भैरवप्रसाद गुप्त वाक्य
उच्चारण: [ bhairevpersaad gaupet ]
उदाहरण वाक्य
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- प्रलेस में प्रकाशचंद्र गुप्त, भैरवप्रसाद गुप्त, शमशेर, अमृतराय, दुष्यंत, कमलेश्वर भाई आदि थे और परिमल में धर्मवीर भारती, विजय देव नारायण साही, केशव प्रसाद मिश्र, लक्ष्मीकांत वर्मा आदि थे।
- मैंने सुना कि एक समय नयी कहानी प्रवृत्ति में शामिल होने को वात्स्यायन अज्ञेय भी उतावले हुए थे और चाह रहे थे कि उनकी कोई रचना भैरवप्रसाद गुप्त द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘ नयी कहानियाँ ' में छपे।
- भैरवप्रसाद गुप्त की प्रथम पुण्यतिथि (7-4-96) को जनवादी लेखक संघ और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन में आयोजित स्मृति सभा में प्रख्यात आलोचक डा.
- उनके लेखे गांधी और लोहिया जैसे वणिक और केदारनाथ अग्रवाल या शंभुनाथ गुप्त और भैरवप्रसाद गुप्त आदि आदि दर्जनों लेखक जयशंकर प्रसाद के जमाने से लक्ष्मी-पुत्र होने के कारण अपनी माता की बहन सरस्वती को पटाकर लेखक-वेखक मशहूर हो गए हैं.
- एक तरफ़ उसकी बैठकी हम लोगों के साथ थी, दूसरी तरफ़ उसने भैरवप्रसाद गुप्त और उनकी मण्डली की सदस्यता ली हुई थी और तीसरी तरफ़ वह जालन्धर के मोटर पार्ट्स विक्रेता हरनाम दास सहराई के इलाहाबाद आने पर उसके साथ घूमता-फिरता पाया जाता।
- उसे कूड़ेदान में फेंक कर नयी पीढ़ी के साहित्य को क्यों नहीं रखता? कथाकार प्रेमचंद, ‘ कामायनीज ' के रचनाकार जयशंकर प्रसाद, निराला, पंत, अमृतलाल नागर, भैरवप्रसाद गुप्त, आचार्य शिवपूजन सहाय, यशपाल, कृष्णचंदर आदि की पुस्तकों के अब तक दर्जनों संस्करण निकल चुके हैं और आगे भी निकलेंगे।
- इटी प्रोग्राम के अलगलोगों के चीखने पर ना जादौलत कमाउससे और स्कूल खोलउससे और दौलत कमाकमाए जा...कमाए जा...” इब्ने इंशा उर्दू साहित्य हड़ताल / भैरवप्रसाद गुप्त की कहानी भैरवप्रसाद गुप्त प्रान बाबू उस समय इतने जोश और ख़ुशी में थे कि उन्हें देखकर सभी लोग चकित थे, लोग उनकी हर हरकत और हर बात को चकित हो-होकर देख-सुन रहे थे।
- इटी प्रोग्राम के अलगलोगों के चीखने पर ना जादौलत कमाउससे और स्कूल खोलउससे और दौलत कमाकमाए जा...कमाए जा...” इब्ने इंशा उर्दू साहित्य हड़ताल / भैरवप्रसाद गुप्त की कहानी भैरवप्रसाद गुप्त प्रान बाबू उस समय इतने जोश और ख़ुशी में थे कि उन्हें देखकर सभी लोग चकित थे, लोग उनकी हर हरकत और हर बात को चकित हो-होकर देख-सुन रहे थे।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र हों या प्रेमचंद, पंत हों या निराला, यशपाल हों या अज्ञेय, धर्मवीर भारती हों या भैरवप्रसाद गुप्त, नामवर सिंह हों या रामविलास शर्मा, कमलेश्वर हों या राजेंद्र यादव, ज्ञानरंजन हों या राजेश जोशी, आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रत्येक काल में अनेक साहित्यकार साहित्यिक पत्रिकाएँ निकालते रहे हैं और आज भी निकाल रहे हैं।
- “इल्म बड़ी दौलत है तू भी स्कूल खोल इल्म पढ़ा फीस लगा दौलत कमा फीस ही फीस पढाई के बीस बस के तीस यूनीफार्म के चालीस खेलों के अलग ये वैराइटी प्रोग्राम के अलग लोगों के चीखने पर ना जा दौलत कमा उससे और स्कूल खोल उससे और दौलत कमा कमाए जा...कमाए जा...” हड़ताल / भैरवप्रसाद गुप्त की कहानी भैरवप्रसाद गुप्त
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