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संस्कृत काव्यशास्त्र वाक्य

उच्चारण: [ sensekrit kaaveyshaasetr ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के मुखयतः तीन हेतु गिनाये गये हैं-प्रतिभा या शक्ति, व्युत्पत्ती या बहुज्ञता।
  • संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्यों-मम्मट, अभिनवगुप्त, विश्वनाथ, जगन्नाथ आदि ने रसों की संख्या नौ मानी है।
  • उनके छंद संस्कृत काव्यशास्त्र से नहीं आए बल्कि लोकगीतों, पारसी थियेटर और उर्दू गायन से आए।
  • इसके आधार पर संस्कृत काव्यशास्त्र में उपलब्ध महाकाव्य के लक्षणों का सार इस प्रकार किया जा सकता है-
  • संस्कृत काव्यशास्त्र के आद्याचार्य भरत मुनि ने अपने विख्यात रससूत्र में रस निष्पत्ति पर विचार करते हुए लिखा-
  • इसके आधार पर संस्कृत काव्यशास्त्र में उपलब्ध महाकाव्य के लक्षणों का सार इस प्रकार किया जा सकता है:
  • इसके आधार पर संस्कृत काव्यशास्त्र में उपलब्ध महाकाव्य के लक्षणों का सार इस प्रकार किया जा सकता है:
  • इसके आधार पर संस्कृत काव्यशास्त्र में उपलब्ध महाकाव्य के लक्षणों का सार इस प्रकार किया जा सकता है-
  • देवेन्द्र कौशि क को जब मैं ले आया, उसने अपने अंडर संस्कृत काव्यशास्त्र पर ही काम करवाया.
  • विश्व में आज भी भरत के नाट्यशास्त्र से लेकर संस्कृत काव्यशास्त्र के विभिन्न स्कूलों का किसी न किसी रूप में जिक्र मिलेगा।
  • और गर शास्त्रीय मान्यताओं की ही बात करनी हो तो संस्कृत काव्यशास्त्र में प्रतिभा की चरण वंदना के ढेरों पद मिल जाएंगे।
  • मेरा आभार प्रकट करके आपने जो सम्मान दिया उसके लिये धन्यवाद! वस्तुतः श्रृंगार-रस के संदर्भ में सौन्दर्यशास्त्र, संस्कृत काव्यशास्त्र का अभिन्न अंग है.
  • उन्होंने माँग की कि हिंदी के साहित्यचिंतक अपनी देशीय जमीन अर्थात् संस्कृत काव्यशास्त्र के आधार पर आधुनिक युग के नए साहित्यिक मापदंड तैयार करें।
  • उन्होंने माँग की कि हिंदी के साहित्यचिंतक अपनी देशीय जमीन अर्थात् संस्कृत काव्यशास्त्र के आधार पर आधुनिक युग के नए साहित्यिक मापदंड तैयार करें।
  • उन्होंने माँग की कि हिंदी के साहित्यचिंतक अपनी देशीय जमीन अर्थात् संस्कृत काव्यशास्त्र के आधार पर आधुनिक युग के नए साहित्यिक मापदंड तैयार करें।
  • सलिल भाई, संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के विभिन्न अवयवों की इतनी सूक्ष्मता से विवेचन मिलता है कि उन्हें याद रखना कठिन हो जाता है।
  • संस्कृत काव्यशास्त्र के इतिहास में उन्होंने जीव गोस्वामी का जन्म शाके 1445, सम्वत् 1580 और मृत्यु शाके 1540, सम्वत् 1675 मानी है ।
  • इसमें ख़ास बात यह है कि वह न तो संस्कृत काव्यशास्त्र के किसी सिद्धांत से और न तो अंग्रेजी के किसी आलोचक से अभिभूत थे.
  • संस्कृत काव्यशास्त्र में ‘अलंकार ' शब्द विविध काव्यांगों का बोधक अवश्य रहा है, परन्तु ‘अलंकृत' शब्द इस युग की कविता का ही विशेषण हो सकता है लक्षण-ग्रंथों का नहीं.
  • अंग्रेजी तथा प्राचीन संस्कृत काव्यशास्त्र का गंभीर अध्ययन करके कन्नड में आलोचना साहित्य के लिए निश्चित मार्ग दर्शन करनेवालों में डी. वी. गुंडप्पा, मास्ति वेंकटेश अयंगार, ए.आर. कृष्णशास्त्री तथा एम.
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