संतान को कष्ट धन हानि और बुद्धिभ्रंश का योग बनता है।
2.
बुद्धिभ्रंश होकर उस लाभदायक संस्था को हम साहसपूर्वक त्याग दें, अन्य प्राचीन एवं अर्वाचीन साम्राज्यों की भांति हमारे वंश का, संस्कृति का और अंत में हमारे समाज का नामशेषता की सीमा तक ध्वंस हो जाएगा।