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व्यवहार प्रक्रिया संहिता वाक्य

उच्चारण: [ veyvhaar perkeriyaa senhitaa ]
"व्यवहार प्रक्रिया संहिता" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • वर्ष 2002 में व्यवहार प्रक्रिया संहिता (सिविल प्रोसीजर कोड) की धारा 89 (1) के द्वारा मान्यता प्राप्त यह व्यवस्था हालांकि अभी अपने शैशव काल में है किन्तु मध्यस्थता के लिए संदर्भित विवादों का बोझ कम होने के कारण फिलहाल यह बेहतर ढंग से कार्य कर पा रही है।
  • प्रकरण में वादीगण की ओर से वादी क्रमॉंक-3 विपिन गोयल वादी साक्षी क्रमॉक-1 तथा अपने पक्ष के समर्थन में राजीव श्रीवास्तव वादी साक्षी क्रमॉंक-2 का शपथ-पत्र अन्तर्गत आदेश-18 नियम-4 व्यवहार प्रक्रिया संहिता का प्रस्तुत किया गया है तथा प्रदर्श पी-1 लगायत प्रदर्श पी-16 तक के दस्तावेज पेश किये गये हैं।
  • वर्ष 2002 में व्यवहार प्रक्रिया संहिता (सिविल प्रोसीजर कोड) की धारा 89 (1) के द्वारा मान्यता प्राप्त यह व्यवस्था हालांकि अभी अपने शैशव काल में है किन्तु मध्यस्थता के लिए संदर्भित विवादों का बोझ कम होने के कारण फिलहाल यह बेहतर ढंग से कार्य कर पा रही है।
  • स्पष्टतः दोनों ही प्रतिवाद पत्र वाद बिन्दु सृजित किये जाते समय अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष मौजूद थे मगर इसके बावजूद विद्वान अधीनस्थ न्यायालय ने न्यायालय के क्षेत्राधिकार के संबंध में और आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अर्न्तगत वाद बाधित होने के संबंध में कोई वाद बिन्दु सृजित नहीं किया।
  • नागरिकों को लूटने, अपने अधीन रखने और ईसाइयत व इस्लाम की रक्षा करने, ताकि मानव जाति ही डायनासोर की भांति समाप्त हो जाए, के लिए ईमामों, मिशनरियों व जनसेवकों को दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 196 व 197 व व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के अधीन प्रेसीडेंट व राज्यपाल संरक्षण देते हैं।
  • विद्वान अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से उपरोक्त प्रमाण पत्रों के सम्बंध में यह तर्क प्रस्तुत किया गया है कि उपरोक्त प्रमाण पत्रों को सम्बंधित ग्राम प्रधानों के माध्यम से साबित नहीं कराया गया है, परन्तु मेरे विचार से मोटर दुर्घटना प्रतिकर से सम्बंधित मामलों में व्यवहार प्रक्रिया संहिता के साक्ष्य सम्बंधी कठोर नियम लागू नहीं होते हैं।
  • दिनांक 4-9-06 को न्यायालय द्वारा सृजित किये गये वाद बिन्दुओं में न्यायालय के क्षेत्राधिकार तथा आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से वाद बाधित होने के वाद बिन्दु का सृजन नहीं किया है, जबकि न्यायालय को वाद की सुनवायी का क्षेत्राधिकार नहीं है और वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित है।
  • दिनांक 4-9-06 को न्यायालय द्वारा सृजित किये गये वाद बिन्दुओं में न्यायालय के क्षेत्राधिकार तथा आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से वाद बाधित होने के वाद बिन्दु का सृजन नहीं किया है, जबकि न्यायालय को वाद की सुनवायी का क्षेत्राधिकार नहीं है और वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित है।
  • माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रेमराज वाले केस में यह स्पष्ट किया गया है कि धारा 115, व्यवहार प्रक्रिया संहिता की निगरानी में निगरानी न्यायालय को यह अवश्य ही जांचा जाना चाहिये कि क्या प्रश्नगत निर्णय केवल एक विधिक बिन्दु पर निर्णय है अथवा एक ऐसे विधिक बिन्दु पर निर्णय था जिस पर न्यायालय के क्षेत्राधिकार की स्थिति टिकी हुयी थी।
  • दौरान मुकदमा प्रार्थना पत्र कागज संख्या 213क अंतर्गत आदेश 1 नियम 10 सपठित धारा 151 व्यवहार प्रक्रिया संहिता तृतीय पक्ष मुर्तजा हुसैन द्वारा शपथ पत्र 214ग के साथ इस आधार पर प्रस्तुत किया गया कि प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने के 2-3 दिन पूर्व मोहल्लेवासियों से यह पता चला कि उपरोक्त मुकदमा जो बंटवारे का न्यायालय में विचाराधीन है, तो प्रार्थी ने सम्बंधित पत्रावली का जरिये अधिवक्ता मुआयना कराया।
