और रास्ते में मन तथा सुरत के मिटाव और चढाई में बराबर सहाय के रूप में सदा साथ साथ रहेगा ।
4.
महल-खम्भ काटिबे को, कोऊ बनैना वार पूरे फल-धार की तरवारि तो बतावै कोउ॥ पत्थर कटत नैइयाँ, टूटत सुधैयाँन सूध तिरछी तरवारि मारि, काटि कै दिखावै कोउ? जे उपहास बिन्दु, इनको मिटाव अब, इन्दु-यश रानी को, वैज्ञानिक बनाव कोउ!
5.
महल-खम्भ काटिबे को, कोऊ बनैना वार पूरे फल-धार की तरवारि तो बतावै कोउ॥ पत्थर कटत नैइयाँ, टूटत सुधैयाँन सूध तिरछी तरवारि मारि, काटि कै दिखावै कोउ? जे उपहास बिन्दु, इनको मिटाव अब, इन्दु-यश रानी को, वैज्ञानिक बनाव कोउ! पुस्तक के अधिकांश द्वन्द बुन्देली में लिखे हैं लेकिन अभिव्यक्ति में भाषा आग्रह नहीं है।