अष्ट सिद्धि वाक्य
उच्चारण: [ aset sidedhi ]
उदाहरण वाक्य
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- श्यामसुन्दर कहने लगे-रुक्मिणीजी, उपचार तो है, पर यहाँ औषधि कहाँ? रुक्मिणीजी ने कहा, महाराज, आपकी द्वारकापुरी में अष्ट सिद्धि नवनिधि निवास करती है ।
- इन मंत्रों के जाप, हवन और तर्पण के प्रयोगों के माध्यम से षट् कर्म सिद्धि, तिलक सिद्धि, अणिमादि अष्ट सिद्धि एवं स्वर्ण, यश, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपाय भी बताये गए हैं।
- ऐसे में भगवान की कृपा कैसे प्राप्त हो? क्या किया जा जिससे कम समय में ही हमारे सारे दुख-कलेश, परेशानियां दूर हो जाए? अष्ट सिद्धि और नवनिधि के दाता श्री हनुमान जी...
- इन मंर्तों के जाप, हवन और तर्पण के प्रयोगों के माध्यम से षट् कर्म सिद्धि, तिलक सिद्धि, अणिमादि अष्ट सिद्धि एवं स्वर्ण, यश, लक्ष्मी आदि की प्राप्ति के उपाय भी बताये गए हैं।
- यह यंत्र अष्ट सिद्धि व नव निधियों को देने वाला है, इसमें बिन्दु त्रिकोण एवं दो वृहद कोण वृत्त अष्टदल वृत्त षोडस दल एव तीन भूपुर होते हैं, इस यंत्र के साथ कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अनिवार्य होता है।
- परन्तु आप मुझ पर दोष लगाते हैं की मैं, नश्वर साधन प्राप्ति हेतु अष्ट सिद्धि (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व) प्राप्ति की कामना करता हूँ और इसके लिए आवश्यक सिद्धियों के प्रथम सोपान (सीढ़ी) 'अणिमा' की खोज में रत हूँ |
- श्री कुबेर कृपा यंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला, ऐश्वर्य, लक्ष्मी, दिव्यता, पद-प्राप्ति, सुख-सौभाग्य वृद्धि, अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, संतान सुख, उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि और समस्त भौतिक और परासुख देने में समर्थ है।
- यह यंत्र और मंत्र जीवन की सभी श्रेष्ठता को देने वाला, ऐश्वर्य, लक्षमी, दिव्यता, पद प्राप्ति, सुख सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि अष्ट सिद्धि, नव निधि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम स्वास्थ्य, आयु वृद्धि, और समस्त भौतिक और पराशुख देने में समर्थ है।
- (जाते हैं) (नेपथ्य में इस भांति मानो राजा हरिश्चन्द्र नहीं सुनता) (एक स्वर से) तो अब अप्सरा को भेजें? (दूसरे स्वर से) छिः मूर्ख! जिस को अष्ट सिद्धि नव निधियों ने नहीं डिगाया उसको अप्सरा क्या डिगावेंगी? (एक स्वर से) तो अब अन्तिम उपाय किया जाय।
- शंख क़ी उत्पत्ति एवं महत्व शंख भगवान विष्णु के सहयोग से देवताओं द्वारा निर्मित वह तांत्रिक अस्त्र है जिसके आरोही एवं अवरोही निनाद से शरीर क़ी तीनो नाड़ियाँ-इंगला, पिंगला एवं सुषुम्ना, अपने ऊपर चढ़े त्रिताप-दैहिक, दैविक एवं भौतिक, के दृढ आवरण का भेदन कर अष्ट सिद्धि एवं नवो निधियों को बल पूर्वक अपने पास खींच लाती हैं.
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