वेदत्रयी वाक्य
उच्चारण: [ vedetreyi ]
उदाहरण वाक्य
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- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद में से प्रथम तीन को मिलाकर “ वेदत्रयी ” कहा जाता है.
- परवर्ती काल के ब्राह्मण ग्रंथो ने भी वेदत्रयी को ही प्रतिष्ठा दी, अथर्ववेद को घृणा की दृष्टि से देखा ।
- परवर्ती काल के ब्राह्मण ग्रंथो ने भी वेदत्रयी को ही प्रतिष्ठा दी, अथर्ववेद को घृणा की दृष्टि से देखा ।
- जो विधाता (ब्रह्माजी) को वेदत्रयी के नाम से प्रसिद्ध मुख्य वेदों का, महाविष्णु को योग का, शंकर को आगमों का और सूर्यदेव को
- वेदत्रयी जिसका स्वरुप, जो तुरीय तुरीयातीत और सर्वात्मक है, उसी नाद विन्दु स्वरुप ॐ-कार का ब्रह्मा जी को प्रत्यक्ष दर्शन हु आ.
- यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था।
- यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था।
- गौतम बुद्ध के समय तक्षशिला विद्यापीठ में वेदत्रयी, उपवेदों के सहित 18 (कलाओं) विद्याओं (शिल्पों) की शिक्षा दी जाती थी।
- यानि यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था।
- अपौरुषेय वेदत्रयी हो या भारतीय परम्परा के अन्य ग्रंथ, हमारे मनीषियों ने सदा जीवन का आदर और कण कण में परमेश्वर का अंश देखने की शिक्षा दी है।
- अपौरुषेय वेदत्रयी हो या भारतीय परम्परा के अन्य ग्रंथ, हमारे मनीषियों ने सदा जीवन का आदर और कण कण में परमेश्वर का अंश देखने की शिक्षा दी है।
- उल्लेखनीय है कि वेदत्रयी के रूप में ऋक्, सोम, तथा यजुर्वेद को ही वैदिक संहिताओं का गौरव प्राप्त है, जिन्हें वेदानुयायी अपौरुषेय मानते हैं. चैथा
- अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग्वेद, यजुर्वेद व सामवेद जिसे वेदत्रयी कहा जाता था।
- (अग्नि-वायु-आदित्य द्वारा दोहे हुए रस रूप) जब तक इस वेदत्रयी में अथर्व (सोम ब्रह्म) की आहुति का सम्बन्ध रहता है, तब तक यह वेदत्रयी विकसित होती रहती है।
- (अग्नि-वायु-आदित्य द्वारा दोहे हुए रस रूप) जब तक इस वेदत्रयी में अथर्व (सोम ब्रह्म) की आहुति का सम्बन्ध रहता है, तब तक यह वेदत्रयी विकसित होती रहती है।
- अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया-ऋग् वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि से वेदत्रयी कहा जाता था।
- [41] यहाँ यह ध्यातव्य है कि छन्दोबद्ध ऋग्विशेष मन्त्र ही अथर्वागिंरस हैं, अत: उनका ऋग्रूपा (पद्यात्मिका) रचना-शैली में ही अन्तर्भाव हो जाता है और इस प्रकार वेदत्रयी की अन्वर्थता होती है।
- -* उस समय शोभा की उपमा पाने के लिये शारदा दसों यामल-तन्त्र, चारों उपवेद, नवों व्याकरण, वेदत्रयी और इक्कीसों ब्रह्माण्डों में सर्वत्र फिरी, परंतु उन सबको देख और विचारकर भी उसकी बुद्धि कुण्ठित हो गयी।
- * जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।
- * जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तुति करते हैं, वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।।
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