सूर्य मण्डल वाक्य
उच्चारण: [ surey mendel ]
उदाहरण वाक्य
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- उस समय आदि शक्ति जगदम्बा देवी कुष्मांडा के रूप में वनस्पतियों एवं सृष्टि की रचना के लिए जरूरी चीजों को संभालकर सूर्य मण्डल के बीच में विराजमान थी।
- ह्रदय के भीतर शयन करने वाला विज्ञानमय तथा सूर्य मण्डल के भीतर स्थित हिरण्यमय पुरुष ब्रह्म है, क्योंकि उसमें ब्रह्म के धर्मों का ही उपदेश किया गया है।
- वेदों एवं पुराणों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी इन्ही निष्कर्षों को कहता हैं कि सूर्य मण्डल का केन्द्र व नियन्ता होने के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का ही सदस्य हैं।
- इसमें जो रस सूर्य मण्डल की ओर फेंका जाता है, उससे आगAेय पुरूष और जो रस चान्द्र की सौम्य दिशा में जाता है, उससे स्त्री शरीर का निर्माण होता है।
- ईशोपनिषद्में भक्त समस्त प्राणिमात्र का पोषण करने वाले सत्य स्वरूप सर्वेश्वर, जगदाधारपरमेश्वर से कहता है कि हे सत्य स्वरूप! आपका श्रीमुख स्वर्णिम, ज्योतिर्मय सूर्य मण्डल रूप पात्र से ढका हुआ है।
- भुवर्लोक→ · सूर्य मण्डल · चंद्र मण्डल · नक्षत्र मण्डल · बुद्ध मण्डल · शुक्र मण्डल · मंगल मण्डल · बृहस्पति मण्डल · शनि मण्डल · सप्तर्षि मण्डल · ध्रुव मण्डल
- स्थानीय भक्तमंडल के नंदलाल चावला ने बताया कि शाकाहार के लिए रैली निकाली गई जो कस्बे के प्रमुख मार्गों से होती हुई सूर्य मण्डल पहुंची, जहां सत्संग का आयोजन किया गया।
- इसमें जो रस सूर्य मण्डल की ओर फेंका जाता है, उससे आगAेय पुरूष और जो रस चान्द्र की सौम्य दिशा में जाता है, उससे स्त्री शरीर का निर्माण होता है।
- स्वयंभू मण्डल की वाक् को वाचस्पत्य या वैकुरा, परमेष्ठि की वाक् को ब्राह्मणस्पत्य या सुब्रह्मण्या, सूर्य मण्डल की वाक् को ऎन्द्र अथवा गौरीविता तथा चन्द्रमा युक्त पृथ्वी की वाक् को भौम या आंभृणि कहते है।
- ईशोपनिषद् में भक्त समस्त प्राणिमात्र का पोषण करने वाले सत्य स्वरूप सर्वेश्वर, जगदाधार परमेश्वर से कहता है कि हे सत्य स्वरूप! आपका श्रीमुख स्वर्णिम, ज्योतिर्मय सूर्य मण्डल रूप पात्र से ढका हुआ है।
- स्वयंभू मण्डल की वाक् को वाचस्पत्य या वैकुरा, परमेष्ठि की वाक् को ब्राह्मणस्पत्य या सुब्रह्मण्या, सूर्य मण्डल की वाक् को ऎन्द्र अथवा गौरीविता तथा चन्द्रमा युक्त पृथ्वी की वाक् को भौम या आंभृणि कहते है।
- त्रेता युग (रामायण काल) एवं द्वापर युग (महाभारत काल) में भृगु क्षेत्र का यह भू-भाग सूर्य मण्डल के उत्तर कोशल राजवंश के अवध काशी एवं मगध वैशाली राज्यों का सीमांत क्षेत्र था ।
- -इसी प्रकार वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंचमण्डल क्रम वाली हैः-1. चन्द्र मण्डल 2. पृथ्वी मण्डल 3. सूर्य मण्डल 4. परमेष्ठी मण्डल (आकाशगंगा का) 5. स्वायम्भू मण्डल (आकाशगंगाओं से परे)..
- सूर्यमण्डल समसूत्र से अपनी कक्षा के समीप में स्थित परन्तु शरबश से पृथक् स्थित चन्द्रमण्डल जब हो तो सिनीवाली होती है, सूर्य मण्डल में आधे चन्द्रमा का प्रवेश जब हो जाये तो दर्श होता है, सूर्यमण्डल तथा चन्द्रमण्डल जब समसूत्रों में हो तो कुहू होती है, अर्थात् चन्द्रमा के अदृश्यमान होने पर।
- सूर्यमण्डल समसूत्र से अपनी कक्षा के समीप में स्थित परन्तु शरबश से पृथक् स्थित चन्द्रमण्डल जब हो तो सिनीवाली होती है, सूर्य मण्डल में आधे चन्द्रमा का प्रवेश जब हो जाये तो दर्श होता है, सूर्यमण्डल तथा चन्द्रमण्डल जब समसूत्रों में हो तो कुहू होती है, अर्थात् चन्द्रमा के अदृश्यमान होने पर।
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