काव्यादर्श वाक्य
उच्चारण: [ kaaveyaadersh ]
"काव्यादर्श" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- काव्यादर्श ' का दक्षिणी भारत में अधिक प्रभाव होने के कारण (कन्नड़ भाषा में काव्यशास्त्र पर लिखे ग्रंथों में ‘ काव्यादर्श ' का प्रभाव दिखाई पड़ता है)
- कुछ विद्वान ‘ दशकुमारचरित ' को इनका ग्रंथ नहीं मानते क्योंकि अपने ग्रंथ ‘ काव्यादर्श ' में वे दोषयुक्त काव्य के प्रति बड़े कठोर हैं:-
- इस नाम का सबसे प्राचीन उल्लेख दंडीकृत काव्यादर्श (6ठी शती ई) में हुआ है, जहाँ कहा गया है कि “महाराष्ट्रीयां भाषां प्रकृष्टं” प्राकृत विदु:, सागर: सूक्तिरत्नानां सेतुबंधादि, यन्मयम्।”
- प्रोo पाठक के मत से काव्यादर्श का हेतुविषयक विभाग-भर्तृहरि (650 ईo) के आधार पर होने से काव्यादर्श की रचना 650 ईo के बाद हुई होगी।
- प्रोo पाठक के मत से काव्यादर्श का हेतुविषयक विभाग-भर्तृहरि (650 ईo) के आधार पर होने से काव्यादर्श की रचना 650 ईo के बाद हुई होगी।
- सोहनलाल द्विवेदी जी ने इस विश्वास को लेकर काव्य-साधना के क्षेत्र में प्रवेश किया कि ” उदात्त भावों को, सद्-विवेक, सद्-विचार, सद्-भावना को जगाना ही काव्यादर्श है।
- दंडी ने भी रीति के उभय प्रकार-वैदर्भी तथा गौड़ी-की अपने “ काव्यादर्श ” में बड़ी मार्मिक समीक्षा की थी, परंतु उनकी दृष्टि में काव्य में अलंकार की ही प्रमुखता रहती है।
- इसका एक प्रमुख कारण यह है कि काव्यशास्त्र के जिन मान्य सिद्धांतों का ' काव्यादर्श ' में प्रतिपादन और निर्देश मिलता है, ' दशकुमारचरित ' में उसकी असंगति और विरोध दिखाई देता है।
- दंडी ने ' काव्यादर्श ' में शब्दार्थ के चमत्कार, काव्य के बाह्य रूप अर्थात अलंकार को काव्य माना-' काव्यशोभाकरान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते ' अर्थात ' काव्य-धर्म सौंदर्य है, अलंकार पहचा न. '
- इसी प्रकार आचार्यच दण्डी ने अपने ग्रंथ काव्यादर्श में लेश, सूक्ष्म तथा हेतु अलंकारों की भी चर्चा की है, जबकि आचार्य भामह उनका निषेध करते हैं और आचार्य उद्भट ने तो इनका उल्लेख ही नहीं किया है।
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