  • परमानन्द अग्रवाल बनाम अरविन्द कुमार गुप्ता के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता की धारा 115 के संबंध में यह अभिमत व्यक्त किया गया है कि निगरानीकर्ता न्यायालय के समक्ष यह सिद्ध करने में असफल रहा कि धारा 115 के अर्न्तगत निहित क्षेत्राधिकार का प्रयोग न किये जाने से उसे अपूर्णनीय क्षति होगी और इस आधार पर याचिका निरस्त की गयी।
  • विपक्षी की ओर से उपरोक्त वर्णित मोदी स्पिनिंग एडं वीविंग मिल्स के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 और धारा 115 के प्राविधानों का उल्लेख करते हुये यह अभिमत व्यक्त किया गया कि अतिरिक्त वाद बिन्दु सृजित किये जाने के लिये प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त करने के आदेश के विरूद्ध विधि अनुसार धारा 115 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अर्न्तगत कोई निगरानी पोषणीय नहीं है।
  • विपक्षी की ओर से उपरोक्त वर्णित मोदी स्पिनिंग एडं वीविंग मिल्स के केस में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 और धारा 115 के प्राविधानों का उल्लेख करते हुये यह अभिमत व्यक्त किया गया कि अतिरिक्त वाद बिन्दु सृजित किये जाने के लिये प्रस्तुत प्रार्थना पत्र निरस्त करने के आदेश के विरूद्ध विधि अनुसार धारा 115 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अर्न्तगत कोई निगरानी पोषणीय नहीं है।
  • संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि मूल वाद में प्रतिवादी श्री आर0पी0 सिंह की ओर से एक प्रार्थना पत्र 93ग-2 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 के अर्न्तगत इस आशय से अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए के प्रस्तर 16, 17,18 व 6 में न्यायालय के क्षेत्राधिकार और वाद पोषणीय न होने की आपत्ति के साथ ही वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित होने के संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया है।
  • संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि मूल वाद में प्रतिवादी श्री आर0पी0 सिंह की ओर से एक प्रार्थना पत्र 93ग-2 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश 14 नियम 5 के अर्न्तगत इस आशय से अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवादी ने अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए के प्रस्तर 16, 17,18 व 6 में न्यायालय के क्षेत्राधिकार और वाद पोषणीय न होने की आपत्ति के साथ ही वाद आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों से बाधित होने के संबंध में स्पष्ट उल्लेख किया है।
  • जहां तक निगरानीकर्तागण द्वारा ध्यानाकर्षित परवेज अख्तर एवं अन्य बनाम पंचम अपर जिला जज आगरा एवं अन्य उपरोक्त के प्रकरण में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय का सम्बन्ध है, माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से यह अवधारित किया गया है कि अधिवक्ता आयुक्त की नियुक्ति स्थल निरीक्षण के सम्बन्ध में नियुक्त किया जाना आदेश 26 नियम 9 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के प्राविधान के अनुक्रम में वस्तुतः एक स्वविवेकीय अधिकार है जिसे न्यायालय उक्त निर्णय की धारा-11 में उपबन्धित तथ्यों के अनुक्रम में आवश्यकता अनुसार प्रयोग में लाने के लिए स्वतन्त्र है।
  • यह भी कहा गया है कि न्यायालय द्वारा पारित आदेश में महत्वपूर्ण अवैधानिकता बरती गयी है और न्यायिक मस्तिष्क का प्रयोग नहीं किया गया है, जबकि प्रतिवादी द्वारा अपने प्रतिवाद पत्र 15ए तथा अतिरिक्त प्रतिवाद पत्र 54ए में स्पष्ट रूप से वाद की पोषणीयता और न्यायालय के क्षेत्राधिकार तथा आदेश 7 नियम 11 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के संबंध में स्पष्ट रूप से आपत्तियां उठायी गयी थी और न्यायालय ने प्रश्नगत आदेश पारित करके इस बात को नजरन्दाज कर दिया है कि ये दोनों आपत्तियां पक्षकारों के बीच उत्पन्न विवाद के यथोचित निस्तारण के लिये अत्यन्त आवश्यक हैं।
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