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सुदामा चरित वाक्य

उच्चारण: [ sudaamaa cherit ]
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  • सुदामा चरित लिखने का सिलसिला इसके उपरांत भी जारी रहा और सुदामा चरित के यशस्वी लेखकों के रूप में आलम का नाम भी आता है जिसने संवत 1623 में सुदामा चरित लिखा।
  • सुदामा चरित लिखने का सिलसिला इसके उपरांत भी जारी रहा और सुदामा चरित के यशस्वी लेखकों के रूप में आलम का नाम भी आता है जिसने संवत 1623 में सुदामा चरित लिखा।
  • सुदामा चरित लिखने का सिलसिला इसके उपरांत भी जारी रहा और सुदामा चरित के यशस्वी लेखकों के रूप में आलम का नाम भी आता है जिसने संवत 1623 में सुदामा चरित लिखा।
  • अब तक जिन किताबों को पूर्णतः ऑनलाइन किया जा चुका है वे हैं-मैथिली शरण गुप्त जी की सैरन्धी (खंडकाव्य), साकेत (प्रथम सर्ग) और नरोत्तम दास का सुदामा चरित
  • कृष्ण और सुदामा की चर्चा से कवि श्री नरोत्तमदास जी की रचना ' सुदामा चरित ' का स्मरण हो आया, रस से सराबोर इस काव्य को को पढ़ने का अपना अलग ही आनन्द हैः
  • सुझाव-कृपया महाकवि “नरोत्तम दस” को भी अपनी सूची में सम्मिलित करें जिन्होंने सुदामा चरित, ध्रुव चरित तथा कुछ अन्य काव्यों की रचना की, जिनकी चर्चा के स्रोत और कही नहीं हैं | भारत-दर्शन अतिथि-पुस्तिका (
  • एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि नरोत्तमदास, जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘ सुदामा चरित ' (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है।
  • सुदामा चरित के संबंध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कहा हैः-‘यद्यपि यह छोटा है पर इसकी रचना बहुत सरस और हृदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है भाषा भी बहुत परिमार्जित है और व्यवस्थित है ।
  • सुदामा चरित ' के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफ़ी समय तक प्रामाणिकता की परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका।
  • डॉ. रामकुमार वर्मा ने नरोत्तमदास के काव्य के संदर्भ में लिखा हैः-‘ कथा संगठन, ' ‘ नाटकीयता ', ‘ विधा = न, भाव, भाषा, द्वन्द्व ' आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत सुदामा चरित श्रेष्ठ रचना है।
  • वस्तुतः इनके जन्मकाल के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मत प्रगट किए हैं परन्तु ‘शिव सिंह सेंगर ' व ‘जार्ज ग्रियर्सन' के मत अधिक समीचीन व प्रमाणित प्रतीत होते है जिसके आधार पर सुदामा चरित का रचना काल सम्वत् 1582 में न होकर सन् 1582 अर्थात सम्वत् 1636 होता है।
  • ' सुदामा चरित ' के एक प्रसंग में जब द्वारिका के नाथ श्रीकृष्णचंद जी दीन सुदामा द्वारा छिपाई हुई पोटली को निकालकर उसमें बँधे चावल एक-एक मुट्ठी करके खाने लगे और उसके बदले में अपने पास की सभी सुविधाएँ एक-एक करके देने लगे, तब उनकी पत्नी रुक्मनी ने उनका हाथ पकड़ लिया।
  • कथा में प्रथम दिवस श्रीमद् भागवत महात्म्य, द्वितीय दिवस कुन्ती चरित्र व परीक्षित जन्म, तृतीय दिवस गजेन्द्र मोक्ष व वामन अवतार, चतुर्थ दिवस श्री राम जन्म व कृष्ण जन्मोत्सव, पंचम दिवस श्रीकृष्ण बाल लीला, गोवर्धन पूजा व छप्पन भोग, षष्ठम दिवस उद्धव गोपी संवाद व रूक्मिणी विवाह तथा सप्तम दिवस सुदामा चरित व व्यास पूजन के साथ कथा का समापन होगा।
  • यही कारण है कि अनेक लोगों को यह भ्रम सताने लगता है कि इन्हें कहानी मानें या लघुकथा? उदाहरण के तौर पर ‘ हवा ', ‘ सनातन ', ‘ कूड़ा ', ‘ धुआँ ', ‘ मंजुला को तुम्हारी जरूरत है सुनंदा ', ‘ दु: ख के दिन ', ‘ यह कौन-सा मुल्क है ', ‘ और जब बन्दर भौंका ', ‘ सुदामा चरित ' आदि कथा-रचनाएँ देखी जा सकती हैं।
  • खड़ी बोली मध्यकाल रूप कबीर, नानक, दादू, मलूकदास, रज्जब आदि संतों ; गंग की ' चन्द छन्द वर्णन की महिमा ', रहीम के ' मदनाष्टक ', आलम के ' सुदामा चरित ', जटमल की ' गोरा बादल की कथा ', वली, सौदा, इन्शा, नज़ीर आदि दक्कनी एवं उर्दू के कवियों, ' कुतुबशतम ' (17 वीं सदी), ' भोगलू पुराण ' (18 वीं सदी), संत प्राणनाथ के ' कुलजमस्वरूप ' आदि में मिलता है।
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