इसलिए ये इनके शब्दकोष से सिरे से अपने अभिधेयार्थ सहित गायब हैं!!!
12.
लोकोक्तियों का अभिधेयार्थ से भिन्न विशिष्ट लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है।
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अभिधा द्वारा अभिव्यक्ति अर्थ को अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं; जैसे ‘सिर पर चढ़ना ' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठा कर सिर पर रखना होगा।
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अभिधा द्वारा अभिव्यक्ति अर्थ को अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं; जैसे ‘सिर पर चढ़ना ' का अर्थ किसी चीज को किसी स्थान से उठा कर सिर पर रखना होगा।
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अर्थ यह हुआ-मुख्यार्थ में बाधा होने पर रूढि या प्रयोजन के आधार पर अभिधेयार्थ से सम्बन्धित अन्य अर्थ को व्यक्त करने वाली शक्ति लक्षणा शक्ति कहलाती है।
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“प्रायः शारीरिक चेष्टाओं, अस्पष्ट ध्वनियों और कहावतों अथवा भाषा के कतिपय विलक्षण प्रयोगों के अनुकरण या आधार पर निर्मित और अभिधेयार्थ से भिन्न कोई विशेष अर्थ देने वाले किसी भाषा के गठे हुए रूढ़ वाक्य, वाक्यांश या शब्द-समूह को मुहावरा कहते हैं।”
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“प्रायः शारीरिक चेष्टाओं, अस्पष्ट ध्वनियों और कहावतों अथवा भाषा के कतिपय विलक्षण प्रयोगों के अनुकरण या आधार पर निर्मित और अभिधेयार्थ से भिन्न कोई विशेष अर्थ देने वाले किसी भाषा के गठे हुए रूढ़ वाक्य, वाक्यांश या शब्द-समूह को मुहावरा कहते हैं।”
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जहाँ प्रथम पक्ष में अर्थात् अभिधेयार्थ में किसी भाव की व्यंजना नहीं है (जैसे मार्ग की कठिनता और सिंहलगढ़ की दुर्गमता के वर्णन में) वहाँ तो वस्तुव्यंजना स्पष्ट ही है, क्योंकि वहाँ एक प्रस्तुत अर्थ से दूसरे वस्तुरूप अर्थ की ही व्यंजना है।
19.
‘ मुहावरा ' की सबसे अधिक व्यापक तथा सन्तोषजनक परिभाषा डॉ. ओमप्रकाश गुप्त ने निम्न शब्दों में दी है: ‘‘ प्रायः शारीरिक चेष्टाओं, अस्पष्ट ध्वनियों और कहावतों अथवा भाषा के कतिपय विलक्षण प्रयोगों के अनुकरण या आधार पर निर्मित और अभिधेयार्थ से भिन्न कोई विशेष अर्थ देने वाले किसी भाषा के गठे हुए रूढ़ वाक्य, वाक्यांश या शब्द-समूह को मुहावरा कहते हैं।
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इसलिये यहाँ हत्यारों के चेहरे की मासूमियत तुम्हें दंग कर सकती है! और यही बात उनके फायदे की है...! “इंसानियत”, “इन्साफ” “ईमानदारी”, “इंकार: और ”इन्किलाब“ जैसे शब्दों में जरूर कोई बहनापा है, इसलिए ये इनके शब्दकोष से सिरे से अपने अभिधेयार्थ सहित गायब हैं!!! चीखो-चीखो-चीखो...! क्योंकि २३ मार्च को फाँसी पर चढ़ने वाले उस तेईस साल के जाट नौजवान ने कहा था, ”ऊँचा सुनने वालों को धमाकों की जरूरत होती है!” कॉम. विनीत तिवारी की किताब का विमोचन...