सेना डाक सेवा वाक्य
उच्चारण: [ saa daak saa ]
"सेना डाक सेवा" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- जिला डाक व्यवस्था, राजा महराजाओं की अनूठी डाक सेवा, हरकारा, कबूतर डाक सेवा, हवाई डाक सेवा, भारतीय सेना डाक सेवा, स्पीड पोस्ट सेवा के साथ-साथ बचत बैंक, मनीआर्डर, आर 0 एल 0 ओ 0 जैसे तमाम पड़ाव इस पुस्तक में विवेचित हैं।
- 1896 में सूडान तथा 1903 में सोमालिया में ये डाक घर रहे. 1900-1904 तक चीन और तिब्बत में सैनिक डाक घरों ने सराहनीय सेवाऐं दीं.प्रथम विश्वयुद्द में तो सेना डाक सेवा के कई जवान शहीद हुए.उस दौरान पनडुव्बियों के आतंक के चलते कई जगहों पर डाक सेवाऐं काफी बाधित रही थी.
- अलग कोर बनने के बाद सेना डाक को बड़ी भूमिका में आने का मौका मिला. यह नियमित सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी.इसके पहले इस सेवा के जवान अपने कंधे पर सेना सेवा कोर का चिन्ह पहनते थे,जो सेना डाक सेवा हो गया.सेना डाक सेवा मे 25 फीसदी जवान ही नियमित सेना के होते हैं,जबकि 75 फीसदी डाक विभाग से प्रतिनियुक्ति पर आते है.
- तमाम जंगों मे इन्होने जो शौर्य और बहादुरी दिखायी, उसी के चलते इस कोर के जवानों को वीर चक्र तथा शौर्य चक्र से लेकर तमाम सम्मान हासिल हुए.आज सेना डाक सेवा कोर के जवान अन्य नियमित सैन्य टुकडियों जैसी ही हैसियत रखते हैं.भारतीय सेना 1778 के पहले तक अपनी डाक व्यवस्था हरकारों के मार्फत ही संचालित करती थी.1778 मे सेना प्रमुख को अपने हरकारों को नियुक्त करने का अधिकार मिला.
- आजादी के बाद सारे तथ्यों की समीक्षा के बाद यह फैसला हालाँकि रोक दिया गया. पहले सेना डाक सेवा,सेना सेवा कोर की एक विंग के रूप में कार्य करती थी और इसका नाम इंडियन आर्मी पोस्टल सर्विस था.1947 में और बेहतर तंत्र खड़ा करने का प्रयास हुआ.जम्मू-कशमीर में जब सेना बहुच कठिन मोरचे पर तैनात थी तो जापान से लौटे सेना डाक सेवा के जवानों को वहां तैनात किया गया.
- आजादी के बाद सारे तथ्यों की समीक्षा के बाद यह फैसला हालाँकि रोक दिया गया. पहले सेना डाक सेवा,सेना सेवा कोर की एक विंग के रूप में कार्य करती थी और इसका नाम इंडियन आर्मी पोस्टल सर्विस था.1947 में और बेहतर तंत्र खड़ा करने का प्रयास हुआ.जम्मू-कशमीर में जब सेना बहुच कठिन मोरचे पर तैनात थी तो जापान से लौटे सेना डाक सेवा के जवानों को वहां तैनात किया गया.
