| 41. | 437 काची कली कनेर की तोड़त ही कुमळाय
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| 42. | लगता था यह कली अभी अपना पूरा मुँह
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| 43. | कली ये मेरी मोहब्बत की खिलेगी या नहीं
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| 44. | कली प्रभात-समीर ही के सपर्श से खिलती है।
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| 45. | एक कली जो देखते देखते गुलाब हो गयी
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| 46. | अली कली ही सा बिंध्यों , आगे कौन हवाल।।
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| 47. | दास गरीब कली कली , हमहीं से कृष्ण अभंग।।440।।
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| 48. | दास गरीब कली कली , हमहीं से कृष्ण अभंग।।440।।
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| 49. | अरे वो तो बिल्कुल कच्ची कली ही निकली।
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| 50. | जब तक कली ये डाली से लिपटी रही
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