यदि हम उनकी वृद्धावस्था , उनके स्वाभिमान और साहित्यिक-सांस्कृतिक अवसान की प्रतीक्षा में हैं तो यह उनकी आजीवन तपस्या के प्रति हमारा असम्मान , अकृतज्ञता , असंवेदनशीलता और अमानुषिकता का प्रदर्शन ही होगा .
22.
भारतीय समाज की अकृतज्ञता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस देश को इतना उत्कृष्ट संविधान देने वाले महापुरुष डा . आंबेडकर लोकसभा का चुनाव दो बार हार गए .
23.
इसे भाग्य की विडंबना कहें अथवा स्वतंत्र भारत के कुछ नेताओं की अकृतज्ञता कि सरकार ने शक संवत को स्वीकार कर लिया , लेकिन सम्राट विक्रमादित्य के नाम से प्रचलित संवत को कहीं स्थान न दिया।
24.
इसे भाग्य की विडंबना कहें अथवा स्वतंत्र भारत के कुछ नेताओं की अकृतज्ञता कि सरकार ने शक संवत को स्वीकार कर लिया , लेकिन सम्राट विक्रमादित्य के नाम से प्रचलित संवत को कहीं स्थान न दिया।
25.
यहा अगर अपने मित्र श्रीहरी मुरारका , विजयप्रताप सिंह और अमरेश वर्मा का उल्लेख नहीं करना अकृतज्ञता होगी, मालूम हो कि मुरारक ने अपने रोलिंग मिल से भवन के लिये पूरे लोहे के छ$ड की आपूर्ति की थी.
26.
और जिसने अकृतज्ञता दिखलाई तो अल्लाह वास्तव में निस्पृह , प्रशंसनीय है ( 12 ) याद करो जब लुकमान ने अपने बेटे से , उसे नसीहत करते हुए कहा , ” ऐ मेरे बेटे ! अल्लाह का साझी न ठहराना।
27.
यहा अगर अपने मित्र श्रीहरी मुरारका , विजयप्रताप सिंह और अमरेश वर्मा का उल्लेख नहीं करना अकृतज्ञता होगी , मालूम हो कि मुरारक ने अपने रोलिंग मिल से भवन के लिये पूरे लोहे के छ $ ड की आपूर्ति की थी .
28.
अपने पूर्वजों और इस समाज के प्रति इससे बड़ी और कोई अकृतज्ञता नहीं हो सकती . .... “ विदुषी ने एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा- ” भारत के सभी सनातनधर्मी हिन्दू देशभक्त हैं ....... जान कर प्रसन्नता हुयी सिद्धांत चट्टोपाध्याय जी ! ” शब्दशक्ति के प्रयोग में कुशल विदुषी के इस घातक प्रहार से सभी लोग तिलमिला कर रह गए .
29.
मेरे बहुत से मित्र हिंदुओं की अकृतज्ञता का यों वर्णन करते हैं कि उन्होंने हरिश्चंद्रजी जैसे देशहितैषी पुरुष की उत्तम-उत्तम पुस्तकें नहीं खरीदीं पर मैं कहता हूं कि यदि बाबू हरिश्चंद्र अपनी भाषा को थोड़ा सरल करते तो हमारे भाइयों को अपने समाज पर कलंक लगाने की आवश्यकता न पड़ती और स्वाभाविक शब्दों के मेल से हिंदी की पैसिंजर भी मेल बन जाती।
30.
तथा हिन्दू राष्ट्र का गुणगान करने के अलावा और कुछ नहीं करना चाहिए , अर्थात उन्हें न केवल इस देश और इसकी वर्षों पुरानी परम्पराओं के प्रति असहिशूष्ता और अकृतज्ञता का दृष्टिकोण अपनाना होगा, बल्कि इसके बजाये प्रेम और निष्ठा का सकरात्मक दृष्टिकोण अपनाना होगा, संक्षेप में इन्हें विदेशी नहीं बने रहना चाहिए, अन्यथा समस्त प्रकार के विशेषाधिकारों, प्राथमिकता पर आधारित व्यवहार तथा यहाँ तक कि नागरिक अधिकारों से वंचित रहकर उस देश में रहना होगा।