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ब्रह्मवैवर्तपुराण वाक्य

उच्चारण: [ berhemvaivertepuraan ]
"ब्रह्मवैवर्तपुराण" का अर्थ
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • इस संदर्भ में ब्रह्मवैवर्तपुराण में कथा इस प्रकार है, ' बचपन ' से ही शनिदेव अत्यंत धार्मिक होने के कारण सांसारिक विषयों से सदा दूर रहते थे।
  • पुण्य प्रदायनी माघी पूर्णिमा माघ पूर्णिमा को पृथ्वी का दुर्लभ दिन माना गया है, ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान नारायण गंगाजल में निवास करतें है ।
  • ब्रह्म और ब्रह्मवैवर्तपुराण में क्रमश: लिखा है कि धन बचाने की लालसा से श्राद्ध न करने वाले का पितृगण रक्त पीते हैं, वहीं सक्षम होने पर श्राद्ध न करने वाला रोगी और वंशहीन हो जाता है.
  • गोरुत्पत्ति-दक्षप्रजापति के अमृतपान से तृप्त होने पर जीवों के कल्याणार्थ उनकी क्षुत् तृषा निवृत्ति के लिये मुख से असंख्य कपिला गायें उत्पन्न हुई | ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गोलोक निवासी बालकृष्ण के मन में गोदुग्ध पीकर गोपाल होने का भाव आया।
  • जब-जब परशुराम ने पृथ्वी को नि: क्षत्रिया करके उसे कश्यपादि ब्राह्मणों को दिया, जिसका विवरण वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड के 75 वें सर्ग, स्कन्दपुराण के नागरखण्ड के 67 वें अध्याय, ब्रह्मवैवर्तपुराण और महाभारतादि सभी ग्रन्थों में पाया जाता हैं।
  • ब्रह्मवैवर्तपुराण की मानें तो रविषष्ठी व्रत के दिन, भगवान भास्कर की रश्मियों में देवी षष्ठी का प्रार्दुभाव हो जाता हैं, और जो लोग इस दौरान भगवान भास्कर को अर्घ्य प्रदान कर रहे होते हैं, उन्हें भगवान भास्कर और छठि मईया दोनों की कृपा स्वतः प्राप्त हो जाती है।
  • [1] पितृ पक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्मवैवर्तपुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धापूर्वक पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं।
  • ब्रह्मवैवर्तपुराण पुराण के अनुसार गणपति जी के सिर के खण्डित होने का कारण शनि महाराज ही है| गणपति जी पर दृष्टि पात करना ही था कथा के अनुसार सभी देवी देवता को गणपति जी को आर्शीर्वाद देने आये, आने वालो मे शनि महाराज अपनी आँखों पर पट्टी बांध कर आये थे ताकि उनकी दृष्टि शनि गणपति [...]
  • ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं.
  • ब्रह्मवैवर्तपुराण पुराण के अनुसार गणपति जी के सिर के खण्डित होने का कारण शनि महाराज ही है| गणपति जी पर दृष्टि पात करना ही था कथा के अनुसार सभी देवी देवता को गणपति जी को आर्शीर्वाद देने आये, आने वालो मे शनि महाराज अपनी आँखों पर पट्टी बांध कर आये थे ताकि उनकी दृष्टि शनि गणपति [...] अष्टकूट मिलान से ही वैवाहिक जीवन सुखी नही (
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