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रामनारायण उपाध्याय वाक्य

उच्चारण: [ raamenaaraayen upaadheyaay ]
उदाहरण वाक्यमोबाइल
  • निमाड़ की अस्मिता के बारे में पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय लिखते है-“जब मैं निमाड़ की बात सोचता हूँ तो मेरी आँखों में ऊँची-नीची घाटियों के बीच बसे छोटे-छोटे गाँव से लगा जुवार और तूअर के खेतों की मस्तानी खुशबू और उन सबके बीच घुटने तक धोती पर महज कुरता और अंगरखा लटकाकर भोले-भाले किसान का चेहरा तैरने लगता है।
  • , शरद जोशी, इलाचंद्र जोशी, रमानाथ अवस्थी, देवराज दिनेश, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, कविवर दिनकर, महादेवी वर्मा, रामनारायण उपाध्याय, बालकवि बैरागी, गिरिवरसिंह भँवर, दिनकर सोनवलकर, देवव्रत जोशी जैसे साहित्यिक हस्ताक्षरों की दुर्लभ रेकॉर्डिंग्स मालवा हाउस से बज कर पूरी मालवा-निमाड़ जनपद को आनंदित करती रही है.
  • निमाड़ की अस्मिता के बारे में पद्मश्री रामनारायण उपाध्याय लिखते है-” जब मैं निमाड़ की बात सोचता हूँ तो मेरी आँखों में ऊँची-नीची घाटियों के बीच बसे छोटे-छोटे गाँव से लगा जुवार और तूअर के खेतों की मस्तानी खुशबू और उन सबके बीच घुटने तक धोती पर महज कुरता और अंगरखा लटकाकर भोले-भाले किसान का चेहरा तैरने लगता है।
  • कन्हैयालाल मिश्र की भोजन या शत्रु उपेन्द्र नाथ की अश्क की केवल जाति के लिए राधारी सिंह दिनकर की हत्यारा 1938 में विष्णु प्रभाकर की सार्थकता जगदम्बा प्रसाद त्यागी की विधवा का सुहाग, रामनारायण उपाध्याय की आटा और सीमेंट 1940 के आसपास रामप्रसाद रावी ने मेरे कथा गुरू का कहना है नाम से तत्कालीन लघुकथा को नया आयाम दिया।
  • हरियाणा के ख्याति-प्राप्त लेखक विष्णु प्रभाकर अपने लघुकथा-संग्रह ‘ कौन जीता कौन हारा ' (1989) की भूमिका में लिखते हैं-“ जब मैंने लिखना शुरू किया था तो सर्वश्री जयशंकर प्रसाद, सुदर्शन, माखनलाल चतुर्वेदी, उपेन्द्रनाथ अश्क, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, जगदीश चन्द्र मिश्र, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, रावी और रामनारायण उपाध्याय आदि सुप्रसिद्ध सर्जक इस क्षेत्र में भी सक्रिय थे।
  • इसमें जहाँ एक ओर विष्णु प्रभाकर, रामनारायण उपाध्याय, रमेश बतरा, कमल चोपड़ा, बलराम, कमलेश भारतीय, मनीषराय यादव जैसे प्रतिष्ठित एवं स्थापित रचनाकारों की लघुकथाएँ थीं, वहीं क्षेत्रीय-स्तर पर डा 0 श्यामसुन्दर व्यास, राजेन्द्र कुमार शर्मा, चन्द्रशेखर दुबे, सुरेश शर्मा, निरंजन जमींदार, वसंत निरगुणे, वेद हिमांशु, महेश भंडारी, अर्जुन चौहान आदि की लघुकथाएँ भी शामिल थीं।
  • सन् 1970 से पूर्व कथा-लेखन की लघुकथा-परम्परा को जी-जान से अपनाने वालों में कन्हैयालाल मिश्र ‘ प्रभाकर ', आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र, सुदर्षन, अयोध्या प्रसाद गोयलीय, रावी, आनन्द मोहन अवस्थी, शरद कुमार मिश्र ‘ शरद ', रामनारायण उपाध्याय आदि का नाम लिया जा सकता है लेकिन इनकी रचनाएं पढ़ने के उपरान्त यही पता चलता है कि ये सभी लोग मुख्यतः ‘ लघुकथा ' की पुरातन धारा के ही वाहक हैं।
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