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शारंगदेव वाक्य

उच्चारण: [ shaarengadev ]
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  • यहीं पर महान साधक शारंगदेव ने उनकी अमूल्य संगीत रचना संगीत रत्नाकर लिखी, और महान पखावज वादक गोपालनायक ने राग देवगिरी बिलावल की रचना की।
  • मंजुबाला शुक्ला ने भरत मुनि, शारंगदेव, नन्दीकेश्वर, दत्तिल और अभिनव गुप्त आदि की पुस्तकों का हवाला देकर स्पष्ट किया कि पुस्तकों की भूमिका कभी भी कम नहीं होगी.
  • क्या है संगीत रत्नाकर? देवगिरी के संगीत इतिहास का आज क भी नहीं जानने वाले समय में शारंगदेव द्वारा रचे गये संगीत रत्नाकर को भारतीय संगीत का प्राण कहा जाता है।
  • हाल ही में यहाँ स्थित एक निजी संगीत संस्था की ओर से पहली बार आयोजित शारंगदेव समारोह में सरकार ने उसमें कोई सहयोग तो छोड़िये कोई नुमाइन्दा भी पूछ परख के लिये नहीं भेजा।
  • भारतीय संगीत का ये एक ऐसा अनुपम ग्रन्थ है जिसमें शारंगदेव ने संगीत सिद्धान्तों का अद्वितीय, व्यवस्थित, सूक्ष्म, स्पष्ट और ऐसा प्रामाणिक वर्णन किया है कि जिसकी आज कल्पना भी असम्भव है।
  • परन्तु उन्होंने जिस राग और ताल का संकेत गीत गोविन्द में किया है उसका ज्ञान किसी गीत गायक को नहीं था. शारंगदेव १३वीं शताब्दी के पूर्वाध में दक्षिण में यादवों की राजधानी देवगिरि में शारंगदेव हुए।
  • परन्तु उन्होंने जिस राग और ताल का संकेत गीत गोविन्द में किया है उसका ज्ञान किसी गीत गायक को नहीं था. शारंगदेव १३वीं शताब्दी के पूर्वाध में दक्षिण में यादवों की राजधानी देवगिरि में शारंगदेव हुए।
  • इसी महान कला प्रेमी ज्ञानप्रिय, और आयुर्वेद प्रियंकर सिंघणदेव के शासन में महालेखापाल पर रहते हुये संगीत के महान संगीतकार और संगीत तपस्वी शारंगदेव ने भारतीय संगीत के प्राणों यानी कि संगीत रत्नाकर की रचना की।
  • ) यहीं रची थी गोपाल नायक ने राग देवगिरी बिलावल संगीत साधक शारंगदेव ने लिखा था संगीत रत्नाकर सारंग उपाध् याय इतिहास के गलियारों से निकलने वाले किलों की दास्ताँ कभी जंग के मैदानों से होकर सत्ता को महफूज बनाने वाली [...]
  • इसकी मुख् य वजह शारंगदेव जैसे संगीत रत् न तो थे ही इसके अलावा रही सही कसर उनके द्वारा रचित संगीत रत् नाकर ने पूरी कर दी, जिसे पढकर उस दौरान उनकी कीर्ति न केवल चरम पर थी बल् कि इसे आज भी पढकर संगीत का हर महाविद्वान उनका यशोगान करता नहीं थकता।
  • सच पूछा जाये तो पुरातत्व विभाग के आला अधिकारी ही ये नही जानते हैं कि यहाँ संगीत की साधनाएं होती रहीं और ये वही देवगिरी का महान किला है जिसके भीतर शारंगदेव ने भारतीय संगीत के प्राणों को रचा और इसी देवगिरी के नाम पर गोपालनायक जैसे संगीत तपस्वी ने राग देवगिरी बिलावल की रचना की।
  • इस ग्रन्थ में शारंगदेव के संगीत ज्ञान के महासागर की गहराइयों का इसी बात से अँदाजा लगाया जा सकता है कि संगीत के अत्यन्त विशाल, और व्यापक क्षेत्र को बताने के लिये शारंगदेव ने अपने समय के लक्ष्य को ध्यान में रखकर पूर्व संगीत परम्परा के लगभग 40 पूर्वाचार्यों के मतों का सार निकाला है।
  • इस ग्रन्थ में शारंगदेव के संगीत ज्ञान के महासागर की गहराइयों का इसी बात से अँदाजा लगाया जा सकता है कि संगीत के अत्यन्त विशाल, और व्यापक क्षेत्र को बताने के लिये शारंगदेव ने अपने समय के लक्ष्य को ध्यान में रखकर पूर्व संगीत परम्परा के लगभग 40 पूर्वाचार्यों के मतों का सार निकाला है।
  • ऐसा नहीं है कि देवगिरी का संगीत और नृत्य कला का इतिहास महज शारंगदेव और संगीत रत्नाकर तक आकर ही सिमट जाता है, बल्कि वह तो महान पखावज वादक गोपालनायक तक भी पहुँचता है जिनके बारे में कहा जाता था कि उनकी पखावज सुनकर हाथियों के झुण्ड के झुण्ड मस्ती में झूमकर खुदको उनके आगे नतमस्तक कर देते थे।
  • वैसे तो इसका अपना एक लंबा इतिहास रहा है, लेकिन जैसा कि पहले कहा यहाँ के राजा भिल्लम तो कला ज्ञान-विज्ञान के प्रेमी रहे ही बल्कि उनकी पीढियां भी उनकी कला प्रेमी परम्परा को आगे बढाती रही, यही वजह रही कि भिल्लम के बाद उनका पुत्र जैत्रपाल राजा हुआ, जिसने शारंगदेव के पिता सोढल को देवगिरी में महालेखापाल के पद पर नियुक्त किया।
  • इसके अलावा महान संगीत साधक और संगीत रत्नाकर के रचियता शारंगदेव ने खुद संगीत रत्नाकर की शुरूआत में ही इस किले के कला प्रेमी शासक वर्ग की प्रशंसा में न केवल बहुत कुछ लिख दिया बल् कि यह भी कहा कि उनके महान विद्वान, और शास्त्रों के ज्ञाता रहे पूर्वजों की असली पूछ परख भी इस किले में हुयी और वे कश्मीर छोडकर यहाँ आ बसे।
  • तिरस्कृत और उपेक्षित, सन्नाटे में खडा देवगिरी ये दुर्भाग्य ही है कि एक ओर जहाँ दुनिया की संगीत बिरादरी में अपना अग्रणी स्थान रखने वाला और संगीत गुरू कहलाने वाला भारतीय संगीत महानता के शिखर पर तो जा बैठा है, वहीं इस महान संगीत की तपस्या कर संगीत रत्नाकर लिखकर इसे जनसुलभ बनाने वाले शारंगदेव का तो देवगिरी के दरवाजे पर लगे इतिहास अभिलेखागार में नाम तक नहीं है।
  • खैर, वे तो भारत से बाहर जाने पर भी ये नहीं जान पाते कि जिसे दौलताबाद के किले को वे घूम आये हैं वह किला पहले कभी देवगिरी के नाम से जाना जाता था और यहीं पर ही भारतीय संगीत की लम्बे समय तक साधना-चली और यहाँ एक ओर शारंगदेव जैसे महान संगीत साधक और गोपालनायक जैसे महान पखावज वादक हुये, जिन्होंने संगीत की महत्वूपर्ण राग देवगिरी बिलावल का सृजन किया।
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