1998 में जब देश में यह रोक लगाई गई, तब से कई गैर-सरकारी संगठनों का इल्जाम रहा है कि यह पाबंदी लोगों को घेंघा, बौनेपन, भेंगापन, बुद्धिमंदता, गर्भ में मौत, गर्भपात जैसी व्याधियों से बचाने के लिए नहीं, बल्कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए लगाई गई है।