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विश्वनाथ प्रसाद मिश्र वाक्य

उच्चारण: [ vishevnaath persaad misher ]
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  • और आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जी ने तो यहाँ तक कहा-“डाॅ0 मोहन अवस्थी के इस कृतित्व में जैसा श्रम है और अर्थों की परतें जिस सूक्ष्मता से उद्घटित हुई हैं वैसी महनीय शोध्ा साध्ाना वाला रीति ध्ाारा पर प्रबंध्ा पहले कोई नहीं दिखा।
  • तो फिर बहुसंख्यक श्रृंगारी कवि न मानकर भक्तकवि कैसे माना जा सकता है? इस विषय में ' आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ' की स्थापना ध्यान देने योग्य है-* रसखानि ने स्वयं प्रेम को साध्य कहा है-poem > जेहि पाए बैकुंठ अरु हरिहूँ की नहिं चाहि।
  • तो यह हुई दूसरी खोज जहाँ एक बार आचार्य और आलोचक पैदा होने के बाद साहित्य की धरती ही बंजर हो गयी! आचार्य केशवप्रसाद मिश्र, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जैसे अनेक मनीषियों से प्राप्त वैदुष्य-संस्कार तथा आधुनिक भाषाओं के साहित्य का गंभीर अध्ययन उनकी आस्वाद-क्षमता को विशिष्टï बनाता है।
  • पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने अनेक प्रदेशों के ब्रज भाषा भक्त-कवियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार प्रकट की है-“ब्रज की वंशी-ध्वनि के साथ अपने पदों की अनुपम झंकार मिलाकर नाचने वाली मीरा राजस्थान की थीं, नामदेव महाराष्ट्र के थे, नरसी गुजरात के थे, भारतेंदु हरिश्चंद्र भोजपुरी भाषा क्षेत्र के थे।
  • पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने अनेक प्रदेशों के ब्रज भाषा भक्त-कवियों की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार प्रकट की है-“ ब्रज की वंशी-ध्वनि के साथ अपने पदों की अनुपम झंकार मिलाकर नाचने वाली मीरा राजस्थान की थीं, नामदेव महाराष्ट्र के थे, नरसी गुजरात के थे, भारतेंदु हरिश्चंद्र भोजपुरी भाषा क्षेत्र के थे।
  • सर्वश्री हरिवंश राय बच्चन, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, डॉ॰ रामकुमार वर्मा, आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, न्यायमूर्ति महेश नारायण शुक्ल, प्राचार्य विश्वनाथ सिंह, माननीय गंगाशरण सिंह, शंकरदयाल सिंह, कामता सिंह ' काम ' आदि इनके दायरे में आते गये।
  • यहीं से कवि सम्मेलन को एक नया नाम मिला और सूँड फैजाबादी, शंभुनाथ सिंह, नजीर बनारसी, नीरज, सोम ठाकुर, ठाकुर प्रसाद सिंह, चन्द्रशेखर मिश्र, उमाकांत मालवीय, शिवबहादुर सिंह भदौरिया, माहेश्वर तिवारी से लेकर आचार्य सीताराम चतुर्वेदी, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, पं कमलापति त्रिपाठी, पं.
  • साहित्य के इतिहास के प्रथम काल का नामकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है-1. डॉ.ग्रियर्सन-चारणकाल, 2. मिश्रबंधुओं-प्रारंभिककाल, 3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल-वीरगाथा काल, 4. राहुल संकृत्यायन-सिद्ध सामंत युग, 5. महावीर प्रसाद द्विवेदी-बीजवपन काल, 6. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र-वीरकाल, 7. हजारी प्रसाद द्विवेदी-आदिकाल, 8. रामकुमार वर्मा-चारण काल ==आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत==
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