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रुय्यक वाक्य

उच्चारण: [ ruyeyk ]
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  • ३. ध्वनि सम्प्रदाय-मम्मट, रुय्यक, विश्वनाथ, हेमचन्द्र, विद्याधर, विद्यानाथ, जयदेव, अप्पयदीक्षित आदि आचार्य।
  • ' श्रीकंठचरित्' में मंखक ने अध्यापक, विद्वान् व्याख्याकार तथा साहित्यशास्त्री के रूप में अपने गुरु रुय्यक का परिचय दिया है।
  • रुय्यक ने अर्थालंकारों को सादृश्य, विरोध, श्रृंखलाबंध, तर्कन्याय, वाक्यन्याय, लोकन्याय, गूढार्थप्रतीति पर, तथा चित्तवृत्तिमूल के वर्गों में बाँटा है।
  • कश्मीर के एक विद्वान् परिवार में राजानक रुय्यक या रुचक का जन्म बारहवीं शताब्दी के प्रथम भाग में हुआ था।
  • आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक-आचार्य परशुराम राय आचार्य सागरनन्दी आचार्य मम्मट के परवर्ती आचार्यों में आचार्य सागरनन्दी का नाम सर्वप्रथम आता है।
  • मंखक (1100 से 1160 ईसवी लगभग) जन्म प्रवरपुर (कश्मीर में सिंधु और वितस्ता के संगम पर स्थित) आचार्य रुय्यक के शिष्य और संस्कृत के महाकवि।
  • किंतु मखक के ही भतीजे, बड़े भाई श्रृंगार के पुत्र जयरथ ने, जो 'अलंकारसर्वस्व' के यशस्वी टीकाकार हैं, उसे आचार्य रुय्यक की कृति कहा है।
  • किंतु मखक के ही भतीजे, बड़े भाई श्रृंगार के पुत्र जयरथ ने, जो “अलंकारसर्वस्व” के यशस्वी टीकाकार हैं, उसे आचार्य रुय्यक की कृति कहा है।
  • अलंकारों के शब्द, अर्थ तथा उभय में विभाग के लिए रुय्यक का सिद्धांत (जिसके बीज राजानक तिलक की काव्यालंकार संग्रह की विवृति में थे) आश्रयाश्रयिभाव का है।
  • अलंकारों की सांगोपांग मीमांसा, ध्वनिसिद्धांत से उसका संबंध ही नहीं अपितु महिमभट्ट के ध्वनिविरोधी सिद्धांत अनुमितिवाद का व्याख्यान तथा ध्वनिसंप्रदाय की पुन:प्रतिष्ठा भी रुय्यक का प्रधान कार्य है।
  • रस, ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्य का विवेचन अधिकांशत: ध्वन्यालोक और काव्य प्रकाश के आधार पर किया गया है तथा अलंकार प्रकरण विशेषत: राजानक रुय्यक के “अलंकार सर्वस्व” पर आधारित है।
  • राजानक रुय्यक ने “व्यक्तिविवेक व्याख्या” नाम से महिम के ग्रंथ की टीका की है और आचार्य मम्मट ने “काव्यप्रकाश” के पाँचवे उल्लास में “व्यक्तिविवेक” के विचारों का खंडन किया है।
  • रुय्यक (१ २ वीं सदी) ने ' अलंकार सर्वस्व ' में ' अलंकारा एव काव्ये प्रधानमिति प्राच्यानाममतं ' अर्थात ' कहता है प्राचीन मत, सुनिए चतुर सुजा न.
  • रस, ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्य का विवेचन अधिकांशत: ध्वन्यालोक और काव्य प्रकाश के आधार पर किया गया है तथा अलंकार प्रकरण विशेषत: राजानक रुय्यक के “ अलंकार सर्वस्व ” पर आधारित है।
  • उपमा पर विचार करते हुए, आचार्य रुय्यक ने तीन प्रकार के साम्य का उल्लेख किया है-भेदप्रधान (व्यतिरेक में), अभेदप्रधान (रूपक में) तथा भेदाभेदप्रधान (उपमा में)-:'उपमानोपमेययो: साधम्र्ये भेदाभेद तुल्यत्वे उपमा/साधम्र्ये त्रय:प्रकारा: भेद प्राधान्यं व्यत्रिेकवत्/अभेदप्राधान्यं रूपकवत्।
  • आचार्य जयरथ द्वारा आचार्य रुय्यक के ‘अलंकारसर्वस्व ' की टीका मे तथा आचार्य हेमचन्द्र द्वारा अपने ‘काव्यनुशासनविवेक' नामक टीका में आचार्य भट्टनायक के उक्त सिद्धांत को प्रतिपादित करने वाले दो श्लोकों उद्धृत किया गया है, जो निम्नवत हैं-
  • मम्मट (11वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), रुय्यक (12वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), हेमचंद्र (12वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), पीयूषवर्ष जयदेव (13वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), विश्वनाथ कविराज (14वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), पंडितराज जगन्नाथ (17वीं शताब्दी का मध्यकाल)-इसी संप्रदाय के प्रतिष्ठित आचार्य हैं।
  • अलंकारसर्वस्व की प्रस्तावना में रुय्यक ने भामह, उद्भट, रुद्रट आदि के अलंकारप्राधान्यवाद में तथा वामन के रीतिवाद में ध्वनि के बीज बताते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि भट्टनायक के भावना तथा भोग नामक काव्यव्यापारों में कुंतक की वक्रोक्ति तथा महिमभट्ट के 'अनुमान' में ध्वनि का अंतर्भाव संभव नहीं है।
  • मम्मट (11 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), रुय्यक (12 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), हेमचंद्र (12 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), पीयूषवर्ष जयदेव (13 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध), विश्वनाथ कविराज (14 वीं शताब्दी का पूर्वार्ध), पंडितराज जगन्नाथ (17 वीं शताब्दी का मध्यकाल)-इसी संप्रदाय के प्रतिष्ठित आचार्य हैं।
  • आचार्य भट्टोद्भट ||, || 8. आचार्य वामन ||, || 9. आचार्य रुद्रट और आचार्य रुद्रभट्ट ||, || 10. आचार्य आनन्दवर्धन ||, || 11. आचार्य भट्टनायक ||, || 12. आचार्य मुकुलभट्ट और आचार्य धनञ्जय ||, || 13. आचार्य अभिनव गुप्त ||, || 14. आचार्य राजशेखर ||, || 15. आचार्य कुन्तक और आचार्य महिमभट्ट ||, ||16. आचार्य क्षेमेन्द्र और आचार्य भोजराज ||, ||17. आचार्य मम्मट ||, ||18. आचार्य सागरनन्दी एवं आचार्य (राजानक) रुय्यक (रुचक) ||
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