इस मन्त्र से अगले मन्त्र में, उसी आत्मा की वाक् शक्ति को गौरी कहा गया है जो उक्त '' समानम् उदकम् '' को अनेक ('' सलिलानि '') में परिणत करती हुई एकपदी, द्विपदी, चतुष्पदी, अष्टापदी और नवपदी हो जाती है, यद्यपि वह मूलतः परम व्योम में स्थित सहस्राक्षरा वाक् है-
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शायरी फोर उम्रदराज ईस ठंड ने तो हमको दौनो तरह से मारा है दिल उदास क्योंकि शरीर हर काम के लिये नकारा है बाकी याद तो आती है बखुब हम ईस सीझन की पर क्या करे अब नजदीक जिंदगी का किनारा है..! ०६. अब आई फोर ईन्डियन कल्चर भारतीय संस्कृति और उसकी परंपरा शादी के सात वचन इष एकपदी भव ।