सियाराम शरण गुप्त वाक्य
उच्चारण: [ siyaaraam shern gaupet ]
उदाहरण वाक्य
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- सियाराम शरण गुप्त की बापू कविता में गाँधीवाद के प्रति अटूट आस्था व अहिंसा, सत्य, करूणा, विश्व-बधुत्व, शान्ति आदि मूल्यों का गहरा प्रभाव है।
- गोविंद मिश्र: सियाराम शरण गुप्त ने जिस समय ' नारी ' नाम का उपन्यास लिखा था, उस समय नारी-विमर्श नाम की चीज जानी ही नहीं जाती थी.
- मेरे विचार में यह आलेख 1963 तथा 1964 के बीच में लिखा गया, क्योंकि इसको लिखते समय मैथिलीशरण गुप्त के अनुज सियाराम शरण गुप्त की मृत्यु हो चुकी थी जो 1963 में हु ई.
- इस युग में मैथिलीशरण गुप्त के ‘किसान ' (1915), गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही' के ‘कृषक-क्रंदन' (1916) और सियाराम शरण गुप्त के ‘अनाथ'(1917) में किसान और श्रमजीवी के प्रति जमींदार और पुलिस आदि के द्वारा किए गए घेर अत्याचारों का निरूपण हुआ है।
- मैथिलीशरण गुप्त और सियाराम शरण गुप्त के तथा महादेवी के बीच हुए इन चार वर्षों क्क1946-50त्र् के पत्रा व्यवहार में महादेवी के सारे पत्रा ÷साहित्यकार संसद ' के लेटर पैड पर लिखे गये हैं और पता 1, एल्गिन रोड, इलाहाबाद वाला दिया गया है।
- कालेलकर, विनय मोहन शर्मा, रामधारी सिंह ‘दिनकर', भगवतशरण उपाध्याय, लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय, धर्मवीर भारती,जयप्रकाश भारती,श्रीकृष्ण सरल, गजानन माधव मुक्तिबोध, कुँवर नारायण, शमशेर बहादुर सिंह, आलोक मेहता, सियाराम शरण गुप्त, अमृत लाल नागर,
- इन कवियों में पं. माखनलाल चतुर्वेदी, (एक भारतीय आत्मा) श्री सियाराम शरण गुप्त, पं. बालकृष्ण शर्मा नवीन ', श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान, श्री हरिवंशराय ' बच्चन ', श्री रामधाारी सिंह ' दिनकर, ठाकुर गुरुभक्त सिंह और पं. उदयशंकर भट्ट (मुख्य हैं) ।
- उस समय के अन्य बहुतेरे लेखकों मसलन बड़े भाई मैथिलीशरण गुप्त की छाया में खोए सियाराम शरण गुप्त से या प्रेमचंद की महिमा में लुप्त भगवती प्रसाद बाजपेयी से कुछ तो वे अपने रंग-रुप के नाते याेंही अलग थे और कुछ अज्ञेय की अज्ञेयता या भूमिगत क्रांतिकारी आंदोलन से संबध्द उनकी रहस्यात्मक प्रसिध्दि ने उस पर अतिरिक्त रंग चढ़ा दिया था जिसे वे हिन्दी के प्रचलित बातूनी माहौल में अपनी मितभाषिता द्वारा और भी बढ़ाते रहते थे।
- उस समय के अन्य बहुतेरे लेखकों मसलन बड़े भाई मैथिलीशरण गुप्त की छाया में खोए सियाराम शरण गुप्त से या प्रेमचंद की महिमा में लुप्त भगवती प्रसाद बाजपेयी से कुछ तो वे अपने रंग-रुप के नाते याेंही अलग थे और कुछ अज्ञेय की अज्ञेयता या भूमिगत क्रांतिकारी आंदोलन से संबध्द उनकी रहस्यात्मक प्रसिध्दि ने उस पर अतिरिक्त रंग चढ़ा दिया था जिसे वे हिन्दी के प्रचलित बातूनी माहौल में अपनी मितभाषिता द्वारा और भी बढ़ाते रहते थे।
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