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शरीफ़ा वाक्य

उच्चारण: [ sherifa ]
"शरीफ़ा" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • हज़रत अली (अ) उस शख्सीयत का नाम है जो शबे हिजरत पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सोए और उनकी शान में यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई:
  • तमाम मुफ़स्सेरीन ने यह रिवायत की है कि यह आयते शरीफ़ा हज़रत अली (अ) की शान में उस वक़्त नाज़िल हुई जब आप बिस्तरे रसूल (स) पर लेटे हुए थे।
  • हाँ, एक बात मध्यप्रदेश और राजस्थान में हम लोग जिसे सीताफल कहते हैं, यू.पी.वाले उसे कद्दू समझते है,यहाँ सीताफल को शरीफ़ा कहा जाता है(मैं भी खूब बेवकूफ़ बनी हूँ इस चक्कर में).
  • पुदुकोट्टी के पास ही पेरांबूर गाँव में मुसलमान महिलाओं के एक समूह की संयोजक शरीफ़ा का कहना है कि मस्जिद में ही महिलाओं की समस्या का हल करने के लिए एक अदालत जैसी व्यवस्था भी होगी.
  • उनका नाम तो मुझे ठीक से याद आ रहा था लेकिन मैंने फ़िर भी वहाँ कार्य करने वाले एक कर्मी से पता करना ही बेहतर समझा कि यह शरीफ़ा का ही पेड़ है या किसी अन्य प्रजाति का।
  • <4> इमाम की इस्मत पर कुरआने करीम की आयतें भी दलालत करती हैं जिन में सूरह ए बकरा की 124 वीं आयत है, इस आयते शरीफ़ा में बयान हुआ है कि जब ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे इब्राहीम (अ।
  • ये आयते शरीफ़ा यहूदियों (दुर्रुल मंशूर हिस्सा आव्वल पेज 90) के सवालात के जवाब में नाज़िल हुयी है जो पैग़म्बरे अकरम (स) से पूछ रहे थे इस क़ुरआन को कौन तुम पर नाज़िल करता है?
  • इमाम की इस्मत पर कुरआने करीम की आयतें भी दलालत करती हैं जिन में सूरह ए बकरा की 124 वीं आयत है, इस आयते शरीफ़ा में बयान हुआ है कि जब ख़ुदा वन्दे आलम ने जनाबे इब्राहीम (अ।
  • हाँ, एक बात मध्यप्रदेश और राजस्थान में हम लोग जिसे सीताफल कहते हैं, यू. पी. वाले उसे कद्दू समझते है, यहाँ सीताफल को शरीफ़ा कहा जाता है (मैं भी खूब बेवकूफ़ बनी हूँ इस चक्कर में).
  • जंगलों और हरियाली की बातें सुन कर मन प्रसन्न हो उठता है. हाँ,एक बात मध्यप्रदेश और राजस्थान में हम लोग जिसे सीताफल कहते हैं, यू.पी.वाले उसे कद्दू समझते है,यहाँ सीताफल को शरीफ़ा कहा जाता है(मैं भी खूब बेवकूफ़ बनी हूँ इस चक्कर में).
  • 1. इस आयत का शाने नुज़ूल यह है कि सबीलिल्लाह क़ुरआन की मारेफ़त में दीन है और यह आयते शरीफ़ा वाज़ेह करती है कि सितमगर और ज़ालिम लोग बल्कि जो ख़ुदा पर ईमान नही रखते वह दीने ख़ुदा (फ़ितरी दीन) तो तोड़ मोड़ कर नाफ़िज़ करते हैं।
  • इब्ने अब्बास कहते हैं: यह आयते शरीफ़ा उस वक़्त नाज़िल हुई जब पैग़म्बरे अकरम (स) अबू बक्र के साथ मुशरेकीने मक्का के हमलों से बच कर ग़ार में पनाह लिये हुए थे और हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे अकरम (स) के बिस्तर पर सोए हुए थे।
  • चाहे कितना ही मँहगा क्यों न मिले, तीनो के हिस्से का एक-एक शरीफ़ा तो वह ज़रूर लाता था, चाहे ऑफ़िस की अपनी चाय में उसे दो-चार दिन की कटौती ही क्यों न करनी पड़े... । ” कोई भी किसी खाने की चीज़ को पूजा से पहले हाथ नहीं लगाएगा...
  • अल्लाह ताला इस आयते शरीफ़ा में उनका जवाब देता है कि जिबरईल तो क़ुरआन को ख़ुदा के हुक्म से पैग़म्बर (स) पर नाज़िल करता है न कि अपनी तरफ़ से और आख़िरकार क़ुरआने मजीद ख़ुदा का कलाम है लिहाज़ा उस पर ईमान लाना चाहिये क्योंकि ये जिबरईल का कलाम नही है ।
  • (सूरह ए मोमिन आयत 7) इस आयते शरीफ़ा के मुताबिक़ वाज़िह है कि मुक़र्रब फ़रिश्ते मुस्तक़िल मौजूदात हैं, वह शुऊर रखते हैं, इरादे के मालिक हैं क्योंकि वह अवसाफ़ जो उनके बारे में बयान किये गये हैं यानी ख़ुदा पर ईमान रखना, दूसरों के लिये तलबे मग़फ़िरत करना वग़ैरा ।
  • इस मअना को साबित करने के लिये कि क़ुरआने मजीद ख़ुदा का कलाम है और किसी इंसान का कलाम नही, बार बार बहुत ज़्यादा आयाते शरीफ़ा में इस मौज़ू पर ज़ोर दिया गया है और क़ुरआने मजीद को हर लिहाज़ से एक मोजिज़ा कहा गया है जो इंसानी ताक़त और तवानाई से बहुत बरतर है।
  • एक-एक शरीफ़ा पाकर बच्चे एक कोने में चले गए | मुँह से एक-एक बीज़ निकाल अपने सामने इकठ्ठा करते देख उसे उत्सुकता हुई | ऐसे कायदे से तो वे कभी बीज एक जगह नहीं रखते | आखिर रहस्य सबसे वाचाल छोटी ने ही खोला, “ हम कल सुबह ये बीज खाकर खूब पानी पी लेंगे...
  • ज़ाहिर हैकि मसीह (अ) और मुकर्रब फ़रिश्ते अगरचे गुनाह नही करते लेकिन अगर वह गुनाह करें और बंदगी से ख़िलाफ़ वरज़ी करें तो इस आयते शरीफ़ा के मुताबिक़ उनको क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की धमकी दी गयी है लिहाज़ा क़यामत के दिन अज़ाब की धमकी जो तर्क होने के अलावा एक फ़र्ज़ भी है, इसतिक़लाले वजूद, शऊर व इरादे के बग़ैर मुमकिन नही हो सकता ।
  • मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयते शरीफ़ा में (अनफ़ुसना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ) मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनद में नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं।
  • मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयते शरीफ़ा में (अनफ़ुसना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ) मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनद में नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं।
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