सारक वाक्य
उच्चारण: [ saarek ]
"सारक" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य-वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म”ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।
- बाँस सारक, ठंडा, शुक्रवीज की बीमारी को ठीक करनेवाला, स्वाद को ठीक करनेवाला, मूत्राशय को शुद्ध करनेवाला, संकोचक द्रव्यों से भरपूर, कफ एवं पित्त को ठीक करनेवाला तथा घाव एवं सूजन में प्रभावी दवा है।
- “”रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण: पाचर: सर:।“” अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य-वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म"ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।
- गुण-चरपरी, कडुवी,रूखी, सारक,अत्यंत गरम, तीक्ष्ण, दाह कारक तथा कसैली है | यह अग्नि को बढाने वाली एवं उदर पीडा को शाँत करने वाली है और घाव,पाण्डुरोग तथा व्रण-विषर्प को नष्ट करती है | मालकांगनी मेधाजनक, प्र कारक, पुष्टिदायक,
- अपामार्ग कड़वा, कसैला, तीक्ष्ण, दीपन, अम्लता (एसिडिटी) नष्ट करने वाला, रक्तवर्द्धक, पथरी को गलाने वाला, मूत्रल, मूत्र की अम्लता को नष्ट करने वाला, पसीना लाने वाला, कफ नाशक और पित्त सारक अदि गुणों से युक्त पाया गया है।
- आयुर्वेद ग्रंथ ' भावप्रकाश ' के मुताबिक-' लहसुन वृष्य स्निग्ध, ऊष्णवीर्य, पाचक, सारक, रस विपाक में कटु तथा मधुर रस युक्त, तीक्ष्ण भग्नसंधानक (टूटी हड्डी जोड़ने वाला), पित्त एवं रक्तवर्धक, शरीर में बल, मेधाशक्ति तथा आँखों के लिए हितकर रसायन है।
- अपामार्गस्वाद मे कटु, तिक्त स्वाद, उष्णवीर्य वाला, तीष्ण, शरीर में दीपन, पेट में पाचन, आतो में सारक, रोचक, अति मात्रा में वमन करनेवाला, ग्राही, शिरोविरेचन [बिजततंडुल] तथा कफ, मेद, वात, अर्श, कडू, उदर, आम, शूल, हिक्का और अपची का नाश करनेवाला होता हैं.
- ब्राह्मी के गुण-दोष एवं प्रभाव आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘ भाव प्रकाश निघन्टू ' के अनुसार ब्राह्मी शीतल, हल्की, सारक, मेधाकारक (बुध्दि वर्धक) कसैली, कड़वी, आयुवर्धक रसायन, स्वर एवं कंठ को उत्तम करने वाली, स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, प्रमेह, रक्त विकार, खाँसी, विष, सूजन और ज्वर को हरने वाली होती है।
- “” रसोनो बृंहणो वृष्य: स्गिAधोष्ण: पाचर: सर: । “” अर्थात् लहसुन वृहण (सप्तधातुओं को बढ़ाने वाला, वृष्य-वीर्य को बढ़ाने वाला), रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, म ” ाा, शुक्र स्निग्धाकारक, उष्ण प्रकृत्ति वाला, पाचक (भोजन को पचाने वाला) तथा सारक (मल को मलाशय की ओर धकेलने वाला) होता है।
- बेल का पत्ता संकोचक, पाचक, त्रिदोष (वात, पित और कफ) विकार को नष्ट करने वाला, कफ नि: सारक, व्रणशोथहर (घाव की सूजन को दूर करने वाला), शोथ (सूजन) को कम करने वाला, स्थावर (विष) तथा मधुमेह (डायबिटीज), जलोदर (पेट में पानी का भरना), कामला (पीलिया), ज्वर (बुखार) आंखों से तिरछा दिखाई देना आदि में लाभ पहुंचाता है।
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