्ट काव्य का प्रधान तत्व रस मानते हैं।
- आचार्य रुद्रट के ग्रंथ का नाम काव्यालंकार है, जबकि आचार्य रुद्रभट्ट के ग्रंथ का नाम ‘ शृंगारतिलक ' है।
- ४. रुद्रट का मानना है कि काव्य में शब्दों कि तरह अर्थ का भी समान महत्व होता है.
- २. क्षेमेंद्र, मम्मट, अभिनवगुप्त, रुद्रट, कल्हण जैसे पंडितोंने अनेक विद्वत्तापूर्ण संस्कृत ग्रंथोंकी रचना की ।
- रुद्रट ने अपने “काव्यालंकार” में “देश्य” या “देशी” शब्द उन्हें माना है, जिनकी प्रकृति-प्रत्यय-मूलक व्युत्पत्ति का पता नहीं है (काव्यालंकार 6/27)।
- वे संस्कृत आचार्यो भरत मुनि, भामह, दण्डी, रुद्रट, और वामन है जिस्के विचार अलग अल्ग है.
- आचार्य रुद्रट के ग्रंथ ‘ काव्यालंकार ' के तीन टीकाकारों का उल्लेख मिलता है-आचार्य वल्लभदेव, आचार्य नमिसाधु और आचार्य आशाधर।
- ||, || 6. काल-विभाजन ||, ||7.आचार्य भट्टोद्भट ||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||
- रुद्रट (9 ई.) ने “सम्यक् ज्ञान” को, आनंदवर्धन ने “तृष्णाक्षयसुख” को, तथा अन्यों ने “सर्वचित्तवृत्तिप्रशम”, निर्विशेषचित्तवृत्ति, “घृति” या “उत्साह” को स्थायीभाव माना।
- रुद्रट (9 ई.) ने “सम्यक् ज्ञान” को, आनंदवर्धन ने “तृष्णाक्षयसुख” को, तथा अन्यों ने “सर्वचित्तवृत्तिप्रशम”, निर्विशेषचित्तवृत्ति, “घृति” या “उत्साह” को स्थायीभाव माना।
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