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महाराजा सवाई जयसिंह वाक्य

उच्चारण: [ mhaaraajaa sevaae jeysinh ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • जैसा आप सभी जानते हैं कि जयपुर की बसावट के साथ ही तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह [द्वितीय] ने जंतर-मंतर का निर्माण कार्य शुरू करवाया, महाराजा ज्योतिष शास्त्र में दिलचस्पी रखते थे और इसके ज्ञाता थे.
  • 16वीं शताब्दी के अंत तक भगवानदास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर महान के नवरत्नों में शामिल राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह ने इसे अपना निवास स्थान बना लिया, लेकिन 1712 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  • ईसा सन् 1710 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जंतर मंतर नामक यत्र को इस स्थान में स्थापित करते समय यह कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके द्वारा स्थापित यह स्थल के समीप कभी संसार को झकझोरने वाले जनांदोलनों के लिए विख्यात रहेगा।
  • 16 वीं शताब्दी के अंत तक भगवानदास के छोटे बेटे और मुगल शहंशाह अकबर महान के नवरत्नों में शामिल राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह ने इसे अपना निवास स्थान बना लिया, लेकिन 1712 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।
  • महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर को नौ आवासीय खण्डों मे बसाया, जिन्हें चौकडी कहा जाता है, इनमे सबसे बडी चौकडी सरहद में राजमहल, रनिवास, जंतर मंतर, गोविंददेवजी का मंदिर, आदि हैं, शेष चौकडियों में नागरिक आवास, हवेलियां और कारखाने आदि बनवाये गये.
  • जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर छोटा लगने लगा, और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई, और बडी तैयारियों के साथ इस कल्पना को साकार रूप देने की शुरुआत हु ई.
  • जयपुर में महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा आयोजित अश्वमेध यज्ञ को सुसम्पन्न कर आततायी मुगल साम्राज्य को मंत्र, यज्ञ एवं सिद्धि बल द्वारा समाप्त कराने में भागीदार होने का श्रेय सिद्ध पुरुष श्याम पांडिया को मानते हुए बली जनपद एवं बीकानेर क्षेत्र के लोग-विशेषतया वहां का पारीक समाज अपने आपको “श्याम पांडिया री भोम” के निवासी कहने में गौरव अनुभव करते हैं।
  • शांत, सुव्यवस्थित एवं गुणीजनो के इस शहर की आबादी निरंतर बढती गयी और वर्ष 2001 की गणना के अनुसार यहां की आबादी 52 लाख 51 हजार 71 हो चुकी है.अब से 283 साल पहले कछवाह वंश के शासक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितिय ने पौष कृष्णा एकम, विक्रम संवत 1784 (18 नवम्बर 1727 ईस्वी) को अरावली पर्वत मालाओ की तलहटी में की, और आमेर के बजाय इसे नगर की अपनी राजधानी बनाया.
  • सत्रहवीं शताब्दी मे जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी,ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत,एक बडी ताकत के रूप में उभरी.जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर छोटा लगने लगा,और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई, और बडी तैयारियों के साथ इस कल्पना को साकार रूप देने की शुरुआत हुई.
  • सत्रहवीं शताब्दी मे जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी,ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत,एक बडी ताकत के रूप में उभरी.जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फ़ैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिये आमेर छोटा लगने लगा,और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई, और बडी तैयारियों के साथ इस कल्पना को साकार रूप देने की शुरुआत हुई.
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