शान्तिपर्व वाक्य
उच्चारण: [ shaanetiperv ]
उदाहरण वाक्य
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- शान्तिपर्व [129] में कहा गया है कि विष्णु को तीनों पिण्डों में अवस्थित समझना चाहिए।
- ' राज्य ' की निर्मिति के सम्बन्ध में महाभारत के शान्तिपर्व में सार्थक चर्चा आयी है।
- शान्तिपर्व [142] में कहा गया है कि विष्णु को तीनों पिण्डों में अवस्थित समझना चाहिए।
- इस अर्थ में सर्प के दृष्टान्त का संकेत महाभारत शान्तिपर्व में है ॥ 4 / 12 ॥
- शान्तिपर्व में सम्पूर्ण समाजनीति, राजनीति तथा धर्मनीति युधिष्ठिर और भीष्म के संवाद के रूप में प्रस्तुत की गयी है।
- . तैति. ब्रा. १-६-४-४महाभारत के शान्तिपर्व में बताया गया है कि सत्य के अतिरिक्त और कोई साधनसिद्धि नहीं दे सकता है.
- महाभारत में ही इस धूर्तता का स्पष्ट उल्लेख है देखें ……… महाभारत के शान्तिपर्व का श्रलोक-२ ६ ५: ९
- तत्संबंधित प्रासंगिक दो श्लोकों को मैं आगे उद्धृत कर रहा हूं (महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २ ० ३):
- मुझे महाभारत युद्ध के बाद की स्थिति से संबंधित पर्व-शान्तिपर्व-में भी दण्ड की बातें पढ़ने को मिली हैं ।
- मुझे महाभारत युद्ध के बाद की स्थिति से संबंधित पर्व – शान्तिपर्व – में भी दण्ड की बातें पढ़ने को मिली हैं ।
- मुझे महाभारत युद्ध के बाद की स्थिति से संबंधित पर्व-शान्तिपर्व-में भी दण्ड की बातें पढ़ने को मिली हैं ।
- इसकी सगाई पहले अपने ही वंश के एक पुरुष से, जिसका नाम महाभारत शान्तिपर्व अध्याय 13 के अनुसार दंस था, हुई थी।
- ” (शान्तिपर्व 348) लेकिन यहां शुरूवात श्रीकृष्ण से नहीं विवस्वान से होती है, गीता में यह शुरूवात श्रीकृष्ण से होती है।
- यह सत्य महाभारत में स्पष्ट हो चुका है………जो पूर्व में भी वर्णित है, फिर से देख लें…… महाभारत के शान्तिपर्व का श्रलोक-२६५:९ सुरां
- शान्तिपर्व [203] में वर्णन आया है कि इन्द्र ने सम्राट मान्धाता से कहा कि किस प्रकार यवन, किरात आदि आनार्यों (जिन्हें महाभारत में दस्यु कहा गया है)
- शान्तिपर्व में महर्षि व्यास ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहा है कि प्रत्यक्ष आदि प्रमाण तथा प्रतिज्ञा आदि पञ्चावयव न्यायवाक्य प्रमेय की सिद्धि के लिए प्रयोजनीय है।
- शान्तिपर्व में महर्षि व्यास ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहा है कि प्रत्यक्ष आदि प्रमाण तथा प्रतिज्ञा आदि पञ्चावयव न्यायवाक्य प्रमेय की सिद्धि के लिए प्रयोजनीय है।
- अति प्राचीन काल में ही महर्षि वेद व्यास जी का महाभारत में कहा गया यह कथन पुनः दोहराना आवश्यक हो गया है…………… महाभारत के शान्तिपर्व का श्रलोक-२६५: ९ सुरां
- ' महाभारत ' शान्तिपर्व [4] के नारायणीय उपाख्यान में इस नवीन धर्म को वैष्णव यज्ञ कहा गया है और यज्ञ प्रधान वैदिक कर्मकाण्ड के प्रवृत्ति-मार्ग के विपरीत इसे निवृत्ति-मार्ग बताया गया है।
- महाभारत शान्तिपर्व में कहा गया है कि वेदों में, सांख्य में तथा योग शास्त्र में जो कुछ भी ज्ञान इस लोक में है वह सब सांख्य से ही आगत है।
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