(3) अकृतक त्रैलोक्य-कृतक और महर्लोंक के बाद जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं।
12.
महर्लोक कृतक और अकृतक लोकों के मध्य में है, और कल्पान्त में यह केवल जनशून्य हो जाता है, नष्ट नहीं होता है।
13.
महर्लोक कृतक और अकृतक लोकों के मध्य में है, और कल्पान्त में यह केवल जनशून्य हो जाता है, नष्ट नहीं होता है।
14.
ब्रह्मांड का विभाजन या भेद: पुराणों ने ब्रह्मांड को मूलत: तीन भागों में विभक्त किया है:-(1) कृतक त्रैलोक्य (2) महर्लोक (3) अकृतक त्रैलोक्य।
15.
कृतक और अकृतक लोक के बीच स्थित है ' महर्लोक' जो कल्प के अंत की प्रलय में केवल जनशून्य हो जाता है, लेकिन नष्ट नहीं होता।
16.
' ' ' विरुद्ध मनोविचार '' '-' शब्द अनित्य है, क्योंकि अकृतक है '-इस प्रकार के विरुद्ध हेतु से उत्पन्न शब्दानित्यता का ज्ञान ' विरुद्ध मनोविचार ' है।
17.
उसके भी ऊपर जन, तप और सत्य लोक तीनों अकृतक लोक कहलाते हैं, अर्थात जिनका उत्पत्ति, पालन और प्रलय से कोई संबंध नहीं, न ही वो अंधकार और प्रकाश से बद्ध है वरन वह अनंत असीमित और अपरिमेय आनंदपूर्ण है।