सन्यासी विद्रोह वाक्य
उच्चारण: [ senyaasi videroh ]
उदाहरण वाक्य
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- बंकिम के विख्यात उपन्यास को जिस सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में रचा गया, वह भी वास्तव में एक किसान आंदालन था, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे।
- बंकिम के विख्यात उपन्यास को जिस सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में रचा गया, वह भी वास्तव में एक किसान आंदालन था, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे.
- यह उपन्यास अंग्रेजी शासन, जमींदारों के शोषण व प्राकृतिक प्रकोप (अकाल) में मर रही जनता को जागृत करने हेतु अचानक उठ खड़े हुए सन्यासी विद्रोह पर आधारित है।
- बंकिमचन्द्र जी ने सन् 1882 में अपनी इस रचना “ वन्दे मातरम् को अपने उपन्यास ” आनन्द मठ ”, जिसकी कथावस्तु सन्यासी विद्रोह पर आधारित है, में सम्मिलित किया।
- बंकिम के विख्यात उपन्यास को जिस सन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि में रचा गया, वह भी वास्तव में एक किसान आंदालन था, जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल थे।
- इसीतरह ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ हिंदू और मुसलामान किसानों के साझा विद्रोह क सन्यासी विद्रोह करार दिया गया और वंदे मातरम के जरिये वह हिंदू राष्ट्रवाद का मुख्य आधार बन गया।
- बंकिम बाबू के सन्यासी विद्रोह और १ ७७ ३ के बाद से तीस साल तक चले असली ' सन्यासी और फ़कीर विद्रोह ' के बीच बड़े अंतर थे मगर इस पर कभी अलग से चर्चा करूँगा।
- १ ब्रिटिश नीतियों का सबसे घातक परिणाम भारत मे पड़ने वाले बार बार के अकाल थे सन 1770 के बंगाल अकाल से उस प्रान्त की १ / ३ आबादी मरी थी इस के चलते ही सन्यासी विद्रोह शुरू हुआ था देखे आनंदमठ
- मनुष्य की स्वाभाविक प्रतिरोध की इस चेतना का मूल्य न आंकने के चलते ही ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हुए सन्यासी विद्रोह, मोपला विद्रोह और यहां तक कि 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम को भी एक विद्रोह कह दिया जाता है।
- मैं ज़्यादा कुछ नहीं कहूंगा … बस इतनी सलाह कि बंकिम की वह किताब पढ़ ली जानी चाहिये और उन कारणो की तलाश की जानी चाहिये जिसकी वज़ह से उस दौर में वह अंग्रेज़ों की जगह मुसलमानों के ख़िलाफ़ सन्यासी विद्रोह की गाथा कह रहे थे।
- बस फिर क्या था? पहाड़िया विद्रोह, सन्यासी विद्रोह और संताल विद्रोह की भूमि संताल परगना में सखाराम देवोस्कर के शिष्यत्व में अरविंद घोष और वारिंद्र घोष की क्रांतिकारी विरासत तो थी ही, अमर-शहीद शशिभूषण राय, राम राज जेजवाड़े, पं० विनोदानंद झा समेत अनगिनत क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता संग्राम की मशाल थाम रखी थी।
- १ ७७ २-१ ७ ८ ० से शरू हुए इस पहाड़िया विद्रोह को स्वाधीनता संग्राम का बिगुल हम मानते है, जो आगे चलते हुए, उस इलाके के सन्यासी विद्रोह और संताल विद्रोह से गुजरते हुए १ ८ ५ ७ के महान प्रथम स्वाधीनता संग्राम तक पहुंचा था.
- बस फिर क्या था? पहाड़िया विद्रोह, सन्यासी विद्रोह और संताल विद्रोह की भूमि संताल परगना में सखाराम देवोस्कर के शिष्यत्व में अरविंद घोष और वारिंद्र घोष की क्रांतिकारी विरासत तो थी ही, अमर-शहीद शशिभूषण राय, राम राज जेजवाड़े, पं० विनोदानंद झा समेत अनगिनत क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता संग्राम की मशाल थाम रखी थी।
- बस फिर क्या था? पहाड़िया विद्रोह, सन्यासी विद्रोह और संताल विद्रोह की भूमि संताल परगना में सखाराम देवोस्कर के शिष्यत्व में अरविंद घोष और वारिंद्र घोष की क्रांतिकारी विरासत तो थी ही, अमर-शहीद शशिभूषण राय, राम राज जेजवाड़े, पं ० विनोदानंद झा समेत अनगिनत क्रांतिकारियों ने स्वाधीनता संग्राम की मशाल थाम रखी थी।
- 1948 के भारत पाक बंटवारे में मरे लाखों लोगों को भी याद करो, 1943 के सैनिक विद्रोह को भी याद करो, काकोरी केस को भी याद करो, मैनपुरी केस को, दिल्ली षडयंत्र, गदर पार्टी, बंगभंग आंदोलन, कूका विद्रोह, 1857 की क्रांति और उससे पहले के सन्यासी विद्रोह (1761) को भी याद करो।
- मतुआ आंदोलन, नील विद्रोह, सन्यासी विद्रोह, मुंडा संथाल विद्रोह, चुआड़ विद्रोह ने, चंडाल आंदोलन और तेभागा आंदोलन ने बंगाल की किसान जातियों को जैसे एकजुट किया और हाशिये पर रहे वर्चस्ववाद की वापसी भारत विभाजन से सुनिश्चित हुई, वहीं करिश्मा पंजाब की हिंदू, सिख और पंजाबी एकता को तहस नहस करने के लिए अस्सी और नब्वे के दशक में दोहराया गया।
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