| 11. | ऊध्र्वमुखी त्रिकोण: अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि अग्नि की गति सदैव ऊध्र्वमुखी होती है।
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| 12. | सृष्टि क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 5 ऊध्र्वमुखी त्रिकोण होते हैं जिन्हें शिव त्रिकोण कहते हैं।
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| 13. | फिर कोई बिरले ही लोग अपनी प्राण ऊर्जा को ऊध्र्वमुखी बनाते हैं और आत्मबोध को प्राप्त होते हैं।
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| 14. | विवाह से पूर्व लड़का-लड़की में पौरूषेय भाव (अगिA) की प्रधानता के कारण विकास ऊध्र्वमुखी होता है।
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| 15. | जब भी व्यक्ति अपने स्वरूप से ऊध्र्वमुखी होना चाहता है, तब वह “ ह ” का ह्रास करता है।
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| 16. | वह ऊर्जा प्राप्त करता है, ऊध्र्वमुखी होता है फिर ब्राह्मण बनता है तो ज्येष्ठ ब्रह्म के निकट हो जाता है।
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| 17. | श्री यंत्र में ऊध्र्वमुखी 5 त्रिकोण, 5 प्राण, 5 ज्ञानेंद्रियां, 5 तन्मात्रा और 5 माया भूतों के प्रतीक हैं।
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| 18. | संहार क्रम के अनुसार बने श्रीयंत्र में 4 ऊध्र्वमुखी त्रिकोण शिव त्रिकोण होते हैं और 5 अधोमुखी त्रिकोण शक्ति त्रिकोण होते हैं।
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| 19. | Û भाग्य रेखा: मणिबंध के पास से निकली और ऊध्र्वमुखी होकर शनि पर्वत तक जाने वाली रेखा को भाग्यरेखा कहते हैं।
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| 20. | भविष्य परिवर्तन का भावार्थ ऊध्र्वमुखी भविष्य परिवर्तन से है, जिससे अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त हो।
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