रेख़्ता वाक्य
उच्चारण: [ rekhaa ]
उदाहरण वाक्य
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- निर्गुण संत, कृष्ण भक्त कवि और रीति शैली के दरबारी कवि, जिन्होने मूल रूप से तो ब्रज भाषा में लिखा किया मगर रेख़्ता में भी प्रयोग किए।
- वे अपने शोध के ज़रिये पाते हैं कि १ ६ वीं १ ७ वीं सदी में रेख़्ता का बड़ा ज़ोर था जो अभी तक फ़ारसी लिपि में ही पाया गया था।
- इमरै बंघा एक बहुत दिलचस्प नुक्ताचीनी करते हुए लिखते हैं कि वली की हिन्दवी ने उत्तर भारत में रेख़्ता का चलन चलाया नहीं बल्कि पहले से मौजूद मिले-जुले काव्य की शैली को विस्थापित कर दिया।
- मध्यकाल तक इस मिश्रित भाषा को हिन्दवी, ज़बान-ए-हिन्द, हिन्दी, ज़बान-ए-दिल्ली, रेख़्ता, गुजरी, दक्खनी, ज़बान-ए-उर्दू-ए-मुअल्ला, ज़बान-ए-उर्दू या सिर्फ़ उर्दू कहा जाता था, जो वस्तुतः सैनिक छावनी की भाषा थी।
- • हालांकि सबसे पहले रेख़्ता का प्रयोग मुस्लिम हलक़ों मे ही किया गया मगर १ ६ वीं सदी के उत्तरार्ध से ही, मुस्लिम और हिन्दू विचारों का संगम कराने वाले निर्गुनी संत परम्परा ने रेख़्ता की अपनी शैली विकसित कर ली।
- • हालांकि सबसे पहले रेख़्ता का प्रयोग मुस्लिम हलक़ों मे ही किया गया मगर १ ६ वीं सदी के उत्तरार्ध से ही, मुस्लिम और हिन्दू विचारों का संगम कराने वाले निर्गुनी संत परम्परा ने रेख़्ता की अपनी शैली विकसित कर ली।
- बंघा लिखते हैं कि मीर का अपनी भाषा को हिन्दी के साथ-साथ रेख़्ता भी कहते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आज उर्दू कही जाने वाली भाषा, दकनी के अलावा, उस वक़्त उत्तर भारत में हुए रेख़्ता सम्बन्धी प्रयोगों की विरासत भी मानी जा रही थी।
- बंघा लिखते हैं कि मीर का अपनी भाषा को हिन्दी के साथ-साथ रेख़्ता भी कहते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आज उर्दू कही जाने वाली भाषा, दकनी के अलावा, उस वक़्त उत्तर भारत में हुए रेख़्ता सम्बन्धी प्रयोगों की विरासत भी मानी जा रही थी।
- बिहार और मेवाड़ के दरिया साहब, कोटवा के चरनदास, निरंजनियों के बीच से गुलाल साहब, बुल्ला साहब, भीखा साहब, कृष्ण भक्तो में मनोहर दास, आनन्द घन, सितलादास के रेख़्ता के प्रयोगों पर बंघा ने चर्चा की है और मिसालें दी हैं।
- मीर ने भाषाई आधार पर रेख़्ता की चार क़िस्में बताई हैं ; १) एक पंक्ति फ़ारसी और एक हिन्दी, २) एक ही पंक्ति में आधी फ़ारसी और बाक़ी आधी हिन्दी, ३) हिन्दी वाक्य में फ़ारसी क्रियाओं, पूर्वसर्गादि का प्रयोग, ४) हिन्दी में फ़ारसी वाक्यांशों का प्रयोग।
- उर्दू के विद्वान भी उत्तर भारत में रेख़्ता की मिसाले खोजने के लिए बेचैन तो रहे हैं मगर उसे उर्दू की पूर्वपीठिका के बतौर स्थापित करने के लिए, ना कि हिन्दवी (पूर्व औपनिवेशिक उत्तर भारत की भाषा को बंघा ने हिन्दवी के नाम दिया है) के साथ सतत सम्पर्क के सन्दर्भ में।
- सभी लेख पढ़ने योग्य और गुनने योग्य हैं मगर विस्तार और विषयान्तरके भय से मैं यहाँ पर तीन लेखों की ही चर्चा कर रहा हूँ ; १) इमरै बंघा का “ रेख़्ता: पोएट्री इन मिक्स्ड लैंग्वेज ” (द इमर्जेन्स औफ़ खड़ी बोली लिट्रेचर इन नोर्थ इंडिया), २) एलीसन बुश का “ रीति एण्ड रेजिस्टर ” (लेक्सिकल वैरिएशन इन कोर्टली ब्रज भाषा टेक्स्ट), और ३) फ़्रंचेस्का ओर्सिनी का “ बारहमासा इन हिन्दी एण्ड उर्दू ” ।
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