भ्रमरगीत वाक्य
उच्चारण: [ bhermergait ]
उदाहरण वाक्य
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- कछू कहत कछुवै कहि डारत, धुन देखियत नहिं नीकी इस भ्रमरगीत का महत्व एक बात से और बढ़ गया है।
- सूरदास की कविता में जो उद्धव-गोपी संवाद अथवा भ्रमरगीत प्रसंग है, वहां से इस संघर्ष के संकेत मिलने लगते हैं।
- 10. इस काव्य में रसमयी उक्तियों के लिए तथा साकार ईश्वर के प्रतिपादन के लिए भ्रमरगीत लिखने की परंपरा प्राप्त होती है।
- भ्रमरगीत की व्यापार से जुडी शब्दावली यह प्रदर्शित करती है कि सूर के समय में यह द्वन्द्व काफी तीव्र हो गया होगा।
- 9. सूर का भ्रमरगीत वियोग-श्रृंगार का ही उत्कृष्ट ग्रंथ नहीं है, उसमें सगुण और निर्गुण का भी विवेचन हुआ है।
- 10. इस काव्य में रसमयी उक्तियों के लिए तथा साकार ईश्वर के प्रतिपादन के लिए भ्रमरगीत लिखने की परंपरा प्राप्त होती है।
- 10. इस काव्य में रसमयी उक्तियों के लिए तथा साकार ईश्वर के प्रतिपादन के लिए भ्रमरगीत लिखने की परंपरा प्राप्त होती है।
- इसी तरह हिंदी कृष्णकाव्य (उद्धवशतक, प्रियप्रवास आदि) में भ्रमरगीत परंपरा के अंतर्गत दूतकाव्य या संदेशकाव्य के कुछ बीज मिल जाएँगे।
- “ भ्रमरगीत से ”-सूरदास निर्गुण कौन देस को वासी, मधुकर! हंसि समुझाय, सौहं दै, बूझत सांच न हाँसी।
- सूर के अनुसार योग, ज्ञान और निर्गुण का केन्द्र है काशी।' भ्रमरगीत में बार-बार काशी को निर्गुण ज्ञान और योग का गढ कहा गया है।
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