षडबल वाक्य
उच्चारण: [ sedbel ]
उदाहरण वाक्य
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- चतुर्थ भाव में सूर्य की मूल त्रिकोण राशि होने के बावजूद नवांश में भी सूर्य बलवान है और षडबल में उसे पूर्ण बल मिल रहा है।
- ग्रह भाव मध्य में स्थित हो या षडबल में बली हों तो उनकी दशा अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर दशा व सूक्ष्म दशा में धन,स्वास्थ्य, सुख व सम्मान मिलता है.
- यदि षष्ठेश नैसर्गिक पापी ग्रह होकर लग्न, अष्टम या दशम भाव में स्थित हो और भाव व भावाधिपति षडबल में कमजोर हांे तो कैंसर या व्रण की संभावना रहती है।
- शास्त्रीय अनुमोदन एंव अब तक की परम्परा के अनुसार ग्रहो का बल षडबल के नाम से जाना जाता है, फिलहाल हम इसी को केन्द्र में रख कर इस पर चर्चा करेंगे.
- ग्रह की प्रबलता षडबल से देखना होगी।>> प्रबल ग्रह का प्रभाव लग्न चंद्रमा पंचम, नवम, दशम, लाभ स्थान पर देखा जाए।>> ग्रह का आपसी संबंध, नक्षत्र में या नवांश में भी देखना होगा।
- जन्मकुंडली में जो ग्रह षडबल में कमजोर व पाप पीड़ित (युति, दृष्टि या अशुभ भाव के स्वामी) हो, परस्पर महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा में मृत्यु देते हैं।
- शास्त्रीय अनुमोदन एंव अब तक की परम्परा के अनुसार ग्रहो का बल षडबल के नाम से जाना जाता है, फिलहाल हम इसी को केन्द्र में रख कर इस पर चर्चा करेंगे.
- लग्नेश चाहे शुभ ग्रह हो या क्रूर, यदि वह षडबल, स्थानबल, कालबल, दिक्बल, चेष्टाबल और दृग्बल में बली हो और शुभ वर्गों में स्थित हो, तो अच्छे फल प्रदान करता है।
- मैंने विभिन् न ज् योतिषिय नियमों को आज के परिप्रेक्ष् य में टेस् ट करने के लिए ग्रहों की षडबल शक्ति को उपयोग में लेने की कोशिश की, लेकिन वे आज के समय में पूरी तरह से सही नहीं है।
- पंचम भाव, पंचमेश, कारक गुरु, सिंह राशि व सूर्य षडबल में कमजोर हांे और उनके ऊपर पापी ग्रहों (मंगल, केतु, राहु, शनि, षष्ठेश) का प्रभाव हो, तो पहले एसिडिटी, अल्सर और फिर कैंसर होता है।
- लिखने का तात्पर्य यह है कि किसी भी कुंडली में कोई ग्रह जब जवान अवस्था में हो और अंश बल में 120 से 180 में हो, उच्च नवांश में हो, मित्र राशि में हो, षडबल में बलवान हो, भाग्येश कर्मेश अस्त न हो और शुभ ग्रह (कारक ग्रह) की दशा चलती हो तभी शुभ फल मिल सकते हैं।
- उत्तर: वैदिक ज्योतिष पद्धति के अनुसार फलित करते समय जन्म लग्न, भाव चलित, षोडश वर्ग, षडबल, विंशोत्तरी दशा, योगिनी दशा आदि का प्रयोग किया जाता है और ग्रह की शुभता अशुभता की गणना ग्रहों की राशि अनुसार की जाती है जबकि कृष्णमूर्ति पद्धति में फलित करने के लिए जन्म लग्न, निरयण भाव चलित, भावों और ग्रहों के नक्षत्र स्वामी और नक्षत्र उप स्वामी की विंशोत्तरी दशांतर्दशा का प्रयोग किया जाता है और ग्रहों की शुभता-अशुभता उनके नक्षत्र और नक्षत्र उप स्वामी से जानी जाती है।
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