परंतु अतिसूक्ष्मदर्शी की सहायता से, अनुकूल परिस्थितियों में, इतने छोटे-छोटे कण देखे जा सकते हैं जिनका व्यास प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के १,१०० भाग के बराबर हो।
12.
अतिसूक्ष्मदर्शी (अल्ट्रा-माइक्रॉस्कोप) एक ऐसा उपकरण है जिसकी सहायता से बहुत छोटे-छोटे कण, जो लगभग अणु के आकार के होते हैं और साधारण सूक्ष्मदर्शी से नहीं दिखाई देते, देखे जा सकते हैं।
13.
यदि काँच की पट्टी पर थोड़ा सा कांबोज (गैंबूज) रगड़कर उस पर पानी की दो बूँदें डाल दी जाएँ और तब अतिसूक्ष्मदर्शी से पानी की परीक्षा की जाए तो असंख्य छोटे-छोटे कण बड़ी शीघ्रता से भिन्न-भिन्न दिशाओं में इधर-उधर दौड़ते हुए दिखाई देंगे।
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यदि काँच की पट्टी पर थोड़ा सा कांबोज (गैंबूज) रगड़कर उस पर पानी की दो बूँदें डाल दी जाएँ और तब अतिसूक्ष्मदर्शी से पानी की परीक्षा की जाए तो असंख्य छोटे-छोटे कण बड़ी शीघ्रता से भिन्न-भिन्न दिशाओं में इधर-उधर दौड़ते हुए दिखाई देंगे।
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अतिसूक्ष्मदर्शी जिस सिद्धांत पर काम करता है उसका उदाहरण हम अपने दैनिक जीवन में उस समय देखते हैं जब सूर्य प्रकाश की किरणें किसी छिद्र से कमरे में प्रवेश करती हैं और हवा में उड़ते हुए असंख्य अतिसूक्ष्म कणों के अस्तित्व का ज्ञान कराती हैं।
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अतिसूक्ष्मदर्शी जिस सिद्धांत पर काम करता है उसका उदाहरण हम अपने दैनिक जीवन में उस समय देखते हैं जब सूर्य प्रकाश की किरणें किसी छिद्र से कमरे में प्रवेश करती हैं और हवा में उड़ते हुए असंख्य अतिसूक्ष्म कणों के अस्तित्व का ज्ञान कराती हैं।
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में लॉर्ड रैले ने गणना से सिद्ध कर दिया कि जो कण अच्छे से अच्छे सूक्ष्मदर्शी द्वारा साधारण रीति से पृथक् पृथक् नहीं देखे जा सकते उनको अधिक तीव्र प्रकाश से प्रकाशित करके अतिसूक्ष्मदर्शी की रीति से हम देख सकते हैं, यद्यपि इस रीति से हम उनके वास्तविक आकार का ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते।
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सन् १८९९ ई. में लॉर्ड रैले ने गणना से सिद्ध कर दिया कि जो कण अच्छे से अच्छे सूक्ष्मदर्शी द्वारा साधारण रीति से पृथक् पृथक् नहीं देखे जा सकते उनको अधिक तीव्र प्रकाश से प्रकाशित करके अतिसूक्ष्मदर्शी की रीति से हम देख सकते हैं, यद्यपि इस रीति से हम उनके वास्तविक आकार का ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकते।