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सुरेश सलिल वाक्य

उच्चारण: [ suresh selil ]
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  • उनके बाद यहां आने वालों में हैं विष्णुचन्द्र शर्मा, सुरेश सलिल, महेश दर्पण, स् व.म ाहेश्वर, बाबा नागार्जुन, हरिपाल त्यागी, धीरेन्द्र अस्थाना, बलराम, वीरेन्द्र जैन, रामकुमार कृषक, सुरेन्द्र जोशी, अरविन्द सिंह-यह सिलसिला आज भी जारी है.
  • इस मौके पर मदन कश्यप, पंकज सिंह, सुरेश सलिल, वीरेन्द्र कुमार वर्णवाल, देवी प्रसाद मिश्र, जसम महासचिव प्रणय कृष्ण, भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य, इरफान, महेश दर्पण, सतीश सागर, महेंद्र महर्षि समेत कई साहित्यकार-संस्कृतिकर्मी और राजनीतिकर्मी भी मौजूद थे।
  • बनारसीदास चतुर्वेदी, मन्मथनाथ गुप्त, यशपाल, शिव वर्मा, भगवानदास माहौर, जितेन्द्रनाथ सान्याल, सोहनसिंह जोश, अजय घोष, हंसराज रहबर, वीरेन्द्र सिं धु, विष्णु प्रभाकर, श्री राजयम सिन्हा, विष्णुचन्द्र शर्मा, सुरेश सलिल के अत्यन्त सघन और महत्वपूर्ण प्रयास हैं ।
  • लेकिन प्रभात फेरी कही गई बाबा की पंक्तियों-“ अमल-धवल गिरि शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है ” के साथ जो शेष दो पंक्तियां-“ सादतपुर की इन गलियों ने, बाबा को चलते देखा है ” रामकुमार कृषक की नहीं, कवि सुरेश सलिल की हैं.
  • ये सब प्रायोजित गोष्ठियों के अवसरवादी कलाकार हैं सुरेश सलिल के शब्दों में जो-गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुनादास।..हो गये हैं,जो बडे अधिकारी, पत्रकार, निजी विद्यार्थी,या बडे प्रकाशकों और उनके हितों के लिए काम करते रहे हैं तथा ऐसे कवियों को बडे-बडे पुरस्कार आदि दिलाने में इन्ही की भूमिका रहती है।
  • जब वह यहां होते, प्रायः प्रतिदिन सुबह लाठी टेकते एक-एक साहित्यकार के घर जाते-बलराम, रामकुमार कृषक, वीरेन्द्र जैन, महेश दर्पण, धीरेन्द्र अस्थाना (इन सभी के मकान आसपास हैं-अब धीरेन्द्र मुम्बईवासी हैं)-सुरेश सलिल, विष्णुचन्द शर्मा, हरिपाल त्यागी-. बाबा लाठी से सबके दरवाजे ठकठकाते, मुस्कराकर घर के हाल-चाल पूछते और आगे बढ़ जाते.
  • इस अवसर पर राजेंद्र यादव, विश्वनाथ त्रिपाठी, जापानी विद्वान् इशिदा, संजीव, पंकज बिष्ट, प्रेमपाल शर्मा, इब्बार रब्बी, वीरेंद्र कुमार बरनवाल, श्योराज सिंह बेचैन, सुरेश उनियाल, हरिपाल त्यागी, सुरेश सलिल, शरद सिंह, श्याम सुशील, रामकिशोर द्विवेदी, संज्ञा उपाध्याय, हीरालाल नगर, आकांक्षा पारे, उमेश चतुर्वेदी सहित अनेक पीढ़ियों के लेखक व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।
  • प्रेम शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रसिद्ध गीतकार भारत भूषण, कुबेरदत्त (दुर्योग से दोनों का पिछले दिनों ही निधन हुआ है), सुरेश सलिल और निर्मला गर्ग ने बेहद आत्मीयतापूर्वक लिखा है, जिससे गुज़रने के मायने हैं एक अच्छे गीतकार और शानदार इंसान से रू-ब-रू होना. मैं हुआ, मुझे अच्छा लगा, और इसी से मन बना कि उनका लिखा कुछ साझा किया जा ए.
  • इस संगोष्ठी में हरिपाल त्यागी, नरेन्द्र नागदेव, प्रदीप पंत, सुरेश उनियाल, सुरेश सलिल, त्रिनेत्र जोशी, तेजेन्द्र शर्मा, मृणालिनी, लक्ष्मीशंकर वाजपेई, भगवानदास मोरवाल, हरीश जोशी, केवल गोस्वामी, रामकुमार कृषक, योगेन्द्र आहूजा, वीरेन्द्र सक्सेना, रूपसिंह चंदेल, प्रेम जनमेजय, हीरालाल नागर, चारु तिवारी, राधेश्याम तिवारी, अशोक मिश्र, प्रताप सिंह, क्षितिज शर्मा और सत सोनी सहित अनेक रचनाकार और साहित्य रसिक मौजूद थे।
  • अनुवाद: सुरेश सलिल रांडो बात करना आसान है लेकिन शब्द खाए नहीं जा सकते सो रोटी पकाओ रोटी पकाना मुश्किल है सो नानबाई बन जाओ लेकिन रोटी में रहा नहीं जा सकता सो घर बनाओ घर बनाना मुश्किल है सो राज-मिस्त्री बन जाओ लेकिन घर पहाड़ पर नहीं बनाया जा सकता सो पहाड़ खिसकाओ पहाड़ खिसकाना मुश्किल है सो पैगम्बर बन जाओ लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते सो बात करो बात करना मुश्किल है सो वह हो जाओ जो हो और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।
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