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हयवदन वाक्य

उच्चारण: [ heyvedn ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • 1939 में जब वे स्कूल में थीं, उन्होंने सत्यदेव दुबे के निर्देशन तले गिरीश कर्नाड के लिखे पौराणिक नाटक “ हयवदन ” में गुड़िया की भूमिका निभाई।
  • संस्कृत ग्रंथों में वर्णन आता है कि विष्णु ने दैत्यों से वेदों का उद्धार करने के लिए जो घोड़े का रूप धरा था, उसीसे वह हयवदन कहलाये।
  • यह एक गप्पी का रोज़नामचा भर है-जो न कहानी है और न संस्मरण, यदि कुछ है तो दोनों का घालमेल-जिससे हयवदन विधा पैदा हो सकती है।
  • शिक्षा, कला तथा संस्कृति मंत्रालय की ओर से गिरीश कर्नाड कृत हयवदन महेश रामजियावन के निर्देशन में २६ अक्टूबर १९८६ को महात्मा गांधी संस्थान के रंगभवन में प्रस्तुत किया गया ।
  • वे भी इस ‘ हयवदन विधा ' में इन गालियों के कुछ नमूने पेश करते हैं, लेकिन काशीनाथ सिंह (‘ काशी का अस्सी ') के आगे फीके हैं।
  • उनके नाटकों में ' ययाति ', ' तुग़लक ', ' हयवदन ', ' अंजु मल्लिगे ', ' अग्निमतु माले ', ' नागमंडल ', ' अग्नि और बरखा ' आदि बहुत प्रसिद्ध हैं।
  • आयोजकों ने तुगलक और हयवदन जैसे विलक्षण नाटकों के रचयिता कर्नाड को, जो उन्हें बादल सरकार, विजय तेंडुलकर और मोहन राकेश के समकक्ष रखते हैं, उन्हें रंगमंच के अपने अनुभवों पर बोलने के लिए बुलाया था।
  • इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.
  • इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.फिल्मोग्राफी
  • इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.
  • शुरुआती दिनों में दूबेजी की क्रिकेट के प्रति दीवानगी थी और वे एक नामी क्रिकेटर बनना चाहते थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई चले आए थे लेकिन शौकिया तौर पर एक थियेटर ग्रुप में शामिल हो गए थे| पी डी शिनॉय और निखिलजी का मार्गदर्शन रहा| गिरीश कर्नाड के पहले नाटक ययाति और हयवदन.
  • लंबे कॅरियर में उन्होंने गिरीश कर्नाड (ययाति, हयवदन), बादल सरकार (एवम इंद्रजीत, पगला घोड़ा), चंद्रशेखर कंबारा (और तोता बोला-कन्नड़ में जो कुमारस्वामी), मोहन राकेश (आधे अधूरे), विजय तेंडुलकर (गिधड़े, शांतता! कोर्ट चालू आहे) जैसे लेखकों के नाटकों के मंचन का निर्माण / निर्देशन किया।
  • स्वर्ण-युग ' कहा जा सकता है जब बंगाल के बाद केरल, कर्नाटक, असम और उड़ीसा जैसे राज्यों में नई धारा का सिनेमा विकसित हु आ. कन्नडा सिनेमा में गिरीश कारनाड, ब.व.क ारंत व गिरीश कासरावल्ली ने अपनी फ़िल्मों से एक नई ‘ सांस्कृतिक क्रांति ' पैदा की. एक नाटककार के रूप में तुग़लक़ और हयवदन से ख्याति प्राप्त कारनाड और कारंत ने वंशवृक्ष (1972) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जित किया.
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