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निम्बार्काचार्य वाक्य

उच्चारण: [ nimebaarekaachaarey ]
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  • मध्यकाल में भारत में कई प्रस्थानत्रयीभाष्यकार हुए थे यथा शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, रामानन्दाचार्य और अंतिम थे वल्लभाचार्य (१४७९ से १५३१ ई)।
  • -सत्तरवें पाटोत्सव पर विशेष-श्री निम्बार्काचार्य पीठ के वर्तमान आचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य जी महाराज का 70 वां पाटोत्सव 11 जून को किशनगढ़ के पास निम्बार्क तीर्थ, सलेमाबाद में मनाया जाएगा।
  • सबसे पहले 11 वीं सदी में निम्बार्काचार्य, 15 वीं सदी में वल्लभाचार्य, 16 वीं सदी में चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें दीन-दुख हर लेने वाले अवतारी के रूप में प्रतिष्ठित किया।
  • मध्यकाल में भारत में कई प्रस्थानत्रयीभाष्यकार हुए थे यथा शंकराचार्य, निम्बार्काचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, रामानन्दाचार्य और अंतिम थे वल्लभाचार्य (१ ४ ७ ९ से १ ५ ३ १ ई) ।
  • द्वैताद्वैतवाद की स्थापना करते हुए निम्बार्काचार्य ने कहा कि जिस प्रकार पेड़ भी सत्य है तथा शाखाएं भी सत्य हैं, उनका अलग अस्तित्वांकन दृष्टिभेद के कारण से होता है-ठीक उसी प्रकार की स्थिति जगत, जीव और ब्रह्म की है।
  • द्वैताद्वैतवाद की स्थापना करते हुए निम्बार्काचार्य ने कहा कि जिस प्रकार पेड़ भी सत्य है तथा शाखाएं भी सत्य हैं, उनका अलग अस्तित्वांकन दृष्टिभेद के कारण से होता है-ठीक उसी प्रकार की स्थिति जगत, जीव और ब्रह्म की है।
  • इस मौके पर आइये जानते हैं श्री श्रीजी महाराज और इस पीठ के बारे में:-सलेमाबाद में स्थित श्री निम्बार्काचार्य पीठ के वर्तमान आचार्य श्री राधासर्वेश्वरशरण देवाचार्य जी महाराज का जन्म 10 मई 1929 को निम्बार्क तीर्थ निवासी गौड़ विप्र वंश में हुआ।
  • एक बार श्री निम्बार्काचार्य ने अपने आश्रम में दिवामोजी दंडी महात्मा के रूप में आए ब्रह्माजी को रात्री हो जाने के कारण भोजन से निषेध करते देख नीम वृक्ष पर अपने तेज तत्त्व श्रीसुदर्शनचक्र को आह्वान कर सूर्य रूप में दर्शन करवा कर भोजन कराया।
  • इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापति) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
  • इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापति) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
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