- यह भी पूर्णतः प्रशिक्षित एवम् शस्त्र सुसज्जित स्वयं में एक पूरी फौज ही है जो पूरे देश में सुदूर जंगलों, बीहड़ बियाबानों तथा दुर्गम पहाड़ी चोटियों पर युद्ध अथवा शांतिकाल में कभी भी और कहीं भी चाहे चार सैनिकों की चैंकी ही क्यों न हो, घर से या कहीं से भी उन सैनिकों के नाम आया एक अदद पोस्टकार्ड भी सेना डाक सेवा का नौजवान उन्हें वहीं उनके निर्धारित ठिकाने पर पहुंचायेगा जरूर।
- यह भी पूर्णतः प्रशिक्षित एवम् शस्त्र सुसज्जित स्वयं में एक पूरी फौज ही है जो पूरे देश में सुदूर जंगलों, बीहड़ बियाबानों तथा दुर्गम पहाड़ी चोटियों पर युद्ध अथवा शांतिकाल में कभी भी और कहीं भी चाहे चार सैनिकों की चैंकी ही क्यों न हो, घर से या कहीं से भी उन सैनिकों के नाम आया एक अदद पोस्टकार्ड भी सेना डाक सेवा का नौजवान उन्हें वहीं उनके निर्धारित ठिकाने पर पहुंचायेगा जरूर।
- ले. जनरल जी.एन.नायडू इसके पहले निदेशक बने.दिसंबर 1942 में भारत सरकार ने सेना डाक सेवा समिति का गठन करके सारे तथ्यों की समीक्षा की.समिति ने फरवरी 1943 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसके आलोक में सेना डाक को और व्यवस्थित बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ.बंबई में 1945 में सेना डाक सेवा का रिकार्ड ऑफिस भी बना,पर 1946 में 90 सालों तक विभिन्न सैन्य अभियानों में शामिल रहे सेना के डाक घरों को बंद करने का फैसला भी अचानक कर लिया गया।
- ले. जनरल जी.एन.नायडू इसके पहले निदेशक बने.दिसंबर 1942 में भारत सरकार ने सेना डाक सेवा समिति का गठन करके सारे तथ्यों की समीक्षा की.समिति ने फरवरी 1943 में अपनी रिपोर्ट दी, जिसके आलोक में सेना डाक को और व्यवस्थित बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ.बंबई में 1945 में सेना डाक सेवा का रिकार्ड ऑफिस भी बना,पर 1946 में 90 सालों तक विभिन्न सैन्य अभियानों में शामिल रहे सेना के डाक घरों को बंद करने का फैसला भी अचानक कर लिया गया।
- भारतीय जवानों की तैनाती सरहद पर हो या देश-विदेश के किसी भी कोने में हो, उनके पास अधिकतम तेजी से डाक सेवा सुलभ कराने का काम भारतीय सेना डाक सेवा कर रही है.भारतीय सेना डाक सेवा कोर की सेवाऐं भले ही तमाम कारणों से सीमित प्रचार पा सकी हों,पर वास्तविकता यह है िक यह दुनिया की सबसे तेज और समर्पित डाक सेवा का संचालन क रती है.सेना के बेस डाक घर पूरे साल चौबीसों घंटे काम करते हैं और सैनिको की सभी डाक जरूरतों को पूरा करते हैं.
- भारतीय जवानों की तैनाती सरहद पर हो या देश-विदेश के किसी भी कोने में हो, उनके पास अधिकतम तेजी से डाक सेवा सुलभ कराने का काम भारतीय सेना डाक सेवा कर रही है.भारतीय सेना डाक सेवा कोर की सेवाऐं भले ही तमाम कारणों से सीमित प्रचार पा सकी हों,पर वास्तविकता यह है िक यह दुनिया की सबसे तेज और समर्पित डाक सेवा का संचालन क रती है.सेना के बेस डाक घर पूरे साल चौबीसों घंटे काम करते हैं और सैनिको की सभी डाक जरूरतों को पूरा करते हैं.
- कोर के भीतर से कर्नल कमांडेंट के नियुक्ति की नीति 1991 में बदल दी गयी और सेना मुख्यालय ने यह फैसला लिया िक क्वार्टर मास्टर जनरल ही सेना डाक सेवा कोर का कर्नल कमांडेट होगा।इसके तहत ले. जनरल शेर अमीर सिंह 1 अक्तूबर 1991 को कोर के कर्नल कमांडेंट बने.सेना डाक सेवा कोर का निदेशक क्वार्टर मास्टर जनरल के अधीन सेना तथा वायुसेना अध्यक्ष का डाक मामलों के सलाहकार की भूमिका में भी होता है.कमांड और कोर मुख्यालयों पर उसके प्रतिनिधि अपने-अपने दायरे में इसी प्रकार की भूमिका निभाते हैं.
- दो संगठन एक-दूसरे के अनुभवों के आधार पर लगातार विकसित, पल्लवित हो रहे हैं.भारतीय डाक प्रशासन में सेना डाक सेवा को बेस सर्किल नाम से जाना जाता है.बेस सर्किल की अध्यक्षता मेजर जनरल की रैंक में अपर महानिदेशक,सेना डाक सेवा द्वारा की जाती है.दुनिया के सबसे ऊंचे रणस्थल सियाचिन से लेकर विदेश तक फैले ये डाक घर सेना के विभिन्न अंगों के लिए ही नहीं,भारतीय अर्धसैन्य बलों का भी सहारा हैं.12 लाख से अधिक सैनिको और लाखों की संख्या में अर्धसैन्य बलों के बीच ये लगातार समर्पित सेवाऐं प्रदान कर रहे हैं.
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