परन्तु जब शुद्ध चैतन्य ब्रह्म ही है तब इदंता आत्मज्ञान में ही प्रगट होगी, परन्तु आत्मज्ञान में विषय-~ विषयी जैसा प्रारम्भिक सम्बन्ध भी नहीं होगा.
12.
निर्णीतं तत्वगर्भं यद् विज्ञेयं मुक्तिलब्धये॥ 11 ॥ परम अवस्था अर्थात तुरीयावस्था की प्राप्तिके लिये इदंता से प्रतीयमान यह सब छोड़ता हूँ अर्थात उनमें अपना अपना अभिमान हटाता हूँ अर्थात जगदीश्वर को चाहने से अर्थ, धर्म, और काम सभी को छोडता हूँ।