व्यासदेव वाक्य
उच्चारण: [ veyaasedev ]
उदाहरण वाक्य
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- ऐसा सोचना भूल है कि व्यासदेव महाभारत कथा से आकुल-व्याकुल होकर भागवत-कथा में पलायन कर गये।
- फिर से कलयुग में नष्ट न हो जाए इसलिए सब शास्त्र लिख दिए व्यासदेव ने.
- अतः भागवत व्यासदेव के अनुभूत का आख्यान है, अतिरिक्त श्रद्धा या भक्ति का भावावेश नहीं।
- [श्रीला व्यासदेव की श्रीमद भागवतम का एक संक्षिप्त अध्ययन, दसवां सर्ग लॉस एंजिल्स: भक्तिवेदान्त ट्रस्ट, 1970. 2 खंड.
- व्यासदेव का तो स्पष्ट मत है कि प्रभु मनुष्य देह धारण ही करते हैं मनुष्य को शिक्षा देने केलिए।
- भागवत में पहले पहले तीसरे अध्याय में ही establish व्यासदेव स्थापित करते हैं कि कृष्ण ही भगवान है.
- भगवान् व्यासदेव जी ने भी पुत्र का ऐसा अभिप्राय जानकर उनसे फिर कहाः मैं उक्त तत्त्व से अतिरिक्त तत्त्व को नहीं जानता।
- डाॅ. एन. चंद्रशेखरन नायर का महाकाव्य ‘ व्यासदेव ' एक कथा मात्र न होकर मानव के उत्थान का दर्शन है।
- कृष्णानंद व्यासदेव संकलित “रागकल्पद्रुम” भी इस समय का संग्रहात्मक सूरसागर का एक विकृत रूप है, जो संगीत के रंगों में बँटा हुआ है।
- व्यासदेव ने लिखा जरूर पर श्रुति, स्मृति के रूप में पहले से मौजूद थे वेद, शास्त्र और श्रील व्यासदेव ने उनको compile किया.
- व्यासदेव ने लिखा जरूर पर श्रुति, स्मृति के रूप में पहले से मौजूद थे वेद, शास्त्र और श्रील व्यासदेव ने उनको compile किया.
- चौबीस अवतारों का वर्णन किया व्यासदेव ने और अंत में कहा कि एतेचांश कला पुंश ये सारे अवतार हैं, कला हैं या अंश हैं.
- फिर व्यासदेव ने यमुना से कहा, ‘ यमुने, अगर मैंने कुछ भी न खाया हो, तो तुम्हारा जल दो भागों में बँट जाए।
- जैसे तुलसी हृदयस्पर्शी प्रसंगों का, तल्लीन करने वाली लीलाओं का रम-जमकर वर्णन करते हैं वैसे ही व्यासदेव दशम स्कन्ध की लीलाओं में लीन से हो गये हैं।
- जैसे मन्द वायु बद्धमूल वृक्ष को नहीं उखाड़ सकता, वैसे ही वे भोग, वे दुःख व्यासदेव जी के पुत्र के मन को विकृत न कर सके।
- ब्रह्माण्ड पुराण में भगवान व्यासदेव ने गो-सावित्राीस्तोत्रा में कहा, ‘ समस्त गौएं साक्षात् विष्णुरूप् हैं, उनके सम्पूर्ण अंगों में भगवान केशव विराजमान रहते हैं।
- पद्मा पुराण के चतुर्दश अध्याय में, क्रिया-सागर सार नामक भाग में, श्रील व्यासदेव एकादशी के उद्गम की व्याख्या जैमिनी ऋषि को इस प्रकार करते हैं:
- इस प्रकार व्यासदेव को संबोधित करके नारद मुनि ने उनसे विदा ली और अपनी वीणा को झंकृत करते हुए वे अपनी उन्मुक्त इच्छा के अनुसार विचरण करने चले गए।
- क्यों न उन्हीं कुछ खुलासों में कुछ से मदद ली जाए? अनुशासनपर्व (5.24 ष् में व्यासदेव कहते हैं-‘ अनुक्रोशो हि साधूनां महद् धर्मस्य लक्षणम ' ।
- इससे पहले व्यासदेव अपनी मां सत्यवती की आज्ञा से अम्बिका और अम्बालिका के साथ नियोग विधि से पाण्ऊ और धृतराष्ट्र (तथा विदुरष् को जन्म देने में सहायता कर चुके थे।
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