हरिभद्र वाक्य
उच्चारण: [ heribhedr ]
उदाहरण वाक्य
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- हरिभद्र ने संस्कृत तथा प्राकृत दोनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ विपुल साहित्य की रचना की, तथा दार्शनिक ग्रन्थ भी लिखे और काव्यकृतियाँ भी।
- कुछ ज्ञान की चेतना प्रस्फुटित हुई जो आगे कुंदकुंद, सिद्धसेन, अकलंक, विद्यानंद, हरिभद्र, यशोविजय, आदि रुप में विकशीत होती गयी।
- सिद्धसेन दिवाकर (500 ई.), हरिभद्र (900 ई.), मेरुतुंग (14 वीं शताब्दी), आदि जैन दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य हैं।
- हरिभद्र, वीरसेन, कुमारनंदि, विद्यानंद, अनंतवीर्यप्रथम, वादिराज, माणिक्यनंदि आदि मध्ययुगीन जैन तार्किकों ने उनके कार्य को आगे बढ़ाया और उसे यशस्वी एवं प्रभावपूर्ण बनाया।
- मंगल शब्द के अन्य निर्वचन इस दृष्टि से आचार्य हरिभद्र सूरि ने मंगल का निर्वचन किया है-“मंग्यतेऽधिगम्यते हितमनेनेति मंगलम्।”-जिससे हित की, आत्मकल्याण की प्राप्ति हो, वह मंगल है।
- आचार्य समन्तभद्र, अकलंक, यशोविजय के सिवाय सिद्धसेन *, विद्यानंद * और हरिभद्र जैसे दार्शनिकों एवं तार्किकों ने भी स्याद्वाददर्शन और स्याद्वाद नयाय को जैन दर्शन और जैन न्याय प्रतिपादित किया है।
- आचार्य हरिभद्र, जिनभद्र, गणि क्षमाश्रमण, आचार्य हेमचंद्र, आचार्य मलयगिरि, आचार्य कुंदकुंद आदि-आदि ऐसे महान आचार्य हुए हैं, जिन्हें पढ़ने पर कोई न कोई नई बात ध्यान में आती गई।
- इन दर्शनों में दी गई युक्तियों का सुंदर संकलन हरिभद्र सूरि लिखित षड्दर्शन समुच्चय के ऊपर गुणरत्न के लिखे हुए भाष्य, कुमारिल भट्ट के श्लोकवार्तिक, और रामानुजाचार्य के ब्रह्मसूत्र पर लिखे गए श्रीभाष्य में पाया जाता है।
- इन दर्शनों में दी गई युक्तियों का सुंदर संकलन हरिभद्र सूरि लिखित षड्दर्शन समुच्चय के ऊपर गुणरत्न के लिखे हुए भाष्य, कुमारिल भट्ट के श्लोकवार्तिक, और रामानुजाचार्य के ब्रह्मसूत्र पर लिखे गए श्रीभाष्य में पाया जाता है।
- उद्योतन सूरि ने वीरभद्र आचार्य से सिद्धान्त की तथा हरिभद्र आचार्य से न्याय की शिक्षा पाकर शक संवत् ७ ०० में जावालिपुर (जालोर-राजपुताना) में वीरभद्र द्वारा बनवाये हुए ऋषभदेव के मन्दिर में अपनी कुवलयमाला पूर्ण की।
- इन दर्शनों में दी गई युक्तियों का सुंदर संकलन हरिभद्र सूरि लिखित षड्दर्शन समुच्चय के ऊपर गुणरत्न के लिखे हुए भाष्य, कुमारिल भट्ट के श्लोकवार्तिक, और रामानुजाचार्य के ब्रह्मसूत्र पर लिखे गए श्रीभाष्य में पाया जाता है।
- हरिभद्र की अनेकांतजयपताका, शास्त्रवार्तासमुच्चय, वीरसेन की सिद्धान्त एवं तर्कबहुला ध्वला-जय-धवलाटीकाएँ, वादन्यायविचक्षण, कुमारनंदि का वादन्याय *, विद्यानंद के आचार्य विद्यानंद महोदय [1], तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहस्री, आप्तपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा, युक्त्यनुशासनालंकार, अनंतवीर्य प्रथम की सिद्धिविनिश्चय टीका व प्रमाणसंग्रहभाष्य, वादिराज के न्याय-विनिश्चय विवरण, प्रमाण-निर्णय और माणिक्यनंदि का परीक्षामुख (आद्य जैन न्यायसूत्र), अकलंक के वाङमय से पूर्णतया प्रभावित एवं उसके आभारी तथा उल्लेखनीय दार्शनिक एवं तार्किक रचनाएं हैं, जिन्हें अकलंककाल (मध्यकाल) की महत्त्वपूर्ण देन कहा जा सकता है।
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