रबिन्द्रनाथ टैगोर वाक्य
उच्चारण: [ rebinedrenaath taigaor ]
उदाहरण वाक्य
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- नायक अब दुविधा में पड़ जाता है, और रबिन्द्रनाथ टैगोर ने अपने महाकाव्य में जिस आजाद स्वर्ग भूमि कि कल्पना कि थी उसे देखना चाहता है।
- आज भारत के गौरव गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, जो मानवतावादी, प्रकृतिविद, कवि, चित्रकार, संगीतकार, लेखक, शिक्षाविद, और भारतीय संस्कृति एवम कला के ध्वजवाहक रहे हैं, की 150 वीं जयंती का शुभ अवसर है।
- मंच पर विराजमान अध्यक्ष महोदय, अग्रज प्रोफ़ेसर धीरज लाल ज़ी और मंच के सामने बैठे सज्जनों, मैं आभारी हूँ आयोजकों का जिन्होंने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक सौ पच्चासवीं जयन्ती पर मुझे यहाँ आमंत्रित किया.
- इस हत्याकाण्ड के विरोध में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में ' सर' की उपाधि लौटा दी और उधमसिंह ने लन्दन जाकर पिस्तौल की गोली से जनरल डायर को भून दिया और इस हत्या काण्ड का बदला लिया।
- इस हत्याकाण्ड के विरोध में रबिन्द्रनाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में ' सर' की उपाधि लौटा दी और उधमसिंह ने लन्दन जाकर पिस्तौल की गोली से जनरल डायर को भून दिया और इस हत्या काण्ड का बदला लिया।
- आज भारत के गौरव गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, जो मानवतावादी, प्रकृतिविद, कवि, चित्रकार, संगीतकार, लेखक, शिक्षाविद, और भारतीय संस्कृति एवम कला के ध्वजवाहक रहे हैं, की 150 वीं जयंती का शुभ अवसर है।
- प्रस्तुत है ऐसे ही एक कार्यक्रम में एक विद्वान द्वारा दिया गया लेक्चर. आप बांचिये;..................................................................................... मंच पर विराजमान अध्यक्ष महोदय, अग्रज प्रोफ़ेसर धीरज लाल ज़ी और मंच के सामने बैठे सज्जनों, मैं आभारी हूँ आयोजकों का जिन्होंने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर की एक सौ पच्चासवीं जयन्ती पर मुझे यहाँ आमंत्रित किया.
- वर्ष 1869 में पोरबंदर (गुजरात) में जन्मे महात्मा गांधी का वास्तविक नाम मोहनदास कर्मचंद गांधी था लेकिन चंपारन सत्याग्रह आंदोलन के पश्चात जब सर्वप्रथम कविवर रबिन्द्रनाथ टैगोर ने मोहनदास कर्मचंद गांधी को ‘ महात्मा ' की उपाधि से नवाजा तभी से गांधी के साथ ‘ महात्मा ' एक उपनाम की भांति जुड़ गया.
- “गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर: निष्फल कोई पूजा न होगी जो पूजायें अधूरी रहीं वे व्यर्थ न गयीं जो फूल खिलने से पहले मुर्झा गये और नदियां रेगिस्तानों में खो गयीं वे भी नष्ट नहीं हुयीं जो कुछ रह गया पीछे जीवन में जानता हूँ निष्फल न होगा जो मैं गा न सका बजा न सका हे प्रकृत्ति! वह तुम्हारे साज पर बजता रहेगा।”
- असल में किशोर बंगाली थे और बंगला में भी गाने गाये १ ९ ६ ४ में सत्यजीत रॉय जैसे सफल निर्देशक की फ़िल्म “ चारुलता ” में उन्होंने गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर के बंगला गीत “ आमी चीनी गो चीनी तोमारे... ” गीत को गाकर यह साबित कर दिया कि वे एक प्रतिभाशाली (versatile) कलाकार थे वे सत्यजीत रॉय के करीब रहे और “ पाथर पंचोली ” फ़िल्म के निर्माण में उन्होंने रोय जी की आर्थिक मदद भी की
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