प्रियप्रवास वाक्य
उच्चारण: [ periyeprevaas ]
उदाहरण वाक्य
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- खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास ' के रचियता अयोध्यासिह उपाध्याय ‘हरिऔध'(15 अप्रैल, 1965-16 मार्च, 1947) का सृजनकाल हिन्दी के तीन युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग तक है।
- सुधारवादी आदर्शों से प्रेरित अयोध्यासिंह उपाध्याय ने अपने ” प्रियप्रवास ' में राधा का लोकसेविका रूप प्रस्तुत किया और खड़ीबोली के विभिन्न रूपों के प्रयोग में निपुणता भी प्रदर्शित की।
- को नागरी प्रचारिणी सभा, आरा की ओर से राजेंद्र प्रसाद द्वारा अभिनंदन ग्रंथ भेंट (12 सितंबर 1937), ' प्रियप्रवास ' पर मंगला प्रसाद पुरस्कार (1938)
- खड़ीबोली के काव्यों ' प्रियप्रवास ', हरिऔध और ' द्वापर ', मैथिलीशरण गुप्त के उद्धव गोपियों के हास-परिहास के आलम्बन नहीं बनते, उनके व्यक्तित्व में गम्भीरता पायी जाती है।
- शिव दान सिंह चौहान का कहना है कि “ प्रियप्रवास में कृष्ण अपने शुद्ध मानव रूप में विश्व कल्याण के काम में रत एक जन नेता के रूप में अंकित किए गए है ” ।
- रामनरेश त्रिपाठी के ' पथिक ', ' स्वप्न ' जैसे खंडकाव्यों में, हरिऔद्य के ' प्रियप्रवास ' में, मैथिलीशरण गुप्त के ' साकेत ', ' पंचवटी ' आदि काव्यों में प्रकृति के विविध चित्र हैं।
- खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास ' के रचि यता अयोध्यासिह उपाध्याय ‘ हरिऔध ' (15 अप्रैल, 1965-16 मार्च, 1947) का सृजनकाल हिन्दी के तीन युगों भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग तक है।
- ‘ प्रियप्रवास ' की रचना संस्कृत वर्णवृत्त में करके जहां उन्होंने खड़ी बोली को पहला महाकाव्य दिया, वहीं आम हिन्दुस्तानी बोलचाल में ‘ चोखे चौपदे ', तथा ‘ चुभते चौपदे ' रचकर उर्दू जुबान की मुहावरेदारी की शक्ति भी रेखांकित की।
- जब पं. महावीर प्रसाद द्विवेदीजी के प्रभाव से खड़ी बोली ने संस्कृत छंदों और संस्कृत की समस्त पदावली का सहारा लिया, तब उपाधयायजी, जो गद्य में अपनी भाषासंबंधिनी पटुता उसे दो हदों पर पहुँचा कर दिखा चुके थे, उस शैली की ओर भी बढ़े और संवत् 1971 में उन्होंने अपना ' प्रियप्रवास ' नामक बहुत बड़ा काव्य प्रकाशित किया।
- ‘इस प्रकाशन संस्थान ने भारतेंदु हरिश्चंद्र, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी, भारतीय सिविल सेवा में हिंदी के प्रतिष्ठापक फ्रेडरिक पिंकाट, आधुनिक हिंदी खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास के प्रणेता पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔंध', पंडित दामोदर शास्त्री सप्रे, लाल खड्ग बहादुर मल्ल, शिव नंदन सहाय प्रभृति साहित्यकारों को प्रकाशकीय संरक्षण प्रदान किया और उनकी कृतियों के प्रकाशन पर मुक्तहस्त से व्यय किया।'
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