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शास्त्रविहित वाक्य

उच्चारण: [ shaasetrevihit ]
"शास्त्रविहित" अंग्रेज़ी में
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • कर्मकांड (सं.) [सं-पु.] 1. शास्त्रविहित धार्मिक कर्म 2. वेद का वह भाग जिसमें नित्य-नैमित्तिक आदि कर्मों का विधान है 3.
  • सच्चा गृहस्थ वह है जो शास्त्रविहित कर्मों का अनुष्ठान करते हुए सदा सबकी सेवा में रहता है और गृहस्थ धर्म एवं सदाचार का पालन करता है, वही गृहस्थाश्रमी कहलाने का अधिकारी है।
  • ब्राह्मणों द्वारा दूसरों को ठगते-ठगते अंधकार एवं तिरस्कार के नरक की यात्रा ' उत्थान के समकालीन प्रयास एवं जातीय संगठन ' विभिन्न पुर के लोगों की प्राचीन शास्त्रविहित साधना परंपरा एवं वर्तमान स्थिति।
  • भावार्थ: तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा॥8॥ (यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता का निरूपण)
  • शास्त्रविहित शारीरिक, वाचिक और मानसिक कर्मों से होने वाली चित्तशुद्धि द्वारा जायमान ज्ञान की प्राप्ति होने पर हृदय में, चन्द्रमा के समान, काम, क्रोध आदि सन्ताप से शून्य जीवन्मुक्तिसुखमुद्रा उदित होती है।
  • ऐसी परिस्थिति मे हठपूर्वक कर्मों का त्याग करने की अपेक्षा कोई ऐसा उपाय ही सफल हो सकता है, जिसके अन्तर्गत शास्त्रविहित कर्म करते हुए ही कर्मासक्ति मिट जाएं और मनुष्य को कल्याण की प्राप्ति हो जाए।
  • प्रायश्चित (सं.) [सं-पु.] 1. अपने किसी व्यवहार, भूल, दोष आदि के कारण होने वाला दुख या कष्ट ; पछतावा 2. पाप का मार्जन करने के लिए किया जाने वाला शास्त्रविहित कर्म 3.
  • भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥26॥
  • भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥26॥
  • इससे यह स्पष्ट हैं कि यदि सामान्य रीति से ये शास्त्रीय धर्म होते तो जैसे शिल, उ × छादि करने से पाप नहीं लिखा, वैसे इनके करने से भी पाप न लिखते ; क्योंकि शास्त्रविहित कार्य करने में पाप हो ही नहीं सकते।
  • महापुरुष अपने संकेत, वचन और क्रिया से ऐसी कोई बात प्रकट न करें जिससे उन सकाम पुरुषों की शास्त्रविहित शुभ कर्मों में अश्रद्धा, अविश्वास या अरूचि पैदा हो जाए और वे उन कर्मों का त्याग कर दें, क्योंकि ऐसा करने से उनका पतन हो सकता है।
  • भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥
  • भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥
  • महापुरुष अपने संकेत, वचन और क्रिया से ऐसी कोई बात प्रकट न करें जिससे उन सकाम पुरुषों की शास्त्रविहित शुभ कर्मों में अश्रद्धा, अविश्वास या अरूचि पैदा हो जाए और वे उन कर्मों का त्याग कर दें, क्योंकि ऐसा करने से उनका पतन हो सकता है।
  • जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥ भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥ प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
  • जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥ भावार्थ: परमात्मा के स्वरूप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्ति वाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे, किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभाँति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए॥ 26 ॥ प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।
  • समाधि के अभ्यास से ऐसा समाधिस्थ पुरुष जब समाधि में रहता है तो उसे सुषुप्ति अवस्था की भांति संसार का बिलकुल भान नहीं रहता और जब वह समाधि से उठकर कार्यरत होता है तो बिना कामना, संकल्प, कर्तापन के अभिमान के ही सारे कर्म होते रहते हैं और उसके वे सभी कर्म शास्त्रविहित होते हैं.
  • दीखने में ऊपरी तौर पर काव्य का संपूर्ण ढाँचा कथात्मक लंबी मुक्तक कविताओं के संग्रह जैसा है, जिसमें प्रत्येक पात्र (स्त्री-पात्र) की कथा स्वतंत्रा रूप से प्रायः जन्म लेती और वहीं समाप्त हो जाती है, प्रबंध काव्य के लिए आवश्यक शास्त्रविहित कथावस्तु के विकास, उत्थान-पतन और फल-परिणाते आदि की नियमित संरचना का पालन यहाँ नहीं किया गया है।
  • काकपद (सं.) [सं-पु.] 1. किसी वाक्य में छूटे हुए शब्द का स्थान बताने के लिए पंक्ति के नीचे बनाया जाने वाला चिह्न ; हंसपद ; त्रुटिका (^) 2. कौए के पद का परिमाण जो शिखा का शास्त्रविहित परिमाण है 3. एक रतिबंध 4. हीरे का एक दोष।
  • दीखने में ऊपरी तौर पर काव्य का संपूर्ण ढाँचा कथात्मक लंबी मुक्तक कविताओं के संग्रह जैसा है, जिसमें प्रत्येक पात्र (स्त्री-पात्र) की कथा स्वतंत्रा रूप से प्रायः जन्म लेती और वहीं समाप्त हो जाती है, प्रबंध काव्य के लिए आवश्यक शास्त्रविहित कथावस्तु के विकास, उत्थान-पतन और फल-परिणाते आदि की नियमित संरचना का पालन यहाँ नहीं किया गया है।
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