वर्गविहीन समाज वाक्य
उच्चारण: [ vergavihin semaaj ]
उदाहरण वाक्य
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- सामाजिक राजनीतिक दर्शन में मार्क्सवाद (Marxism) उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व द्वारा वर्गविहीन समाज की स्थापना के संकल्प की साम्यवादी विचारधारा है।
- साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी।
- वह न जातिविहीन समाज बना सकता है और न वर्गविहीन समाज का निर्माण कर सकता है, जो डॉ. अंबेडकर का सपना था.
- सर्वाधिक क्रान्तिकारी वर्ग होने के कारण और शोषणविहीन वर्गविहीन समाज की स्थापना के अपने लक्ष्य के चलते इसे ज्यादा प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
- 4 यह यकीन कि सर्वहारा अंतिम वर्ग है और उसकी मुक्ति के लिए जरूरी है कि सभी वर्गों का खात्मा हो और वर्गविहीन समाज की स्थापना हो ।
- जैसे, उदाहरण के लिए-मार्क्स का खयाल है कि अगर समाजवाद सफल हो जाए तो दुनिया में वर्ग नहीं रह जाएंगे, वर्गविहीन समाज पैदा हो जाएगा।यह असत्य है।
- इनका आपसी संघर्ष वर्ग संघर्ष कहलाता है जिसमें अंतत: सर्वहारा की विजय के साथ ' सर्वहारा का अधिनायकत्त्व ' स्थापित होता है, जो ' वर्गविहीन समाज ' की स्थापना करता है।
- यह स्थिति क्रेडिट और बैंकिंग की उत्तरोत्तर कठिन परिस्थितियाँ तब तक उत्पन्न करती जाएगी जब तक कि सर्वहारा सड़ चुके पूरे तंत्र को आसानी से ध्वस्त कर एक वर्गविहीन समाज की स्थापना नहीं कर लेंगे।
- यह स्थिति क्रेडिट और बैंकिंग की उत्तरोत्तर कठिन परिस्थितियाँ तब तक उत्पन्न करती जाएगी जब तक कि सर्वहारा सड़ चुके पूरे तंत्र को आसानी से ध्वस्त कर एक वर्गविहीन समाज की स्थापना नहीं कर लेंगे।
- प्रिय दिनेश जी, आज जनसत्ता में आपका लेख पढ़ा, लेख देख कर दिल खुश हो गया, आपने जितनी आसानी से वर्गविहीन समाज के बारे में समझा दिया वो अपने आप में अद्भुत है।
- संसदीय वामपंथ भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा सवर्ण चेहरा है, जो भूख, गरीबी, शिक्षा, भेदभाव, शोषण और वर्गविहीन समाज के नाम पर वंचितो-शोषितों को बरगलाने का काम करता है और इस ‘लोकतंत्र' को चिरंजीवी बनाने का भी।
- चारू मजूमदार ने माओ से प्रभावित होकर ही ' एनीहिलेशन थियरी ' का प्रतिपादन किया था जिसका मतलब था कि वर्गविहीन समाज बनाने के लिये अगर एक एक वर्ग शत्रु को मौत के घाट भी उतारना पड़े तो सही है।
- संसदीय वामपंथ भारतीय लोकतंत्र का एक ऐसा सवर्ण चेहरा है, जो भूख, गरीबी, शिक्षा, भेदभाव, शोषण और वर्गविहीन समाज के नाम पर वंचितो-शोषितों को बरगलाने का काम करता है और इस ‘ लोकतंत्र ' को चिरंजीवी बनाने का भी।
- एम बी के साथ मुख्य दिक्कत यह है कि मार्क्स ने पूँजीवाद और सर्वहारा के बीच सार्वभौमिक अंतर्विरोध के बारे में जो कहा उसे उन्होंने यांत्रिक तरीके से ऐसी क्रांति के संदर्भ में समझ लिया जो पूँजीवादी समाज की जगह वर्गविहीन समाज की स्थापना करती है ।
- मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है।
- मूलत: यह वह आंदोलन है जो उत्पादन के मुख्य साधनों के समाजीकरण पर आधारित वर्गविहीन समाज स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील है और जो मजदूर वर्ग को इसका मुख्य आधार बनाता है, क्योंकि वह इस वर्ग को शोषित वर्ग मानता है जिसका ऐतिहासिक कार्य वर्गव्यवस्था का अंत करना है।
- दलितों के व्यापक हिस्से की गोलबंदी की जाये और एक ऐसा कार्यक्रम बनना चाहिए जो भारत में जातिप्रथा की कब्र खोद सके, जिससे कि वर्गीय संगठनों के साथ तालमेल करता हुआ यह आन्दोलन भारत में जातिविहीन, वर्गविहीन समाज के निर्माण की दिशा में अपना महत्वपूर्ण योगदान कर सके.
- जब हम जाति की आधुनिकता के दूसरे दौर में पहुंचे, यानी स्वाधीनोत्तर भारत में जाति का स्थान तय करने का अवसर आया, तो संविधानसभा ने तीन साल की लंबी बहस के बाद सर्वसम्मति से भविष्य के भारत के लक्ष्य के तौर पर जातिविहीन और वर्गविहीन समाज की रचना का संकल्प लिया।
- मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष के ज़रिये समाज में से वर्ग विभेदों को मिटाने, मनुष्य के हाथों मनुष्य के शोषण का अन्त करने तथा समाजवाद को वर्गविहीन समाज ले जाने का रास्ता पेश करता है जबकि अम्बेडकर की राजनीति शोषण-उत्पीड़न की बुनियाद पर टिकी पूँजीवादी व्यवस्था का अंग बनकर इसी व्यवस्था में कुछ सुधारों से आगे नहीं जाती है।
- परिणामतः जब हम जाति की आधुनिकता के दूसरे दौर में पहुंचे, यानी स् वाधीनोत् तर भारत में जाति का स् थान तय करने का अवसर आया तो संविधान सभा ने तीन साल की लंबी बहस के बाद सर्वसम् मति से भविष् य के भारत के लक्ष् य के तौर पर जातिविहीन और वर्गविहीन समाज की रचना का संकल् प किया.
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