वासुदेव शरण अग्रवाल वाक्य
उच्चारण: [ vaasudev shern agarevaal ]
उदाहरण वाक्य
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- वासुदेव शरण अग्रवाल ने राष्ट्रकूट कला को पूर्वमध्यकालीन कला का उदाहरण माना है जिसमें मध्यकालीन मूर्तिकला के तत्वपूरी तरह प्रभावी नहीं हो पाये थे.
- वासुदेव शरण अग्रवाल के शब्दों में-‘‘ वही साहित्य लोक में चिरजीवन पा सकता है, जिसकी जड़ें दूर तक पृथ्वी में गईं हों।
- डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का यह कथन कि ‘ वैदिक गणितीय सूत्र अथर्व वेद में नहीं हैं '' उचित नहीं कहा जा सकता।
- इसी क्रम में दशकों पहले प्रख्यात विद्वान् डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल ने ७ दिसम्बर १९५७ को “मार्कण्डेय पुराण” के सांस्कृतिक पक्ष पर एक व्याख्यान दिया था।
- वासुदेव शरण अग्रवाल कहते है-‘ आर्ष वांगमय की यह सारी सामग्री इतना ही संकेत दे पाती है कि इस देश मे भरतों की एक परम्परा थी।
- प्राच्य विद्या के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त, 1904 ई. को ग़ाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश) के खेड़ा नामक गाँव में हुआ था।
- गुणाकर मुले वस्तुतः राहुल सांकृत्यायन, वासुदेव विष्णु मिराशी, वासुदेव शरण अग्रवाल, मोतीचंद्र और भगवतचंद्र उपाध्याय वाली महान मनीषी परंपरा की हिंदी में अंतिम कड़ी थे।
- मूर्ति साधक और साध्य के मध्य संपर्क स्थापित करने का विशिष्ट माध्यम है और भारत में मूर्ति कला का इतिहास, श्री वासुदेव शरण अग्रवाल के अनुसार काफी पुराना है।
- पुरातत्वक्ता डा. वासुदेव शरण अग्रवाल के इस कथन के अनुसार पुराणवर्णित अयोध्या नरेश बाहु अपनी चारित्रिक शिथिलता के कारण है हैह्यवंशियों से पराजित होकर जंगल में रहने को विवश हुए।
- किन्तु वासुदेव शरण अग्रवाल ने महाभारत और आपस्तम्ब सूत्र से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि चमकीली पालिश उत्पन्न करने की कला ईरान से कहीं पहले भारत में ज्ञात थी।
- वासुदेव शरण अग्रवाल का प्रयास मलिक मुहम्मद जायसी की रचनाओं को समझने में सहायक अवश्य हुआ, किंतु अन्य अध्येता पद्मावत को अन्योक्ति और समासोक्ति की बहसों में उलझा कर उसके मर्म पर निरंतर आघात करते रहे.
- वैदिक गणित ' या ' वेदों के सोलह सरल गणितीय सूत्र ' के बिखरे हुए संदर्भों से छाँटकर डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने सूत्रों तथा उपसूत्रों की सूची ग्रंथ के आरंभ में इस प्रकार दी है-
- वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते है कि “ इन्हें मृत्यु विजय पर अटल विश्वास था और ये यह आन्तरिक भावना लेकर विदा हुए कि हलाहल पान करके भी जिस सरस्वती धारा को हृदय बढ़ा रहा है वह कभी इस देश की जीवन सम्पति होगी।
- फ़ादर कामिल बुल्के · मुक्तिबोध · कमलेश्वर · अभिमन्यु अनत · गिरिराज किशोर · धर्मवीर भारती · चन्द्रधर शर्मा गुलेरी · अन्नपूर्णानन्द · फ़क़ीर मोहन सेनापति · नर्मद · उदय प्रकाश · नरेन्द्र कोहली · सुधीश पचौरी · विष्णु सखाराम खांडेकर · वासुदेव शरण अग्रवाल · शमशेर बहादुर सिंह ·
- “ हिंदी के प्रति अपना विचार करते समय प्राची न विद्या विशारद और इतिहास म र्मज्ञ डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने कहा था, ” स्वराज्य के बाद के समय राष्ट्रीय विधान बनने लगा उस समय रा ज भाषा के रूप में हिंदी का प्रश्न उत्कट रूप से उठ ख ड़ा था।
- नामवर सिंह ने उदघाटन वक् तव् य में कहा कि राहुल सांकृत् यायन, वासुदेव शरण अग्रवाल और डॉ. रामविलास शर्मा तीनों विश् वकोशीय लेखक हैं, जिन् होंने इतिहास, साहित् य, समाज, संस् कृति और राजनीति समेत जहां भी उनकी दृष्टि गईं और उनको चुनौती मिली, उस पर उन् होंने खूब लिखा।
- वेदऔर विज्ञान ‘ लेख में पदमश्री डा. कपिल देव दिव्वेदी ने वैदिक साहित्य के सही टीकाकारों में इन विद्वानों का उल्लेख किया है-महर्षि दयानंद, आचार्य सायण, आचार्य वेंकट माधव, श्रीपाद दामोदर सावलेकर, आचार्य नरेंद्र देव शास्त्री, वेद तीर्थ डा. हरिदत्त शास्त्री, डा. मंगल देव शास्त्री, डा. वासुदेव शरण अग्रवाल, डा.
- उस गोष्ठी में एक दिन भारतीय पुरातत्व और साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान एवं चिन्तक श्री वासुदेव शरण अग्रवाल आपकी कथा सुनने के लिये आए और आपकी विलक्षण एवं नवीन चिन्तन शैली से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति श्री वेणीशंकर झा एवं रजिस्ट्रार श्री शिवनन्दनजी दर से च्तवकपहपने (विलक्षण प्रतिभायुक्त) प्रवक्ता के प्रवचन का आयोजन विश्वविद्यालय प्रांगण में रखने का आग्रह किया।
- मैथलीशरण गुप्त, जैनेन्द्र कुमार, अज्ञेय, अश्क, अमृत राय, बलराज साहनी, दिनकर, शमशेर बहादुर सिंह, वासुदेव शरण अग्रवाल, धर्मवीर भारती, विजयदेव नारायण शाही, नगेन्द्र, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय, नामवर सिंह, नेमिचन्द्र जैन आदि से लेकर अपेक्षाकृत तब के युवा लेखकों जैसे, मंगलेश डबराल तक अनौपचारिक संवाद का एक लम्बा विचारोत्तेजक और मर्मस्पर्शी वितान है, जो इस पत्राचार से विन्यस्त होता है।
- छत् तीसगढ़ी व् यंजनों में फास् ट फूड, अन् न का सदुपयोग, तेल-मिर्च-मसाले का कम इस् तेमाल जैसी बहुत सी खासियत है, स् वादिष् ट तो हैं ही, लेकिन ज् यादातर लोगों को ' पुटु ' भाता है ' मशरूम ' कहला कर. विषयांतर मान सकते हैं, पिछले दिनों हमलोग चर्चा कर रहे थे कि स् वतंत्रता प्राप्ति के बाद किस तरह वासुदेव शरण अग्रवाल जी ने ' अहर्निशं सेवामहे ' जैसे सूत्र और चिह्न निर्धारित करने में भूमिका निभाई थी.
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